[पुस्तक परिचय] शेतकर्याची आसुड (किसान का चाबुक) – जोतीराव फुले

[एम. असीम] जोतीराव (जोतीबा) फुले 19वीं सदी के भारत के अग्रणी चिंतक थे। उन्होंने भारतीय समाज को सदियों से जकड़े वर्ण-जाति और पितृसत्तात्मक ब्राह्मणवादी विचार के विरुद्ध संघर्ष को आधुनिक समता-बंधुत्व-स्वतंत्रता की जनवादी दृष्टि वाला वैचारिक-सैद्धांतिक आधार प्रदान किया, सभी के लिए समान सार्वजनिक शिक्षा का सवाल उठाया, औपनिवेशिक व्यवस्था में किसान-दस्तकार-श्रमिक तबकों के निर्मम … More [पुस्तक परिचय] शेतकर्याची आसुड (किसान का चाबुक) – जोतीराव फुले

मज़दूरों को उनकी ‘अपनी’ सरकार ने ही त्याग दिया

[एस. वी. सिंह] “चूँकि मज़दूरों कि मौत का कोई आंकड़ा सरकार के पास मौजूद नहीं है, इसलिए उन्हें मुआवजा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता” 14 सितम्बर को संसद में श्रम एवं रोज़गार मंत्री संतोष गंगवार का ये बयान सुन कर देश स्तब्ध रह गया। क्या कोई सरकार इतनी निष्ठुर, इतनी संवेदनहीन हो सकती … More मज़दूरों को उनकी ‘अपनी’ सरकार ने ही त्याग दिया

जनता के जनतंत्र की दहलीज़ पर चिली

एस. राज // दक्षिण अमेरिकी देश चिली ने अक्टूबर 2019 में अपने हालिया इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा जन विद्रोह देखा जब पिछले 5 दशकों से चले आ रहे नवउदारवादी हमलों और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लाखों में जनता सड़कों पर उतर आई। इस विद्रोह का सीधा नतीजा हुआ कि साम्राज्यवादी तानाशाह अगस्तो पिनोशे … More जनता के जनतंत्र की दहलीज़ पर चिली

महान रूसी अक्‍टूबर क्रांति का विश्‍व-ऐतिहासिक महत्‍व और उसके कुछ ठोस सबक

~ शेखर 25 अक्‍टूबर, 1917 (नये कैलेंडर के अनुसार 7 नवंबर, 1917) के दिन, आज से 103 वर्ष पूर्व रूस में बोल्‍शेविकों द्वारा संगठित सर्वहारा समाजवादी क्रांति ने पूंजीपति वर्ग का तख्‍ता पलट दिया था और सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्‍व की स्‍थापना की थी। इसके पूर्व 18 मार्च 1871 को पेरिस में मात्र तीन महीने … More महान रूसी अक्‍टूबर क्रांति का विश्‍व-ऐतिहासिक महत्‍व और उसके कुछ ठोस सबक

बिहार चुनाव : महागठबंधन की जीत और फासीवाद

[शेखर] [यह लेख बिहार चुनाव 2020 पर ‘यथार्थ’ पत्रिका में लेख श्रृंखला में तीसरा और अंतिम लेख है। पहले और दूसरे लेख ‘यथार्थ’ के सितंबर (#5) और अक्टूबर (#6) अंकों में छपे थे।] बिहार चुनाव के पहले दो चरण के मतदान हो चुके हैं और यह लेख लिखते वक्त 7 नवंबर को होने वाले तीसरे … More बिहार चुनाव : महागठबंधन की जीत और फासीवाद

श्रम सुधार : श्रम संहिताओं का आगमन, श्रमिक अधिकारों का अवसान

एस. राज // श्रम कानूनों और मजदूर वर्ग के सभी जनवादी अधिकारों को ध्वस्त करना इतिहास में किसी भी फासीवादी सरकार के प्रमुख लक्ष्यों में एक रहा है। इसी तरह भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार ने भी 2014 आम चुनाव जीत कर सत्ता में आने के बाद से ही देश में 44 केंद्रीय श्रम कानूनों की … More श्रम सुधार : श्रम संहिताओं का आगमन, श्रमिक अधिकारों का अवसान

कृषि विधेयक : कृषि नीति के मौजूदा बदलाव सरमाएदारों पर महर – गरीबों पर कहर

एस. वी. सिंह // भारत के किसान की ‘मुक्ति’ का नम्बर भी आखिरकार लग ही गया!! मोदी सरकार समाज के एक के बाद दूसरे हिस्से की ‘मुक्ति’ की हड़बड़ी में है, रुकने-सुनने को बिलकुल तैयार नहीं। ‘मुक्ति’ से बचने की कोई गुंजाईश ही नहीं! इस बार, लेकिन, लगता है कुछ ज्यादा ही हो गया। सशक्त … More कृषि विधेयक : कृषि नीति के मौजूदा बदलाव सरमाएदारों पर महर – गरीबों पर कहर

बिहार चुनाव : जनविरोधी सरकार से हिसाब चुकता करें!

शेखर // पूंजीवादी-साम्राज्‍यवादी तथा फासीवादी लूट की व्‍यवस्‍था को खत्‍म करने के लिए समाजवाद के लक्ष्‍य के साथ आगे बढ़ें! [पिछले अंक से जारी] बिहार चुनाव में अब एक महीने से भी कम का समय रह गया है। पहले दौर का नामांकन दो दिनों बाद शुरू होने वाला है। चुनावी पार्टियों के बीच आपसी गठबंधन … More बिहार चुनाव : जनविरोधी सरकार से हिसाब चुकता करें!

अभूतपूर्व बेरोजगारी और भारतीय पूंजीवाद

प्रसाद वी. // कोरोना के कारण किए गए लॉकडाउन ने भारत में बेरोजगारी दर को इतिहास में कभी न देखे गए स्तर तक पहुंचा दिया है। संकट इस वजह से और भी गंभीर हुआ क्योंकि सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता तक के लिए कोई व्यापक श्रम साध्य कार्यक्रम नहीं लिया जैसा ऐसे संकटों में … More अभूतपूर्व बेरोजगारी और भारतीय पूंजीवाद

इतिहास के पन्नों से – सोफी शोल : फासीवाद विरोधी बहादुर योद्धा

एम. असीम // जर्मन नाजियों ने करोड़ों की तादाद में यहूदियों, जिप्सीयों, स्लावों, आदि का जनसंहार तो किया ही था, 1933 से 1945 के दौरान हिटलर के फासिस्ट शासन का प्रतिरोध करते हुए 77 हज़ार जर्मन नागरिकों को भी कोर्ट मार्शल और नाज़ियों की तथाकथित विशेष या ‘जन अदालतों’ द्वारा मौत की सज़ा दी गयी … More इतिहास के पन्नों से – सोफी शोल : फासीवाद विरोधी बहादुर योद्धा