मई दिवस 2025 के अवसर पर इफ्टू (सर्वहारा) का पैगाम

✒️ इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (सर्वहारा) अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (1 मई) को मजदूर अपने त्योहार के रूप में मनाएं! मजदूर वर्ग के गौरवशाली इतिहास को याद करें और इस संकटग्रस्त व घोर जनविरोधी पूंजीवादी व्यवस्था को परास्त करने की तैयारी करें! जाति-धर्म में ना बटें, अपनी मजदूर-वर्गीय पहचान को आगे करें! साथियो! हर साल … More मई दिवस 2025 के अवसर पर इफ्टू (सर्वहारा) का पैगाम

नई आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से

अजय सिन्हा | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) आम तौर पर 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के दौर की आर्थिक नीतियों पर चर्चा होती है, तो प्राय: तत्कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक कार्यचालन (actual working) को उजागर करने पर हमारा ध्यान न के बराबर होता है। ध्यान महज नीतियों के अच्छे या बुरे होने पर … More नई आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से

नयी मानवता – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-2)

रामवृक्ष बेनीपुरी | ‘सर्वहारा’ #68-69 (16 जनवरी / 1 फरवरी 2025) (3) आयोजित अर्थनीति व्यक्तिगत सुरक्षा का इत्मीनान सबको दिलाती है। कहीं बीमार हो गया तो मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा? बुढ़ापे में किसका सहारा मैं लूँगा? इन सब बातों की चिन्ता पूँजीवादी समाज में मानवता को व्याकुल किये रहती है। इस चिन्ता … More नयी मानवता – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-2)

उन्मुक्त स्त्रीत्व – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-1)

रामवृक्ष बेनीपुरी | ‘सर्वहारा’ #67 (1 जनवरी 2025) सोवियत संघ में स्त्रीत्व ने एक नये संसार में प्रवेश किया है। सोवियत नारियां पुरुषों के साथ एक नयी समता का उपभोग करती हैं- चाहे वे जिस क्षेत्र में भी हों- शिक्षा में, राजनीति में, उद्योग में, पद-मर्यादा में, संस्कृति में। जारशाही से बढ़कर स्त्रियों को गुलाम … More उन्मुक्त स्त्रीत्व – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-1)

अक्टूबर क्रांति का सदेंश – “जो काम नहीं करेगा, वह खाएगा भी नहीं”

संपादकीय | ‘सर्वहारा’ #62(25 अक्टूबर 2024 | अक्टूबर क्रांति विशेषांक) आज से 107 वर्ष पूर्व, 25 अक्टूबर 1917 के दिन रूस में मजदूर वर्ग ने बोल्शेविकों के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग का तख्ता पलट दिया था जिसे अक्टूबर क्रांति कहा जाता है। इस क्रांति में विजयी मजदूर वर्ग ने पूंजीवादी राज्य की जगह अपना नया … More अक्टूबर क्रांति का सदेंश – “जो काम नहीं करेगा, वह खाएगा भी नहीं”

वैलेंटीना तेरेशकोवा – अंतरिक्ष में जाने वाली दुनिया की पहली महिला

आज से 61 साल पहले 16 जून 1963 को मजदूर वर्ग के राज्य, सोवियत यूनियन, की वैलेंटीना तेरेशकोवा अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं थी। उन्होंने ‘वोस्तोक-6’ विमान पर सवार हो 48 बार पृथ्वी की परिक्रमा की और लगभग 3 दिन तक अंतरिक्ष में रहीं थी। इस दिन तक भी … More वैलेंटीना तेरेशकोवा – अंतरिक्ष में जाने वाली दुनिया की पहली महिला

आज का युवा वर्ग और स्तालिन की विरासत

[सोवियत समाजवाद के निर्माता और विश्व सर्वहारा के महान नेता व शिक्षक कॉमरेड स्तालिन के जन्मदिवस पर पीडीवाईएक द्वारा जारी लेख] 21 दिसंबर 2020 अगर बात युवा वर्ग की हो और साथ में स्तालिन की क्रांतिकारी विरासत पर भी चर्चा हो रही हो, तो जर्द बर्फीली सर्दी में भी रगों में गरमी दौड़ने लगती है। … More आज का युवा वर्ग और स्तालिन की विरासत

[Engels At 200] Remembering Friedrich Engels: The Condition Of Working Class Today And Our Tasks Ahead

Shekhar // Introduction Most of us will agree that Marx and Engels, though they were separate individuals, together form a single entity and are in no way separable sofar as the purpose and the entire course of their life (after maturity) and work are concerned. They together formed a unique personality and made a genius. … More [Engels At 200] Remembering Friedrich Engels: The Condition Of Working Class Today And Our Tasks Ahead

[Memoir] In Memory Of Departed Comrade Chandra Pulla Reddy (1917 – 9 Nov 1984)

Shekhar // Com. Chandra Pulla Reddy, affectionately called comrade CP, was the creator, organiser, leader and inspirer of the prestigious Godavari Valley Resistance Movement of the erstwhile united Andhra Pradesh State. Many don’t know that the other name of Godavari Valley was/is Chandra Pulla Reddy. There are numerous folk songs dedicated to him and his … More [Memoir] In Memory Of Departed Comrade Chandra Pulla Reddy (1917 – 9 Nov 1984)

एंगेल्स का पुनरावलोकन : पितृसत्ता की ऐतिहासिक भौतिकवादी पुनर्रचना

[अमिता कुमारी] वर्तमान में हमारे बीच के करीब सभी समुदाय पितृसत्तात्मक हैं; और जब से लिखित दस्तावेजों द्वारा हमें इतिहास ज्ञात हैं, तब से समाज ऐसा ही है। तब क्या यह समझा जाए कि पितृसत्ता हमारे बीच हमेशा से है? क्या स्त्री-परवशता एक स्वाभाविक/ प्राकृतिक परिघटना है? एक मार्क्सवादी इस पारंपरिक मत को मानने वाला आखिरी … More एंगेल्स का पुनरावलोकन : पितृसत्ता की ऐतिहासिक भौतिकवादी पुनर्रचना