सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण को कथित अवमानना मामले में दोषमुक्त करो!
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों पर हमला करना प्रोग्राम बंद करो!
आज पूरे देश के जनवादपसंद प्रगतिशील नागरिकों के बीच सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की चर्चा हो रही है। ट्वीटर पर लिखे गए उनके एक वक्तव्य पर स्वत: संज्ञान लेते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आनन-फानन में अपनी गरिमा का बिना ख्याल किये उन पर अवमानना का मामला दर्ज कर लिया और द्रुतगति से उस पर सुनवाई भी शुरू कर दी। उन पर जो दोषारोपण किया गया है, उसकी प्रति मांगने के बावजूद प्रशांत भूषण को वह उपलब्ध नहीं कराया गया। अवमानना के इस मामले को जानबूझकर मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश अरूण मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ के हवाले किया गया ताकि निष्पक्ष सुनवाई की संभावना को कम कर दिया जाए, क्योंकि सबको पता है कि कतिपय कारणों से जस्टिश अरूण मिश्रा उनसे (प्रशांत भूषण) नाराज चल रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि प्रशांत भूषण पिछले अनेक वर्षों से उच्चतर न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के मसलों को उठाते रहे हैं। वे साफ तौर पर कई माननीय न्यायाधीशों, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के अनेक वरिष्ठ न्यायाधीश और यहां तक कि कुछ भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश तक शामिल रहे हैं, द्वारा बरती गई अनियमितताओं तथा भ्रष्टाचार के मसलों की निष्पक्ष जांच की मांग करते रहे हैं। एक जिम्मेवार नागरिक तथा जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के वशीभूत होकर प्रशांत भूषण वो सबकुछ करते रहे हैं जो उनके पेशेवर करियर के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। और अपने खुलेपन एवं सच कहने के साहस की कीमत आज प्रशान्त भूषण को चुकानी पड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट उनको दंडित करने का फैसला ले चुका है। उनको सजा से बचने के लिए माफी मांगने की सलाह दी जा रही है। लेकिन प्रशांत भूषण ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी है और माफी मांगने से साफ़ तौर पर इंकार कर दिया है। उन्होंने खंड पीठ के समक्ष अपने वकील के माध्यम से जो लिखित वक्तव्य पेश किया है, उसमें कोर्ट के तौर-तरीकों पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है। उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि वे कानून सम्मत तरीके से न्यायालय द्वारा किए गए फैसले को स्वीकार करते हुए सजा भुगतने को तैयार हैं, लेकिन किसी भी हालत में वे माफी नहीं मांगेंगे, क्योंकि उनका मानना है कि अपने फेसबुक ट्वीटर पेज पर उन्होंने कोई भी ऐसी बात नहीं कही है, जिससे उच्चतम न्यायालय की अवमानना हुई है। उलटे एक लोकतांत्रिक देश व समाज के एक जिम्मेवार नागरिक होने के कारण उनका जो दायित्व है, उन्होंने उसी का निर्वहन किया है। प्रशांत भूषण की सोच भगतसिंह एवं महात्मा गांधी में आदर्श ढूंढ़ने से उत्प्रेरित है, न कि संघ परिवार के ‘नायक’ सावरकर में, जिनने ब्रिटिश शासकों से माफी मांग ली थी और अंग्रेजों द्वारा दिये गये वजीफे या गुजारे भत्ते पर अपना जीवन यापन किया था।
प्रशांत भूषण द्वारा अपनाए गए रूख के चलते सच में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया है। उसकी स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। वह प्रशांत भूषण को सबक सिखाने पर भी आमादा है और अपनी साख पर बट्टा भी लगने देना नहीं चाहती। आज पूरे देश में प्रशान्त भूषण के पक्ष में देश का जनतांत्रिक मानस खड़ा हो गया है। उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। सर्वत्र उच्चतम न्यायालय द्वारा अपनाए गये रवैये की आलोचना हो रही है।
पिछले छः-सात वर्षों से, जबसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इशारे पर चलने वाली फासीवादी तानाशाही मिजाज वाली सरकार केन्द्र में सत्ता में आयी है, लगातार संघ परिवार एवं मोदी-शाह के नेतृत्व में केन्द्र सरकार द्वारा तमाम पूंजीवादी जनतांत्रिक संस्थाओं पर सुनियोजित तरीके से हमले किए जा रहे हैं। स्वतंत्र कही जाने वाली मीडिया ने आत्मसमर्पण कर गोदी मीडिया का रूप धारण कर लिया है। सीबीआई को केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करने वाले एक कठपुतली संस्था में परिवर्तित किया जा चुका है। संविधान की रक्षा करने की शपथ लेने वाली न्यायपालिका का एक अच्छा – खासा हिस्सा सरकार एवं कार्यपालिका के समक्ष घुटने टेकने लगा है और शायद अपने संवैधानिक दायित्वों से मुकरता जा रहा है। जिन जनतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रताओं एवं मानवाधिकारों की रक्षा में उसे तनकर खड़ा होना चाहिए था, वहीं ऐन मौके पर वह मौन धारण कर लेती है या हमलावरों के साथ खड़ी दिखाई देती है। न्यायपालिका की यह अधोगति सच में बहुत दर्दनाक है। लगातार हो रहे क्षरण एवं पतन के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने अबतक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह अपने में सुधार लाने में रुचि रखती है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह न्याय नहीं, बल्कि न्याय का माखौल उड़ाने में सुख की अनुभूति करती है। प्रशांत भूषण पर चलाये जा रहे कथित अवमानना के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का असली चेहरा सामने आ गया है। सच में भारत के पूंजीवादी जनतंत्र के समक्ष यह एक मुश्किल भरा दौर है, जब सीमित जनतंत्र को भी खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं।
अभी हाल के दिनों में सुधा भारद्वाज, आनन्द तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, सोमा सेन, साईं बाबा सरीखे नामी-गिरामी व विख्यात करीब एक दर्जन से अधिक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों को भीमा कोरेगांव मामले में गलत ढंग से फंसाकर जेल के सलाखों के पीछे डाला गया है। इसी साल की शुरुआत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जानबूझकर भड़काये गये दंगों के मामले में कपिल मिश्रा जैसे उकसावेबाजों को खुला छोड़कर निर्दोष लोगों को एक साज़िश के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है।
ऐसे कठिन समय में जन अभियान, बिहार अपनी जनतांत्रिक प्रतिबद्धताओं तथा न्यायप्रियता के उच्चतम आदर्शों को पुनः एक बार प्रतिष्ठित करते हुए खुल्लमखुल्ला प्रशांत भूषण के पक्ष में खड़े होने का एलान करता है। हम जोरदार स्वरों में मांग करते हैं :
- उच्चतम न्यायालय द्वारा संचालित अवमानना के मामले में प्रशांत भूषण को दोषमुक्त करार दिया जाए।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर हमले करना बंद किया जाए।
- फासीवाद की तरफ बढ़ रहे हर कदम का कारगर विरोध किया जाए।
- भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार तमाम विख्यात बुद्धिजीवियों को अविलंब रिहा किया जाए।
- दिल्ली दंगे में संलिप्तता के नाम पर गिरफ्तार किये गये हजारों निर्दोष सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाए और कपिल मिश्रा सरीखे दंगाइयों को तुरंत जेल की सलाखों के भीतर बंद किया जाए।
निवेदक :
जन अभियान, बिहार
जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, जन प्रतिरोध संघर्ष मंच, जनवादी लोक मंच, कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया, सर्वहारा जन मोर्चा, सीपीआई (एम.एल.), एमसीपीआई(यू.), सीपीआई (एमएल) – न्यू डेमोक्रेसी, जनवादी मजदूर किसान सभा, सीपीआई (एमएल)-एस.आर. भाई जी
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