दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति

✒️ अंशु कुमारी | ‘सर्वहारा’ #57 (16 अगस्त 2024)

मेरा नाम अंशु है। मैं एक सरकारी स्कूल में दसवीं की छात्रा हूं और इस लेख के माध्यम से अपने स्कूल में व्याप्त कुछ गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं। ये समस्याएं न केवल मेरे और मेरे साथियों की पढ़ाई पर असर डाल रही हैं, बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़ा करती हैं।

सबसे पहली बात यह है कि हमारे स्कूल में पर्याप्त कक्षाओं की कमी है। एक ही कक्षा में क्षमता से ज्यादा छात्रों को बैठना पड़ता है। शिक्षकों और जगह की भी कमी है जिसकी वजह से कक्षाओं की संख्या बढ़ाना भी संभव नहीं है। ऐसे में बच्चों का सवाल पूछना या किसी विषय को समझने में दिक्कत होने पर उसे दुहराने को कहना संभव नहीं रह जाता जिससे पढ़ाई में काफी समस्या होती है।  इतने बच्चे जब एक ही कक्षा में होते हैं तो शिक्षकों के लिए उन्हें अनुशासित करना भी कठिन हो जाता है। इसके कारण शांत माहौल में पढ़ाई नहीं हो पाती और ध्यान लगाना मुश्किल होता है। एक कक्षा में ज्यादा बच्चे होने का सबसे बड़ा असर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (CWSN – Children With Special Needs) पर पड़ता है क्योंकि ज्यादा बच्चों के बीच शिक्षक उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते हैं। ये ऐसे बच्चे होते हैं जिन्हें पढ़ने, चीजों को समझने और याद रखने में उनकी उम्र के अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा कठिनाई होती है। अतः इन बच्चों पर शिक्षकों को ज्यादा ध्यान और समय देना चाहिए। लेकिन सरकारी स्कूलों में एक कक्षा में इतने ज्यादा बच्चे होने की वजह से कुछ बच्चों पर विशेष ध्यान देना संभव नहीं हो पाता। इन बच्चों को भी शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए, लेकिन वर्तमान में उनकी समस्याओं को नजर अंदाज किया जा रहा है।

दिल्ली के सोनिया विहार स्थित सरकारी स्कूल की स्थिति (2016, HT)

दूसरी बड़ी समस्या है कि सरकारी स्कूलों में शौचालयों की पर्याप्त सुविधा नहीं होती। इससे सबसे ज्यादा समस्या लड़कियों को होती है। शौचालय अक्सर गंदे होते हैं और वहां पानी की भी दिक्कत रहती है। ऐसे शौचालय के इस्तेमाल से बीमारियां फैलती हैं जिसकी वजह से छात्राओं को स्कूल से लंबी छुट्टी लेनी पड़ती है और उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान भी छात्राओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान जो सुविधाएं छात्राओं को चाहिए होती हैं, जैसे सैनीटरी पैड, एक्स्ट्रा कपड़े, आदि, ये सरकारी स्कूल में उपलब्ध नहीं होते जिसके कारण उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

तीसरी समस्या यह कि हमारे स्कूल में कंप्यूटर लैब नहीं है। इस कारण से हमें कंप्यूटर की शिक्षा का लाभ नहीं मिल पाता जो कि आज के डिजिटल युग में अत्यंत आवश्यक है। किसी भी अच्छे प्राइवेट स्कूल में आज कंप्यूटर लैब है और वहां छात्र-छात्राओं को कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन सरकारी स्कूल के बच्चों को ये अवसर नहीं मिल पाता। हमारे पास प्राइवेट स्कूल में जाने या निजी कोचिंग करने के पैसे नहीं, इसलिए हमें कंप्यूटर की ट्रेनिंग नहीं मिल पाती और हम बाकी बच्चों से पीछे रह जाते हैं। आज कहीं भी नौकरी में कंप्यूटर की ट्रेनिंग के बिना काम नहीं चलता। अतः कठिन परिश्रम करने के बाद भी सरकारी स्कूल से पढ़े बच्चों को इस वजह से नौकरी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

चौथी समस्या है कि हमारे सरकारी स्कूल की इमारत काफी जर्जर हालत में है। बरसात के मौसम में स्कूल की छत से पानी टपकता है, जिससे छात्रों को बैठक में कठिनाई होती है और पढ़ाई का माहौल प्रभावित होता है। दीवारों पर सीलन लगी रहती है जिससे कक्षा में नमी बनी रहती है जो स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। स्कूल के आस पास भी काफी गंदगी रहती है। स्कूल के सामने गाय-भैसों का एक तबेला है। हमें रोज उस तबेले से गुजर कर स्कूल आना होता है जिससे बच्चों को कठियानियां होती हैं। दूसरी ओर, स्कूल के पीछे एक गंदा नाला है। इस नाले की वजह से मच्छरों की समस्या बनी रहती है जिसके कारण बच्चे कई बार बीमार पड़ जाते हैं। बीमार होने पर इलाज में पैसे भी खर्च होते हैं और लंबे समय के लिए पढ़ाई भी छूट जाती है। एक बार इतने लंबे समय स्कूल से दूर होने के बाद कुछ बच्चों की पढ़ाई हमेशा के लिए छूट जाती है क्योंकि आर्थिक दिक्कतों की वजह से उन्हें भी अपने मां-बाप के साथ कुछ काम में लगना पड़ता है।

सरकारी स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है। बोर्ड परीक्षा के लिए सैंपल पेपर्स स्कूल में उपलब्ध नहीं हैं। बाजार में ये सैंपल पेपर्स काफी महंगे मिलते हैं जिसे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे नहीं खरीद पाते। इसकी वजह से उन्हें परीक्षा की तैयारियों में कठिनाई होती है। समाज में हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के बच्चों के बीच काफी भेदभाव किया जाता है। सरकारी स्कूल से पढ़ने वाले बच्चों को इस वजह से नौकरी मिलने में भी दिक्कतें आती है और उन्हें भविष्य में समान अवसर नहीं मिल पाते हैं।

ये स्थिति सिर्फ दिल्ली की नहीं, बल्कि देश के अधिकतर सरकारी स्कूलों की है। इन समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके और सभी छात्रों को समान अवसर मिल सके। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कई भेदभाव का सामना करना पड़ता है। देश में सभी को एक तरह की शिक्षा मिलनी चाहिए, चाहे वो अमीर हो या गरीब। शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए ताकि सभी बच्चे शिक्षित हो पायें और उन्हें अपना जीवन बेहतर करने का समान अवसर मिल पाए।


Leave a comment