दो पुलिस कर्मियों की दर्दनाक हत्या
बुटाणा, जिला सोनीपत, हरियाणा (दिल्ली से 82 किमी पश्चिम)
[एस. वी. सिंह]
जींद शहर में पढ़ते हुए रीना (बदला हुआ नाम) और अमित एक दूसरे के नज़दीक आए, मित्रता हुई और एक दूसरे के लिए चाहत बढ़ती गई। मार्च में देशभर में लॉक डाउन घोषित हुई और स्कूल-कॉलेज बंद हो गए। रीना अपने गाँव बुटाणा वापस आ गई। 29 जून की रात को दोनों ने गाँव से बाहर हरियाली पार्क में मिलने का फैसला किया। रीना साथ में अपनी चाहेरी बहन शीना (बदला हुआ नाम) को साथ लेकर रात को लगभग 10 बजे हरियाली पार्क के लिए निकली जहाँ अमित गाड़ी में अपने तीन दोस्तों के साथ इन्तेजार कर रहा था। बुटाणा गाँव की पुलिस चौकी के दो पुलिस कर्मी, सिपाही रविंदर तथा पी एस ओ कप्तान सिंह बाइक पर रात्रि गश्त के लिए निकले और उन्होंने उन युवकों को देख लिया। पुलिस का पहला बयान है कि उन्होंने अमित और रीना को गाड़ी में ‘आपत्तिजनक’ स्थिति में देखा। रविंदर ने कथित रूप से अमित से रीना को एक रात के लिए उसे देने को कहा जिसे वो पुलिस चौकी ले जाना चाहता था। अमित गुस्से में आ गया और रविंदर को बताया कि वे दोनों शादी करने वाले हैं। रविंदर के ज़िद करने पर अमित ने उन्हें कथित रूप से रिश्वत देने का प्रस्ताव भी किया और विनती की कि उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए। रविंदर ने पैसे लेने से इंकार कर दिया और रीना को गाड़ी में से खींचकर नीचे गिरा दिया और उसके साथ ज़बरदस्ती करने लगा जिसे अमित सहन नहीं कर पाया और चाकू से रविंदर पर पीछे से हमला कर दिया। चाकू रविंदर की गर्दन पर लगा और वो वहीँ ढेर हो गया। उसके बाद अमित ने कप्तानसिंह की छाती पर जोर से वार किया और वो भी लहू लुहान हो गिर पड़ा। उसके बाद वे सभी लोग वहां से भाग गए। कप्तानसिंह ने अपने हाथ पर अमित की गाड़ी का नम्बर नोट कर लिया था। घटना स्थल से लगभग मात्र एक किमी पर स्थित पुलिस चौकी को किसी ने कोई सूचना नहीं दी। पुलिस जब सुबह लगभग 5 बजे (30 जून) घटना स्थल पहुंची तो दोनों पुलिस कर्मी मर चुके थे। पुलिस महकमे में खलबली मच गई। गाड़ी का नंबर मालूम पड़ने पर हरियाणा पुलिस के अन्वेषण विभाग सी आई ए गोहाना की टीम ने दो पुलिस कर्मियों के क़त्ल की एफ आई आर दर्ज की जिसमें अमित, उसके दोस्त तथा रीना शीना दोनों को हत्या का आरोपी बनाया गया। उसके बाद जींद जाकर लगभग 4 बजे अमित को एनकाउंटर में मरा घोषित कर दिया। उसके अगले दिन 1 जुलाई को पुलिस ने शीना को हिरासत में ले लिया और उसके अगले दिन मतलब 2 जुलाई को रीना की मां उसे लेकर बुटाणा पुलिस चौकी पहुंची और रीना को पुलिस को सौंप दिया। रीना और शीना को पुलिस ने 6 जुलाई को अदालत में पेश किया और दोनों को करनाल जेल भेज दिया गया। इस दर्दनाक घटना की असलियत उजागर होने की प्रक्रिया तब शुरू हुई जब रीना और शीना के घर वालों को उनसे मिलने नहीं दिया गया और एक महिला, जो करनाल जेल के उसी वार्ड में बंदी थी जिसमें दोनों लड़कियाँ बन्द थीं, ने रीना के परिवार से संपर्क कर बताया कि दोनों लड़कियों की हालत बहुत गंभीर है, रक्त स्राव हो रहा है और उन्हें तुरंत उचित ईलाज की ज़रूरत है। इन्डियन एक्सप्रेस में 28 अक्टूबर को छपी रिपोर्ट के मुताबिक जेल प्रशासन ने भी पीड़िता की मां को बताया कि उनकी बेटी जब से यहाँ लाई गई है तब से लगातार उसके शरीर से खून बह रहा है।
फरीदाबाद से प्रकाशित साप्ताहिक मज़दूर मोर्चा और चंडीगढ़ स्थित संगठन ‘बेख़ौफ़ आज़ादी’ की टीमों ने इस घटना की विस्तृत जाँच की जिससे इस घटना में हुई हैवानियत उजागर हुई है। अमित के पिता राजकुमार जींद शहर में ई-रिक्शा चलाते हैं उन्होंने मज़दूर मोर्चा टीम को बताया कि अमित 30 जून को दोपहर बाद लगभग 4 बजे घर आया था और उसे पुलिस ने घर से गिरफ्तार किया उसके कुछ समय बाद ही उन्हें सूचित किया गया कि अमित ने पुलिस पर हमला किया और वो मुठभेड़ में मारा गया। घर से जाते वक़्त उसकी जेब में 14500 रुपये भी थे, उसकी लाश से कोई पैसा बरामद नहीं हुआ। दूसरा तथ्य है कि पुलिस ने अदालत से 2 दिन का रिमांड लिया था जबकि उन्हें 4 दिन बाद 6 जुलाई को अदालत में प्रस्तुत किया गया। इस बीच पुलिस हिरासत में जो हुआ वो दिल दहलाने वाला है। रीना ने बयान दिया है जिसमें उसने बताया कि उसके साथ 10 से 12 पुलिस वालों ने दो दिन तक सामूहिक बलात्कार किया। इतना ही नहीं उसके गुप्तांगों में बियर की बोतल तथा डंडा भी डाला गया। उसने अपने बयान में कुछ पुलिस वालों का नाम भी लिया है तथा ये भी बताया है कि वो बाकी को सामने लाने पर पहचान लेगी। रीना की माँ 20 जुलाई से लगातार उनकी लड़की पर हुए बर्बर ज़ुल्मों और सामूहिक बलात्कार की एफ आई आर लिखवाने को भटकती रही। बहुत मुश्किल से कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से रिपोर्ट पुलिस ने 30 जुलाई को ही लिखी और नाम दर्ज रिपोर्ट होने के बावजूद किसी भी पुलिस कर्मी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। कानून को धता बताने की तीसरी गंभीर सच्चाई ये है कि रीना की जन्म तिथि 23.08.2002 है इससे सिद्ध होता है कि अपराध होने के वक़्त वो नाबालिग थी लेकिन उसे बाल सुधर गृह ना भेजकर करनाल जेल भेजा गया। 21 अक्टूबर से राष्ट्रीय मानवता आयोग की जाँच शुरू होने के बाद ही उसे बाल सुधर गृह करनाल भेजा गया। इस मामले की जाँच के लिए ए एस पी निकिता की अध्यक्षता में एस आई टी भी गठित कर दी गई है लेकिन लोग न्यायिक जाँच और दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। इसी सम्बन्ध में रीना की मां की ओर से चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर हो चुकी है।
असलियत उजागर होने के बाद हरियाणा भर में तीव्र आक्रोश है। 26 अक्टूबर को ‘संयुक्त संघर्ष समिति फरीदाबाद’ के झंडे तले डी सी ऑफिस फरीदाबाद में आक्रोश प्रदर्शन हुआ तथा ज्ञापन दिया गया। उसके बाद 29 अक्तूबर को छात्र एकता मंच, छात्र अभिभावक संघ, नौजवान भारत सभा तथा बेख़ौफ़ आज़ादी की ओर से अम्बेडकर पार्क सोनीपत में रोष सभा हुई जिसके बाद पूरी घटना की न्यायिक जाँच, दोषी पुलिस कर्मियों पर सख्त कार्यवाही, दोनों प्रताड़ित लड़कियों की एम्स में मेडिकल जाँच और उनकी तत्काल रिहाई की मांग शामिल हैं। आन्दोलनकारी संगठनों द्वारा प्रशासन को ये चेतावनी भी दी गई है कि यदि 10 नवम्बर तक उक्त न्यायोचित कार्यवाही ना की गई तो 10 तारीख को प्रदेश भर में ज़बरदस्त आन्दोलन होंगे। नाबालिग महिला पर हुई इस बे-इन्तेहा हैवानियत को पूरी गंभीरता से लेते हुए आन्दोलनकारी संगठनों ने हर जिले में होने वाले संयुक्त आन्दोलन का नेतृत्व कौन करेगा, ये ब्यौरा भी जारी किया है : सोनीपत– एन बी एस, छात्र एकता मंच, भारतीय किसान पंचायत, मज़दूर अधिकार संगठन तथा एस यू सी आई, हिसार– डी ए एस एफ आई, फरीदाबाद– इंकलाबी मज़दूर केंद्र और मज़दूर मोर्चा, यमुनानगर– अम्बेडकर युवा मंच, चंडीगढ़– बेख़ौफ़ आज़ादी तथा एस एफ एस, गोहाना- मनरेगा मज़दूर यूनियन, कुरुक्षेत्र– ए एस डब्लू ए, डी ए एस एफ आई, इस्माईलाबाद– मज़दूर किसान यूनियन, कैथल– नौजवान भारत सभा, नरवाना– यूथ फॉर चेंज, गुडगाँव– भीम आर्मी, झज्जर– ए आई एम एस ओ, सिरसा– दिशा छात्र संगठन, डी ए एफ आई, जीन्द- के वाई एस। हरियाणा की राजनीति का ये बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव है। ऐसी संजीदगी और समर्पण से संयुक्त आन्दोलन कभी नहीं हुए। इसके लिए सभी संगठनों के छात्र बधाई के पात्र हैं तथा प्रदेश भर की जनता ने इस आन्दोलन में पूरी शिद्दत के साथ भाग लेना चाहिए। ज़ुल्म, शोषण और अन्याय के विरुद्ध संयुक्त जन आन्दोलन की इस रवायत को स्थाई बनाया जाना ज़रूरी है।
सवाल जो हरियाणा की जानता हरियाणा पुलिस से पूछ रही है
- पुलिस कर्मियों ने अपने ऊपर हमले का खतरा भांपने के बाद भी पुलिस चौकी जो वहाँ से मात्र एक किमी की दूरी पर है, फोन कर सूचना और अतिरिक्त पुलिस फोर्स क्यों नहीं मांगी? पूरी घटना में कोई गोली नहीं चली। पुलिस पर हमला चाकू से हुआ जिसका समय लगभग 1 बजे रात का है। उसके बाद हमलावर भाग गए। दोनों पुलिस कर्मियों के शरीर से खून बहता रहा क्योंकि उनके शवों को सुबह 5 बजे पुलिस ने बरामद किया। हमले के तुरंत बाद पता चलता तो मुमकिन है उनकी दर्दनाक मौत ना हुई होती।
- अमित और रीना को कथित रूप से ‘आपत्तिजनक स्थिति’ में पाने के बाद पुलिस कर्मी लड़की को पुलिस चौकी क्यों ले जाना चाहते थे? सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि किसी भी महिला को शाम 7 बजे के बाद ना तो हिरासत में लिया जा सकता है ना उन्हें पुलिस स्टेशन में रखा जा सकता है। महिला पुलिस क्यों नहीं बुलाई गई?
- अमित को 4 बजे जिंदा, स्वस्थ गिरफ्तार किया गया था जैसा की उसके पिता ने बताया। हथियार बन्द पुलिस वालों पर एक निहत्था बन्दी बनाया गया व्यक्ति कैसे हमला कर सकता है? हर ‘एनकाउंटर’ की ये एक कहानी कब तक सुनते रहेंगे?
- अदालत ने दोनों महिलाओं की पुलिस रिमांड 2 दिन की मंज़ूर की थी उन्हें 4 दिन तक पुलिस हिरासत में कैसे रखा गया?
- पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दोनों महिलाएं जब तक पुलिस चौकी में रहीं, पूरे समय एक महिला पुलिस कर्मचारी उनके साथ रहीं। उक्त महिला का नाम क्यों नहीं बताया जा रहा है भले उनका ट्रान्सफर अब दूसरी जगह हो गया है।
- नाबालिग लड़की को बाल सुधार गृह में रखने की बजाए जेल में क्यों रखा गया?
मूल प्रश्न : इस मामले की गहन न्यायिक जाँच होनी आवश्यक है जिससे पूरी घटना की असलियत सामने आ सके, कोई भी अपराधी बचने ना पाए। लेकिन महिला उत्पीडन, बर्बर दमन, बलात्कार और उसके बाद राक्षसीय बदला लेने के लिए, हैवानियत की इन्तेहा करते हुए उनके शरीर को क्षत विक्षत कर डालने की प्रवृत्ति, इन सबका एक व्यापक अध्ययन ज़रूरी है। घोर पित्रसत्तात्मक रुग्ण मानसिकता के चलते एक सवाल बार-बार उछाला जाता है, लड़कियाँ इतनी रात घर से बाहर गईं ही क्यों? मतलब पुरुष जब मर्जी जहाँ चाहें जाएँ लेकिन महिलाएं क्यों जाती हैं। बल्लभगढ़ में दिनांक 26 अक्तूबर को एक छात्रा को दोपहर दिन में, मुख्य रोड पर सरे आम पहले खींचकर कार में डालने की कोशिश की गई जब इसमें कामयाबी नहीं मिली तो उसे गोली मार दी गई। उसका क़सूर ये था कि उसने एक गुंडे मवाली से शादी करने से मना कर दिया था। इस घटना से, क्या, पहले विकृत मानसिकता वाले सवाल का जवाब नहीं मिल जाता? मतलब महिलाओं का उनके शरीर पर भी अधिकार स्वीकार नहीं किया जा सकता!! ऐसी वीभत्स घटनाओं से प्रतीत होता है जैसे महिलाओं का पुरुषों से बराबरी का दावा समाज को सहन नहीं हो रहा। ‘सदियों से गुलाम रही महिलाएं हमारी बराबरी कैसे कर सकती हैं’ ऐसे अपराधों की जड़ में ये रुग्ण मानसिकता काम कर रही है। महिला शरीर को ही इस व्यवस्था द्वारा एक वस्तु में बदल दिया गया है। महिला सम्मान और महिला मुक्ति की लड़ाई मौजूदा पूंजीवादी-फासीवादी व्यवस्था की चौहद्दी के बीच नहीं जीती जा सकती। महिला मुक्ति संग्राम को समग्र बनाने की ज़रूरत है और इस लड़ाई को पूंजीवादी सत्ता से मुक्ति की लड़ाई से जोड़ने की दरकार है।
[यह लेख मूलतः यथार्थ : मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी स्वरों एवं विचारों का मंच (अंक 7 / नवंबर 2020) में छपा था]
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