मोदी सरकार पुराने रंग में

✒️ संपादकीय, ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

सहयोगी दलों की बैसाखी पर ही सही, लेकिन मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए। बहुत लोगों का मानना था या मानना है कि बैसाखियों पर टिके नरेंद्र मोदी पहले की तरह मनमानी नहीं कर पाएंगे। लेकिन, संसद सत्र शुरू होते ही ऐसे सारे कयास गलत साबित हो गये। दरअसल फासीवादी ताकतें इतनी आसानी से नहीं झुकती हैं। नीतीश, चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे लोग वैसे भी नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं हैं। हम देख सकते हैं कि सारे बड़े तथा मुख्य मंत्रालय ही नहीं, लोकसभा के अध्यक्ष के पद पर भी मोदी ने अपने उन्हीं चहेतों को बैठा दिया जिनके घोर अलोकतांत्रिक व्यवहार को देश पहले देख चुका है। मोदी निरंतरता और अपनी निडरता का अहसास कराना चाहते थे और वे इसमें सफल हुए। इसे लेकर नीतीश कुमार और नायडू द्वारा पाला बदलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन सारे अनुमान धराशाई हो गये। मोदी ने जो चाहा, वही किया और नीतीश कुमार एवं नायडू ने चूं तक नहीं की। आशा के ठीक विपरीत, हम देख सकते हैं कि नई मोदी सरकार का तेवर कुछ ज्यादा ही उग्र है। यह इस बात का संकेत है कि फासीवादी इतनी आसानी से झुकने या पीछे हटने वाले जीव नहीं हैं। हालांकि इसे बार-बार भुला दिया जाता है।

इस बार भी लोक सभा में नीट (NEET) पर बोलते वक्त राहुल गांधी का माइक बंद कर दिया गया। राज्य सभा में खड़गे के साथ यही किया गया। शपथ के समय का नजारा और भी गहरे संकेतों से भरा है। भाजपा सांसदों को हिंदू राष्ट्र का नारा लगाने दिया गया, जबकि विपक्षी सांसदों द्वारा ‘जय संविधान’ का नारा लगाने पर लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला ने कई बार टोका और टिप्पणी की। यही नहीं, इसका विरोध करने पर पांच बार के सांसद रहे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ ओम बिड़ला ने ‘चलो बैठो’ की भाषा में तू-तड़ाक तक कर दिया। इसी तरह का व्यवहार जम्मू-कश्मीर के एक मुस्लिम सांसद आगा सैय्यद रुहुल्ला के साथ किया गया। उन्होंने बस पिछली लोकसभा में एक भाजपा सांसद द्वारा एक मुस्लिम सासंद को मुसलमान होने के कारण ‘आतंकवादी’ और ‘कटुआ’ कहे जाने की याद दिलाई थी। साथ में यह भी कहा कि तब के अध्यक्ष, जो ओम बिड़ला ही थे, ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। इसी तरह नीट परीक्षा पेपर लीक, नीट परीक्षा दुबारा लिए जाने एवं एनटीए पर चर्चा की मांग की गई, तो सरकार ने इंकार कर दिया। यानी, संसद में विपक्ष को आवाज उठाने की अनुमति नहीं है। जाहिर है, विपक्ष भी अड़ गया और तब संसद को 1 जुलाई तक स्थगित कर दिया गया। जब संसद में यह स्थिति है, तो समझ सकते हैं कि इसके विरोध में सड़क पर उतरने वालों के प्रति इस सरकार का व्यवहार कितना दमनात्मक होगा।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी झूठ परोसा गया। उदाहरण के लिए, कहा गया कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में मोदी सरकार ने स्थाई शांति कायम की है। इस पर विपक्षी सांसदों ने मणिपुर-मणिपुर के नारे भी लगाए, लेकिन संसद टेलीविजन का कैमरा उधर गया ही नहीं। 51 मिनट के राष्ट्रपति अभिभाषण के दौरान नेता सदन मोदी को 73 बार दिखाया गया जबकि नेता प्रतिपक्ष को मात्र 6 बार। इसी तरह सत्तापक्ष को 108 बार दिखा गया जबकि विपक्ष को महज 18 बार।
तो हम हर जगह पुराने की निरंतरता का अहसास कर सकते हैं।

जनतंत्र और जनवाद के प्रति नई मोदी सरकार के रवैये में कितनी निरंतरता है यह इससे पता चलता है कि जब राष्ट्रपति महोदया संसद भवन में आ रही थीं तो साथ में राजशाही का प्रतीक सेंगौल भी चल रहा था। कैमरे के फ्रेम में भी सेंगौल लगभग हर वक्त छाया रहा।

दूसरी तरफ, विपक्षी सांसदों के हाथ में संविधान तो दिखा, लेकिन धर्म के आधार पर मुस्लिमों की फिर से शुरू हुई लिंचिग और उन पर ढाये जा रहे अत्याचार पर कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष चुप ही रहा। इस सत्र में विपक्ष द्वारा उठाये जाने वाले मुद्दों में भी ये मुद्दे शामिल नहीं हैं। मजदूर वर्ग पर हो रहे हमले का विरोध भी उनकी प्राथमिकता में कहीं नहीं दिखता है।
साफ है, फासीवाद के विरुद्ध संघर्ष में इस विपक्ष की जल्द ही असली अग्नि परीक्षा होने वाली है।


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