मई दिवस 2025 के अवसर पर इफ्टू (सर्वहारा) का पैगाम

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (1 मई) को मजदूर अपने त्योहार के रूप में मनाएं!

मजदूर वर्ग के गौरवशाली इतिहास को याद करें और इस संकटग्रस्त व घोर जनविरोधी पूंजीवादी व्यवस्था को परास्त करने की तैयारी करें!

जाति-धर्म में ना बटें, अपनी मजदूर-वर्गीय पहचान को आगे करें!

साथियो!

हर साल की तरह एक बार फिर से मई दिवस (1 मई) आने वाला है। केवल भारत ही नहीं, यह दुनिया भर के मजदूरों के लिए एक त्योहार है। मई दिवस का इतिहास मजदूर-मेहनतकशों के शहादतों से भरे जुझारू आंदोलनों का गौरवशाली इतिहास है। आज मजदूर वर्ग भले ही विखंडित हो और तमाम तरह के हमले झेल रहा हो, लेकिन उसका इतिहास यह बताता है कि जब-जब मजदूर-मेहनतकश वर्ग संगठित हो कर लड़ाई के लिए खड़ा हुआ है, कोई ताकत उसे हरा नहीं पायी है। विश्व सर्वहारा के महान नेता लेनिन 1896 में एक पर्चे में मई दिवस के बारे में लिखते हैं – “उस दिन वे दमघोंटू कारखानों को छोड़कर, संगीत की लय पर अपने लहराते हुए झण्डों के साथ शहर की मुख्य सड़कों पर मार्च करते हैं – अपने मालिकों को लगातार अपनी बढ़ती हुई शक्ति दिखलाते हुए। उस दिन भारी संख्या में मजदूर इन प्रदर्शनों में जुटते हैं, जहां भाषणों में, बीते सालों में मालिकों पर मिली जीतों को फिर से गिनाया जाता है और आने वाले सालों में संघर्षों की रणनीति तैयार की जाती है। इन प्रदर्शनों में मजदूरों की हुंकार के नीचे दबे मालिकों की यह हिम्मत नहीं होती कि वे कारखानों में न आने के लिए मजदूरों पर एक पैसे का भी जुर्माना करें।”

जाहिर है, आज मजदूर आंदोलन का वो दौर नहीं है और मजदूर वर्ग चौतरफा मार झेल रहा है। संकटग्रस्त पूंजीवाद अपने सबसे खूंखार रूप में सामने आ चुका है और समाज पर फासीवादी दमन लाद रहा है जिसकी सबसे बड़ी मार मजदूर वर्ग पर पड़ रही है। बेरोजगारी चरम पर है। 14-16 घंटे हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी जो मजदूरी मिलती है उसमें पेट भर भोजन जुटा पाना तक मुश्किल हो जाता है, शिक्षा और इलाज की तो बात ही छोड़िये। मजदूर वर्ग की अगुआ ताकतें भी छोटे-छोटे टुकड़ों में विखंडित हैं और कई तरह के भटकाव लिए हुए हैं। ऐसे दौर में मजदूर वर्ग की ऐतिहासिक भूमिका और उसकी संगठित क्षमता की ताप को भुला देना आसान हो जाता है, लेकिन मजदूरों को और उनकी अगुआ ताकतों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये सर्वहारा वर्ग ही है जो दुनिया को सड़ते और मरणासन्न पूंजीवाद की जकड़ से आजाद कर सकता है और केवल खुद को ही नहीं, बल्कि आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ने को मजबूर अन्य सभी तबकों को भी मुक्ति दिला सकता है। मई दिवस के दिन हम ठीक इसी बात को याद करते हुए पूंजीवाद के खिलाफ इस ऐतिहासिक लड़ाई, जो मजदूर वर्ग के कंधों पर है, के लिए संगठित होने का प्रण लेते हैं। मजदूर साथियों आइये, अपने उस गौरवशाली इतिहास के बारे में जानें।

मई दिवस का इतिहास

19वीं सदी के उत्तरार्ध में पूरे अमरीका में मजदूर आंदोलन की एक जोरदार नई लहर उठी जो 70-80 के दशक में अपने चरम पर थी। 1877 में जबरदस्त हड़तालें हुईं। इन हड़तालों के दमन के लिए बड़े पूंजीवादी कारपोरेशनों और सरकार ने सैनिक दस्ते भेजे, जिनका रेलवे और स्टील कारखाने के दसियों हजार मजदूरों ने बहादुरी से प्रतिरोध किया। इन संघर्षों का पूरे मजदूर आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह अमरीका में पहला ऐसा जन-उभार था जो राष्ट्रीय पैमाने पर हुआ था और अमरीकी मजदूर-वर्ग द्वारा संचालित था। वह संघर्ष, जिससे ‘मई दिवस’ का जन्म हुआ, इसी समय अमेरिका में, 1884 में, ‘काम के घण्टे आठ करो’ आन्दोलन से शुरू हुआ। और इस संघर्ष का चरम बिंदु, जहां से पहली मई समस्त मजदूर वर्ग के लिए खास हो गयी, बनी दो साल बाद 1 मई 1886 को होने वाली आम हड़ताल और उसके बाद हे-मार्केट स्क्वायर की घटना। ‘आठ घंटे कार्य दिवस’ का यह आन्दोलन हर उस जगह प्रचलित हो चला था जहां उभरती हुई पूंजीवादी व्यवस्था के तहत मजदूरों का शोषण हो रहा था। यह बात इस तथ्य से सामने आती है कि अमरीका से पृथ्वी के दूसरे छोर पर स्थित आस्ट्रेलिया में निर्माण क्षेत्र के मजदूरों ने यह नारा दिया – ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम’ और 1856 में वे अपनी मांग मनवाने में एक हद तक सफल भी रहे। अमरीका के कई शहरों में मजदूरों द्वारा निर्मित ‘आठ-घण्टा दस्ते’ और इसी तरह के अन्य जत्थे उभरे। इस आन्दोलन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसने अकुशल और असंगठित मजदूरों को भी हड़ताल में खींच लिया था।

हे-मार्केट में क्या हुआ?

1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो में मजदूरों का एक विशाल जनसैलाब उमड़ा और संगठित मजदूर आन्दोलन के आह्वान पर शहर के सारे औजार चलने बन्द हो गए और मशीनें रुक गयीं। हड़ताल का केन्द्र शिकागो था, जहां हड़ताल सबसे ज्यादा व्यापक थी, लेकिन पहली मई को कई और शहर इस मुहिम में जुड़ गए थे और वहां भी शानदार हड़तालें हुईं। हड़ताल में लाखों मजदूर शामिल हुए और हजारों फैक्टरियों में काम ठप हो गया। मजदूरों का इतना व्यापक आंदोलन अमरीका में आज तक नहीं हुआ था। पूंजीपतियों का स्वर्ग खतरे में पड़ चुका था। आग की तरह फैलते जा रहे इस आंदोलन के और बढ़ने का मतलब था पूंजी की बादशाहत पर पूरी तरह लगाम लग जाना, और पूंजीपति वर्ग को ये मंजूर नहीं था। 3 मई को ‘मैककार्मिक रीपर वर्क्स’ पर हड़ताली मजदूरों की शांतिपूर्ण सभा चल रही थी। छः हजार से ज्यादा मजदूर और उनके परिवार सभा में शामिल थे। अचानक पुलिस ने हड़तालियों पर हमला शुरू कर दिया और निहत्थी भीड़ पर गोलियां चला दी। जो मजदूर उसके बाद भी डटे रहे उन्हें लाठियों से पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया। इस क्रूर हमले में छः मजदूर मारे गए थे और कई बुरी तरह घायल हुए थे। अगले दिन 4 मई को हे-मार्केट स्क्वायर पर इसके विरोध में मजदूरों को जुटने का आह्वान किया गया। यह सभा खत्म होने ही वाली थी कि पुलिस ने मजदूरों की भीड़ पर फिर से हमला कर दिया। इसी बीच अचानक भीड़ में एक बम फेंका गया। इस हमले में चार मजदूर और सात पुलिसवाले मारे गये। मजदूरों के शांतिपूर्ण हड़तालों और अपनी वाजिब मांगों के लिए हो रहे जनांदोलनों का सरकार व पुलिस के पास बस यही जवाब था – पहले मजदूरों पर बर्बर हमला करो और जब इससे भी काम ना बने तो षड्यंत्र के तहत बम धमाके करवा कर, इसका आरोप आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मजदूर नेताओं (पार्सन्स, स्पाइस, फिशर और एंजेल) पर डाल कर उन्हें फांसी पर चढ़ा दो और बाकियों को जेल में ठूस दो।

लेकिन मालिक वर्ग के तमाम हथकंडों के बावजूद ‘आठ घंटे कार्य दिवस’ की लड़ाई वहां थमी नहीं, बल्कि और तेजी से पूरे विश्व में आग की तरह फैल गयी। 1889 में ‘द्वितीय इंटरनेशनल’ ने अपने पहले सम्मेलन में घोषणा करते हुए कहा कि ‘आठ घंटे कार्य दिवस’ की मांग को लेकर एक विशेष दिन पूरे विश्व में मजदूरों द्वारा एक साथ हड़ताल व प्रदर्शन किये जाएं और इसके लिए 1 मई 1890 का ही दिन चुना गया। उस दिन पहली बार कई देशों के मजदूरों ने एक ही झंडे के नीचे, एक ही नारे के साथ, सड़कों पर मार्च किया, हड़तालें की और प्रदर्शन किये। मजदूर वर्ग ने सही मायने में उस दिन दिखाया कि दुनिया के सभी मजदूर एक हैं – उनकी मांग, उनके नारे और उनका संघर्ष एक है।

मजदूरों-मेहनतकशों के संघर्ष का गौरवशाली इतिहास

मजदूर वर्ग के जीवन का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है और जब तक ये दो वर्ग, मजदूर और पूंजीपति, मौजूद हैं, ये संघर्ष थमेगा नहीं। ‘आठ घंटे कार्य दिवस’ आंदोलन के पहले और बाद में भी दुनिया भर में मजदूरों के ऐतिहासिक संघर्ष हुए हैं। 1871 में बहादुर कम्यूनार्डो (जिसमें छोटे उद्योगों और निर्माण जैसे असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूर भी शामिल थे) ने पेरिस में राजशाही को परास्त करके सत्ता अपने कब्जे में ली थी और मजदूरों के पक्ष में कई कानून बनाये थे। यह सरकार भले ही केवल 72 दिन चली हो जिसके बाद इसे बर्बरता से कुचल दिया गया, लेकिन यह विश्व सर्वहारा की एक ऐसी ऐतिहासिक जीत थी जिसने सर्वहारा वर्ग की सत्ता का प्रश्न उसके संघर्षों के केंद्र में ला कर खड़ा कर दिया। ‘आठ घंटे कार्य दिवस’ आंदोलन के नारों और पर्चों में भी सर्वहारा वर्ग के मुख्य लक्ष्य, यानी सर्वहारा वर्ग का राज कायम करने, की ओर बढ़ने की दिशा साफ दिखती है। और सर्वहारा वर्ग की यह सबसे बड़ी जीत रूसी क्रांति के रूप में 1917 में मिली जब सोवियत यूनियन के अंतर्गत दुनिया के एक बड़े हिस्से में मजदूर-मेहनतकशों का राज कायम हुआ जहां भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा और गैरबराबरी का नामोंनिशान ना था। जहां किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का शोषण संभव ना था। सोवियत यूनियन की प्रेरणा से यूरोप और अमेरिका के सर्वहारा अपनी जीवन-जीविका और अधिकारों की मांग उठाते हुए क्रांतिकारी संघर्ष की राह पर ना चल पड़ें, जिसकी संभावना उस वक्त प्रबल थी, इसलिए पूंजीपति वर्ग ने उनकी सभी मांगों को मानते हुए उन्हें कई सुविधाएं दी। यही काम भारत में भी आजादी के बाद किया गया। मजदूरों के काम के घंटे आठ हों, मजदूरी में वृद्धि, ओवरटाइम, पक्की नौकरी, सेवानिवृत्ति लाभ, सवेतन अवकाश, मातृत्व अवकाश, भोजन, आवास, शिक्षा व चिकित्सा जैसी कई अधिकार दिए गये।  

आज के दौर में मई दिवस का महत्व

साथियो! मई दिवस के हड़तालों द्वारा लगाई चिंगारी ने मजदूरों के कई संघर्षों को दावानल में बदलने का काम किया। इन संघर्षों में मजदूर वर्ग ने कई किले फतेह किये और कई अधिकार हासिल किये। लेकिन पिछले कई दशकों से हमें लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। हमारे सभी जीते हुए किले ध्वस्त हो चुके हैं। वो सभी अधिकार जो मजदूर वर्ग ने शहादतें दे कर हासिल किये थे, आज उन्हें आसानी से छीना जा रहा है। मजदूरों के पक्ष में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके सरकार नए लेबर कोड ले आई है जिसके तहत आठ घंटे का कार्य दिवस, जहां से मई दिवस की शुरुआत हुई थी, को खत्म करके अब 12 घंटे का कार्य दिवस कानूनन रूप से लागू किया जा रहा है। आज तो पूंजीपतियों द्वारा हफ्ते में 70 घंटे काम करने की बात कही जा रही है! बाकि लड़ कर जीते गये अधिकार जैसे यूनियन बनाने का अधिकार, स्थायी नौकरी, ओवरटाइम, कार्यस्थल पर सुरक्षा, आदि सभी अधिकारों को कुचला जा रहा है। आज के फासीवादी दौर में आवाज उठाने की जगह भी अत्यंत संकुचित हो गयी है। सीमित पूंजीवादी जनतंत्र भी आज लगभग खत्म किया जा चुका है। सरकार के खिलाफ बात तक करना या अपने मूलभूत अधिकारों के लिए आवाज उठाने पर कानूनन रूप से (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, यूएपीए और एस्मा जैसे कानूनों के जरिये) या सरकारी संस्थाओं (ईडी, सीबीआई, आदि) के जरिये जेलों में डाल देना या गुंडों और भीड़ के द्वारा हत्या तक करवा देना आम बात हो गयी है। दूसरी तरफ मजदूरों को जाति-धर्म के झगड़ों में उलझाया जा रहा है। कल तक केवल हिंदू-मुस्लिम का प्रचार हावी था, जो आज भी है, लेकिन अब जातियों के आधार पर भी मजदूरों को बांट कर उनकी जातीय कुंठा को उकसाया जा रहा है, खासकर पिछड़ी जातियों से आने वाले मजदूरों को उनकी जाति/उपजाति के गौरव के लिए लड़ने को ललकारा जा रहा है। सतह पर ये जाति उत्पीड़न के खिलाफ होने वाली लड़ाई प्रतीत होती है, लेकिन असल में ये पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों को जातियों/उपजातियों में बांट कर उनकी एकता तोड़ने और उन्हें आपस में लड़ाने की चाल है। मजदूरों को मुखर रूप से इसकी खिलाफत करनी होगी। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी पहली पहचान मजदूर वर्ग की है। यही पूंजीपतियों के खिलाफ उनकी व्यापक एकता का एकमात्र आधार है।

मजदूर-मेहनतकश साथियो! आज के अंधकारमय दौर में हमें मई दिवस के सुनहरे गौरवशाली इतिहास को याद करने और मई दिवस के जाबाज शहीदों से प्रेरणा लेने की जरूरत है। हमें अपनी आर्थिक मांगों की सीमा को तोड़ कर, सारे दुःख-तकलीफ की जड़, इस आदमखोर व्यवस्था को ही अपने निशाने पर लेना होगा। एकमात्र तभी हम और हमारी आने वाली पीढ़ी एक सुखमय और सम्मानजनक जीवन जी पायेगी। पूरी मानवजाति के दुश्मन पूंजीवाद-फासीवाद को परास्त करके ही हम सही मायने में एक पूर्ण जनतंत्र, सर्वहारा जनतंत्र की ओर बढ़ पाएंगे जहां हर हाथ को काम होगा, जहां शिक्षा-आवास-भोजन-चिकित्सा जैसी सुविधाएं सभी के लिए उपलब्ध होंगी और जहां मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण संभव नहीं होगा। यह काम केवल दुनिया को बनाने-चलाने वाला वर्ग यानी सर्वहारा वर्ग ही कर सकता है। आइये! इतिहास ने हमारे कंधों पर जो कार्यभार सौपां है हम उसे पूरा करने के लिए संगठित हों!

इंकलाब जिंदाबाद! मई दिवस जिंदाबाद! मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम!
(18.04.2025)


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