महंगाई से त्रस्त मजदूरों की स्थिति बयान करता एक खत

✒️ राजीव कुमार | ‘सर्वहारा’ #57 (16 अगस्त 2024)

(लेखक पटना के निर्माण क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं)

आज देश में महंगाई सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। मैं 2020 में जम्मू-कश्मीर गया था काम करने। उस समय महंगाई आज की तुलना में कम थी। मात्र 450 रुपये दिहाड़ी मिलती थी वहां। लेकिन वहां की मेस में 500 रुपये में पूरे महीने तीनों वक्त का खाना हो जाता था। आज की महंगाई का ये आलम है कि 500 रुपये में एक गरीब आदमी दाल रोटी तक नहीं खा पाता है। आज मामूली चावल, दाल, गेंहू इतने महंगे हो गए हैं कि दो वक्त के खाने के लिए मजदूरों को सोचना पड़ता है। साग-सब्जी खाए तो हफ्तों बीत जाते हैं। मांस-मछली-दूध तो दुर्लभ हो गया है। बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए भी ये पौष्टिक चीजें जरूरी हैं ताकि उनका चौतरफा मानसिक और शारीरिक विकास हो पाए लेकिन इस महंगाई के दौर में ये उन्हें यह देना संभव नहीं है। 

कुछ साल पहले की बात याद करें तो 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का फरमान सुनाया था। उस समय मैं दिल्ली के कमरुद्दीन नगर में लेबर का काम कर रहा था। नोटबंदी होते ही स्थिति बहुत विकट हो गयी। नोटबंदी के पांच दिन बाद भी काम के बदले में मालिक जबरन पुराना 500 का नोट देता था। ये नोट ना घर भेज सकते थे, ना राशन दूकान पर कोई लेने को तैयार था ना ही इससे साग-सब्जी ही खरीदी जा सकती थी। मेरे पास तीस हजार रूपए की जमापूंजी 500-500 के पुराने नोटों में थी। बैंक में जाता तो केवल आधार कार्ड से बैंक वाले नोट बदलने में आना-कानी करते थे। मैं नोट बदलने के लिए काम-धाम छोड़ कर हर दिन सुबह चार बजे से लाइन में लग जाता था। लेकिन मेरा नंबर आने में दोपहर हो जाती। फिर पता चलता कि पैसे खत्म होने के कारण आज नोट नहीं बदले जायेंगे, कल फिर आना होगा। हार कर किसी दूकान वाले से बिनती करता तो वो 500 के नोट के बदले में 400 रु देने को तैयार होता, लेकिन साथ ही शर्त रखता कि उस 400 का सामान लेना होगा उसकी दूकान से। ऐसी घटना हमने जीवन में पहली बार देखी थी। इस नोटबंदी से सबसे ज्यादा परेशानी गरीब मजदूरों को हुई थी।

आज की परिस्थिति वैसी ही भयानक लगती है। दिन भर काम करके भी मजदूर उतना नहीं कमा पाते कि भर पेट खाना खा पायें, बचाने की तो बात ही छोड़िये। हमारी मजदूरी कुछ बढ़ी जरूर है लेकिन महंगाई उससे कई गुना ज्यादा बढ़ गयी है।


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