✒️ आकांक्षा | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

केन्या में सरकार द्वारा लाये गए नए फाइनेंस बिल 2024 के खिलाफ विगत 25 जून को जनता भारी संख्या में सड़कों पर उतर गयी। यह बिल ऐसा है जिससे मूलभूत चीजों जैसे ब्रेड, खाने का तेल, बच्चों के डायपर, महिलाओं के सैनीटरी पैड, आदि के दाम बढ़ जायेंगे। और तो और अस्पताल में गंभीर बिमारियों का इलाज भी महंगा हो जाएगा। केन्या की राजधानी नाइरोबी में इस बिल की खिलाफत में विगत 25 जून को युवाओं और आम जनता ने संसद पर धावा बोल दिया। इसके जवाब में केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया और लगभग दो दर्जन प्रदर्शनकारी, जिसमें अधिकतर कम उम्र के युवा थे, मारे गए। इस घटना के बाद प्रदर्शन थम जाने के बजाय और बढ़ गए और पूरे देश में फैल गए। मंगलवार शाम को एक सार्वजनिक संबोधन में राष्ट्रपति रुटो ने विरोध प्रदर्शनों को “देशद्रोह” और राष्ट्र के लिए “अस्तित्व का खतरा” बताया था और कहा था कि सरकार ने “राष्ट्र के पास उपलब्ध सभी संसाधनों को जुटा लिया है जिससे यह सुनिश्चित हो कि इस तरह की स्थिति (प्रदर्शन) फिर से न हो, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।” और ऐसा कहते हुए रुटो ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस के साथ-साथ सेना को भी उतार दिया। कई जगह निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायी गयी। कई जगह आंसू गैस के गोले छोड़े गए जिससे लोगों की मौत हो गयी। नेतृत्व कर रहे प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने अगुआ कर लिया और कई लोगों को प्रताड़ित भी किया गया। इन सब के बाद भी जनता पीछे नहीं हटी और सड़कों पर डटी रही। इसका नतीजा हुआ कि 26 जून को जनता से माफी मांगते हुए राष्ट्रपति रुटो को यह बिल वापस लेना पड़ा। यह केन्या की जनता की बहुत बड़ी जीत थी।
लेकिन इस जीत से भी बड़ी बात यह है कि 26 जून को बिल वापस होने के बाद भी प्रदर्शन खत्म नहीं हुए बल्कि और व्यापक हो गए। अब प्रदर्शनकारी युवाओं की मांग है कि जनता पर दमन करने वाला राष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे और गद्दी खाली करे। जनता का गुस्सा इस बात से भी है कि दो साल पहले चुनाव के समय रुटो ने वादा किया था कि वे महंगाई कम करेंगे और युवाओं को रोजगार के अवसर देंगे। लेकिन दो साल बीतने के बाद भी इनमें से कोई वादा पूरा नहीं हुआ, उलटे आम लोगों के इस्तेमाल की मूलभूत चीजों के दाम और बढ़ गए। दूसरी तरफ गद्दी पर बैठे नेताओं का रहन-सहन उनके देश की गरीब जनता से बिलकुल उलट है। वे आलिशान बंगलों में ठाटबाट से रहते हैं, जबकि जनता सड़कों पर महंगाई-बेरोजगारी की मार झेल रही है। अतः ऐसे व्यक्ति को जनता अपने राष्ट्रपति के रूप में नहीं देखना चाहती है। 29 जून तक के आंकड़ों के हिसाब से देश भर में फैले इन प्रदर्शनों में कम से कम 27 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हो अस्पतालों में भर्ती हैं। राष्ट्रपति रुटो के अपने गांव में, जहां उन्हें दो साल पहले चुनाव में भारी समर्थन मिला था, भी जनता उनके खिलाफ सड़कों पर उतर चुकी है और उनके इस्तीफे की मांग कर रही है।
हमें केन्या की जनता से प्रेरणा लेने की जरूरत है जिन्होंने महंगाई, बेरोजगारी और जीवन-जीविका के मुद्दे पर आरपार की लड़ाई छेड़ दी है। हालांकि बिना किसी नेतृत्व और अगुआ केंद्र वाले इस आंदोलन का भविष्य क्या होगा यह कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तय है कि केन्या की जनता ने दुनिया भर के मेहनतकश लोगों के लिए एक मिसाल खड़ी की है। भारत और ऐसे अन्य देशों में भी जनता महंगाई और बेरोजगारी की विकराल होती समस्या से त्रस्त है। लोगों के सामने अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है। आगे का जीवन अंधकारमय लगने लगा है। ऐसे में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाला संघर्ष हमारे लिए प्रेरणादायक है और हमारी अपनी लड़ाई को इससे बल मिलता है। इसके साथ ही, संघर्षरत जनता को यह बात भी समझनी होगी कि उनकी मुक्ति केवल राष्ट्रपति या सरकार बदल देने भर से नहीं होगी। इस पूंजीवादी व्यवस्था में सरकारें आम लोगों के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपतियों का मुनाफा बनाने और बढ़ाने के लिए काम करती हैं। अगर हमें अपना और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करना है तो हमें इस शोषणकारी व्यवस्था को जड़ो से हटा कर, इसकी कब्र पर एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जहां एक आदमी द्वारा दूसरे के शोषण की गुंजाईश ही ना रहे। कोई व्यक्ति किसी दूसरे की मजबूरी का फायदा ना उठा सके। यही हमारी और पूरी दुनिया की जनता की मुक्ति का एक मात्र रास्ता है।