‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! 

संपादकीय | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) बजट व अन्य आर्थिक नीतियां – ‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों-अमीरों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! – फासीवादी दौर का ‘वेलफेयर’ मॉडल सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनावों के पहले मुफ्त चीजें या फ्रीबीज देने के राजनीतिक दलों के वादे पर नाराजगी जताई और कहा कि लोग काम … More ‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! 

नई आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से

अजय सिन्हा | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) आम तौर पर 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के दौर की आर्थिक नीतियों पर चर्चा होती है, तो प्राय: तत्कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक कार्यचालन (actual working) को उजागर करने पर हमारा ध्यान न के बराबर होता है। ध्यान महज नीतियों के अच्छे या बुरे होने पर … More नई आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से

कृषि कानून वापसी : चारों तरफ से घिरा भे‍ड़ि‍या फिर भेड़ की खोल में आने को बेताब

कृषि कानून वापस लेने की घोषणा पर एक त्वरित प्रतिक्रिया : संपादक मंडल, यथार्थ |

चारों तरफ से घिरा भे‍ड़ि‍या एक बार फिर भेड़ की खोल में आने को बेताब ; साम्प्रदायिक साजिशों से खबरदार और आपस की एकजुटता को बनाये रखें; “आंदोलन की मार” और “चुनावी हार” की भाषा समझने वाले वाले फासिस्टों को यूपी में हराने के लिये पूरी ताकत लगाएं; … More कृषि कानून वापसी : चारों तरफ से घिरा भे‍ड़ि‍या फिर भेड़ की खोल में आने को बेताब

[किसान आंदोलन] बिगुल मंडली के साथ स्‍पष्‍ट होते हमारे मतभेदों का सार : यथार्थ

संपादक मंडल, यथार्थ यह लेख किसान आंदोलन पर आह्वान पत्रिका (बिगुल) के साथ हमारी जारी बहस के बीच उसके सार के रूप में तैयार किया गया है, जो मूलतः ‘यथार्थ’ पत्रिका (वर्ष 2, अंक 1 | मई 2021) में प्रकाशित हुआ है। इसे प्रकाशित करने के पीछे हमारा लक्ष्य है कि लंबी खिचती इस बहस में, जिसमें सैद्धांतिक पहलु भी व्याप्त हैं, बहस के मुख्य मुद्दे पाठकों की नज़र और समझ में बने रहें। किसान आंदोलन पर ‘यथार्थ’ व ‘द ट्रुथ’ पत्रिकाओं में छपे सभी लेखों, और इसके साथ ‘आह्वान’ में छपी हमारी आलोचना, की लिंक लेख के अंत में मौजूद … More [किसान आंदोलन] बिगुल मंडली के साथ स्‍पष्‍ट होते हमारे मतभेदों का सार : यथार्थ

“मार्क्सवादी चिंतक” की अभिनव पैंतरेबाजियां और हमारा जवाब [3]

प्रोलेटेरियन ऑर्गनाइसिंग कमेटी, सीपीआई (एमएल) कॉर्पोरेट के नए हिमायती क्या हैं और वे क्रांतिकारियों से किस तरह लड़ते हैं [तीसरी किश्त] यह लेख ‘आह्वान’ पत्रिका में छपी आलोचना की प्रति आलोचना की तीसरी किश्त है। यथार्थ (अंक 11-12) में छपी पिछली किश्तों को पढ़ने के लिए यहां (पहली) और यहां (दूसरी) क्लिक करें। ‘द ट्रुथ’ (अंक … More “मार्क्सवादी चिंतक” की अभिनव पैंतरेबाजियां और हमारा जवाब [3]

कॉर्पोरेट को लाल सलाम कहने की बेताबी में शोर मचाती ‘महान मार्क्सवादी चिंतक’ और ‘पूंजी के अध्येता’ की ‘मार्क्‍सवादी मंडली’ का घोर राजनैतिक पतन [2]

प्रोलेटेरियन रिऑर्गनाइज़िंग कमिटी, सी.पी.आई. (एम.एल.) यह लेख ‘आह्वान’ पत्रिका में छपी आलोचना की प्रति आलोचना की दूसरी किश्त है। यथार्थ, अंक 11 में छपी पहली किश्त पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं – “कार्पोरेट के नए हिमायती क्‍या हैं और वे क्रांतिकारियों से किस तरह लड़ते हैं [1]” आह्वान द्वारा जारी इस आलोचना पर ‘द … More कॉर्पोरेट को लाल सलाम कहने की बेताबी में शोर मचाती ‘महान मार्क्सवादी चिंतक’ और ‘पूंजी के अध्येता’ की ‘मार्क्‍सवादी मंडली’ का घोर राजनैतिक पतन [2]

दिल्ली बॉर्डर पर इफ्टू (सर्वहारा)

एस. राज / जारी किसान आंदोलन में मजदूर वर्गीय हस्तक्षेप (18-26 जनवरी 2021) इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (सर्वहारा) [इफ्टू (सर्वहारा)] द्वारा जारी किसान आंदोलन में मजदूर-वर्गीय दृष्टिकोण से हस्तक्षेप करने हेतु एक जमीनी अभियान का आयोजन किया गया। इस हस्तक्षेप का लक्ष्य था मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि होने के बतौर किसानों की मुक्ति और … More दिल्ली बॉर्डर पर इफ्टू (सर्वहारा)

जनगणना और पूंजीवाद की राजनीति : सरना धर्म कोड व आदिवासी अस्तित्व

अमिता कुमारी // नवंबर की इस माह, ग्यारह तारीख को, झारखंड विधान सभा ने एक विशेष अधिवेशन के तहत बैठक की। सरना धर्म कोड बिल के लिए एक प्रस्ताव पारित हुआ और आदिवासियों की एक लंबे अरसे से लंबित मांग आंशिक तौर पर पूरी हुई। यह बिल अब केंद्र से स्वीकृति का इंतज़ार कर रही … More जनगणना और पूंजीवाद की राजनीति : सरना धर्म कोड व आदिवासी अस्तित्व

एंगेल्स का पुनरावलोकन : पितृसत्ता की ऐतिहासिक भौतिकवादी पुनर्रचना

[अमिता कुमारी] वर्तमान में हमारे बीच के करीब सभी समुदाय पितृसत्तात्मक हैं; और जब से लिखित दस्तावेजों द्वारा हमें इतिहास ज्ञात हैं, तब से समाज ऐसा ही है। तब क्या यह समझा जाए कि पितृसत्ता हमारे बीच हमेशा से है? क्या स्त्री-परवशता एक स्वाभाविक/ प्राकृतिक परिघटना है? एक मार्क्सवादी इस पारंपरिक मत को मानने वाला आखिरी … More एंगेल्स का पुनरावलोकन : पितृसत्ता की ऐतिहासिक भौतिकवादी पुनर्रचना

[बुटाणा बलात्कार] पुलिस हिरासत में हैवानियत की शिकार नाबालिग दलित महिला

दो पुलिस कर्मियों की दर्दनाक हत्या बुटाणा, जिला सोनीपत, हरियाणा (दिल्ली से 82 किमी पश्चिम) [एस. वी. सिंह] जींद शहर में पढ़ते हुए रीना (बदला हुआ नाम) और अमित एक दूसरे के नज़दीक आए, मित्रता हुई और एक दूसरे के लिए चाहत बढ़ती गई। मार्च में देशभर में लॉक डाउन घोषित हुई और स्कूल-कॉलेज बंद … More [बुटाणा बलात्कार] पुलिस हिरासत में हैवानियत की शिकार नाबालिग दलित महिला