धर्म जाति इलाके भाषा के आधार पर आपसी नफरत मजदूर आंदोलन के लिए जहर है

श्रमिकों में परस्पर नफरत का जहर फैलाने वालों को बेनकाब कर ही मजदूर अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो लड़ सकते हैं।

27 अगस्त को हरियाणा के चरखी दादरी में पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक प्रवासी मजदूर साबिर मलिक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। अखबारी रिपोर्ट के मुताबिक गोमांस खाने के शक में यह हत्या की गई। झुग्गी बस्ती में रहने वाले इस मजदूर को कुछ लोगों ने प्लास्टिक की बोतलें बेचने के बहाने एक दुकान पर बुलाया और वहां यह कहकर कि वह गोमांस खाता है, उसकी पिटाई की। कुछ लोगों ने वहां हस्तक्षेप कर रोका तो फिर दूसरी जगह उसकी पिटाई की गई, जिससे उस मजदूर की मृत्यु हो गई।

महाराष्ट्र के जलगांव जिले के बुजुर्ग निवासी हाजी अशरफ मुन्यार कल्याण में अपनी बेटी से मिलने के लिए जा रहे थे जब नासिक के पास एक एक्सप्रेस ट्रेन में गोमांस ले जाने के शक में साथ बैठे कुछ यात्रियों ने पिटाई कर दी। बताया जाता है कि एक व्यक्ति ने कहा कि गोमांस की बदबू आ रही है और इस बात पर ही इस बुजुर्ग की पिटाई कर दी गई। बुजुर्ग इतने भयभीत हो गए कि उन्होंने इस पर पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई,  सजा के डर से मुक्त अपराधियों द्वारा खुद बनाए गए विडिओ के सोशल मीडिया में आने के बाद ही अब इस पर कार्रवाई की बात हो रही है।

इसी तरह हमने बार बार ऐसी खबरें देखी हैं जब महाराष्ट्र, दक्षिण भारत, असम, दिल्ली, आदि राज्यों में कभी उप्र, बिहार, तो कभी बंगाल, तो कभी उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रवासी मजदूरों के खिलाफ किसी चोरी, बच्चे उठाने, बलात्कार या अन्य किसी अपराध की अफवाह फैलाई गई और कुछ आपराधिक तत्वों द्वारा इन प्रवासी मजदूरों पर हमले किए जाने लगे। परिणाम यह हुआ कि इन प्रवासी मजदूरों को अपना रोजगार व बकाया मजदूरी का भुगतान तक छोड़, अपनी किसी तरह जुटाई गई छोटी सी गृहस्थी को जल्दबाजी में खुर्द बुर्द कर भीड़ भरी गाड़ियों में किसी तरह पशुओं की तरह भरकर अपने मूल राज्यों की ओर पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है।

पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं बारंबार घटित हो रही हैं जिनमें अलग समुदायों, जातियों, इलाकों, भाषा बोलने वाले मेहनतकशों व अन्य आम लोगों के बीच एक दूसरे के बारे में पूर्वाग्रह व शत्रुता फैलाने वाली बातों का जोरदार व तीव्र दुष्प्रचार किया जाता है। एक समुदाय या जगह के मजदूरों को भड़काया जाता है कि उनकी समस्याओं व तकलीफों के लिए दूसरे समुदाय के खासतौर पर प्रवासी मजदूर जिम्मेदार हैं। विशेषतया पश्चिम बंगाल के प्रवासी श्रमिकों को बांग्लादेशी घुसपैठिया कहकर उनके खिलाफ नफरत फैलाई जाती है। स्थानीय मजदूरों को बताया जाता है कि इन अवैध घुसपैठियों ने उनके रोजगार छीन लिए हैं और इनकी वजह से ही मजदूरी भी कम हो गई है। इसी तरह बहुसंख्यक हिंदू समुदाय वालों के बीच सभी मुसलमानों के खिलाफ भी जहरीला प्रचार किया जाता है।

तथाकथित ‘ऊंची’ कहे जाने वाली जातियों के मजदूरों में पहले से ही जो जातिवादी पूर्वाग्रह मौजूद है उन्हें भी यह कहकर और तीव्रता से भड़काया जाता है कि इन ‘नीची’ कहे जाने वाली जातियों को शिक्षा व रोजगार में आरक्षण जैसे कुछ अधिकार देने से ही सवर्ण जाति वालों से इसके मौके छिन गए हैं। उन्हें बताया जाता है कि जातिगत उत्पीड़न से सुरक्षा हेतु इन्हें मिले कानूनी अधिकारों की वजह से इन ‘छोटी जाति’ वालों का माथा घूम गया है और इन्हें सबक सिखाना जरूरी है।

फिर हमारे समाज में पुरूषों के बीच स्त्रियों से श्रेष्ठता और उनके मालिक होने का भाव भी लंबे वक्त से मौजूद है। फिल्में, विडिओ, रील्स, आदि तथा अन्य प्रचार के तरीकों से किशोरों व युवाओं में स्त्रियों को नीचा या दासी समझ उनके साथ यौन सहित हर प्रकार के दुर्व्यवहार को सामान्य मानने की इस प्रवृत्ति को भी जोरों से फैलाया जा रहा है। इनके बीच नशे का भी प्रचार किया जाता है। इस तरह खुद मजदूरों के अंदर से कुछ को लंपटता की ओर प्रवृत्त किया जाता है। इन प्रवृत्तियों का शिकार होने के बाद लंपटता का शिकार बने मजदूर वर्ग के हिस्से को भी सांप्रदायिक ताकतों व शासक वर्ग द्वारा मजदूर वर्ग के बीच परस्पर नफरत के आधार पर वैमनस्य व हिंसा फैलाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

अगर हम गौर करें तो पाएंगे कि एक तो लंबे अरसे से बैठे पूर्वाग्रहों और सुनियोजित दुष्प्रचार की वजह से ऐसी कुछ घटनाएं तो लगातार होती ही रहती हैं जिनका इस्तेमाल कर सांप्रदायिक वैमनस्य को और अधिक हवा दी जाती है। लेकिन इसके साथ ही जब शासक तबके के खिलाफ मेहनतकश जनता में असंतोष फैला होता है या अपने अधिकारों के लिए मजदूर सचेत व संगठित होकर कोई आंदोलन करते हैं तब मालिक पूंजीपति वर्ग व उसके सहायक राजनीतिक दल व प्रशासनिक अमले की मदद से ऐसा दुष्प्रचार खास तौर पर साजिशाना ढंग से भी फैलाया जाता है। इसके लिए व्हाट्सप, विडिओ, रील्स, आदि सोशल मीडिया के साथ ही मजदूर वर्ग के अंदर के कुछ भाड़े के लंपट तत्वों को भी काम पर लगाया जाता है ताकि मजदूरों को परस्पर नफरत में उलझाकर उनकी एकता भंग कर दी जाए और मेहनतकशों के संघर्ष को कमजोर कर कुचल दिया जाए।

असल में मजदूर वर्ग के पास अपने अधिकारों के लिए तथा शोषण के खिलाफ संघर्ष का सबसे बड़ा हथियार उसकी वर्ग चेतना व एकजुटता ही है। संघर्षरत मजदूरों का पुराना नारा रहा है – सब एक के लिए और एक सबके लिए। यह एकजुटता टूट जाए तो मजदूर वर्ग जुल्म के खिलाफ लड़ ही नहीं सकता। इस प्रकार धर्म जाति इलाके भाषा के भेदों के परे मजदूरों की एकता मजदूर संघर्षों के लिए प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की तरह है। जैसे ऑक्सीजन के अभाव में जहरीली हवा में सांस लेने से इंसान बीमार हो जाता है और मर भी सकता है, उसी तरह परस्पर नफरत की वजह से एकता टूट जाने से मजदूर आंदोलन भी बिखर जाता है और तात्कालिक रूप से समाप्त भी हो सकता है।

जैसा मजदूर वर्ग के सबसे बड़े चिंतक कार्ल मार्क्स ने हमें सिखाया कि दुनियाभर के मजदूरों की फौलादी एकता कायम करना व उसकी हिफाजत करना मजदूर वर्ग के लिए अति आवश्यक है। तभी मजदूर वर्ग अपने अधिकारों के लिए तथा अपनी शोषणमुक्ति के लिए संघर्ष तेज व सशक्त कर सकता है। अतः अपने अधिकारों के लिए संघर्ष की चेतना रखने वाले श्रमिकों के लिए जरूरी है कि वे अपनी एकता की ऑक्सीजन में जहरीली गैस का संक्रमण रोकें और धर्म जाति इलाके भाषा आदि के आधार पर मजदूर वर्ग के बीच मौजूद उच्चता व हीनता के सभी पूर्वाग्रहों व आपसी नफरत को मिटा दें। इसके लिए जो भी व्यक्ति या संगठन मजदूरों के बीच ऐसा नफरती प्रचार करते हैं और वैमनस्य फैलाकर हिंसा करने की कोशिश करते हैं उनके बारे में सावधान रहना, और उनको ऐसा करने से रोकना वर्ग सचेत अगुआ मजदूरों का एक बहुत बड़ा कर्तव्य है।


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