कॉर्पोरेट सुपर मुनाफों के लिए मजदूरों से निर्ममता

संपादकीय, ‘सर्वहारा’ अखबार (अंक 53 – 16 जून, 2024)

इस वक्त देश में जबरदस्त हीटवेव चल रही है। इस बेहद गर्मी में शरीर में पानी की कमी होने से गंभीर बीमारी का जोखिम रहता है जिससे जान भी जा सकती है। ऐसे में भी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक अमेजन अपने गोदामों में काम करने वाले श्रमिकों पर काम के ऊंचे टार्गेट पूरे करने के लिए दबाव डाल रही है कि वे पानी पीने और शौचालय जाने तक के लिए ब्रेक न लेकर लगातार बिना रुके काम करते रहें।

इससे ही समझा जा सकता है कि यह कंपनी इतनी बड़ी पूंजी वाली कंपनी कैसे बनी है और इसका प्रमुख मालिक जेफ बेजोस दुनिया के सबसे बड़े अमीरों में अपनी गिनती कैसे करवा पाया है। इस कंपनी के बारे में पहले भी अमरीका यूरोप सहित दुनिया भर से मजदूरों पर अत्यधिक दबाव डालकर बहुत ऊंचे काम के लक्ष्य पूरे कराने की खबरें आती रही हैं। कम मजदूरी पर लंबे समय तक और दबाव बना कर बहुत ज्यादा रफ्तार से कराए गए श्रम के जरिए ही कंपनी को वह सुपर मुनाफा होता है जिससे मालिक पूंजीपति तो दुनिया के ऊंचे अमीरों में शामिल हो जाते हैं जबकि मजदूरों की जान पर बन आती है, वे गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं और उनकी औसत आयु अमीरों व मध्य वर्गीय लोगों से बहुत कम होती है।

अमेजन के बारे में अमरीका, इंग्लैंड, जापान, आदि देशों से ऐसी रिपोर्टें पहले भी प्रकाशित होती रही हैं कि कंपनी कैमरों, सेंसरों व एआई के सहारे हर कामगार पर नजर रखती है कि वह हर मिनट/घंटे/दिन में गिनती के हिसाब से अपना काम का लक्ष्य पूरा कर रहा है या नहीं। और दिए गए लक्ष्य की गिनती बहुत ऊंची होती है। इससे पीछे रहने पर अगर कोई मजदूर पानी पीने या टॉयलेट जाने के लिए ब्रेक ले तो सुपरवाइजर डांट फटकार लगाते हुए उसे रोकते हैं। इस दबाव की हालत यह है कि विवश होकर मजदूर पेशाब करने के लिए अपने पास प्लास्टिक की बोतल रखते हैं। जो ड्राइवर ट्रक से माल की डिलीवरी करते हैं उन पर भी ट्रक को कुछ समय के लिए रोकने या मंजिल पर पहुंचने के तय समय से थोड़ा भी विलंब होने पर ऐसा ही दबाव डाला जाता है और नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है। इसलिए वे भी अपने साथ प्लास्टिक बोतल रखने के लिए मजबूर होते हैं।

भारत जैसे देशों में जहां गरीबी और बेरोजगारी अधिक है और जिंदा रहने के लिए श्रमिक कम मजदूरी पर भी किसी तरह नौकरी बचाने के लिए आपस में होड़ करने पर मजबूर होते हैं, हालत और भी बदतर हैं। उदाहरण के तौर पर मीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार गत 16 मई को अमेजन के दिल्ली के पास मानेसर स्थित वेयरहाउस में काम सामान्य दिनों से भी बहुत अधिक था क्योंकि किसी सेल की वजह से बहुत सा माल दूसरे गोदाम में भेजा जाना था। साढे चार बजे पहले एक मैनेजर ने आकर मजदूरों को कड़ी मेहनत व तेजी से बिना रुके काम करते रहने को कहा। फिर एक दूसरे मैनेजर ने सभी श्रमिकों को अपने हाथ उठाकर यह कसम खाने को कहा, ‘जब तक टार्गेट पूरा नहीं होगा, हम बिना रुके काम करेंगे, पानी पीने के लिए भी नहीं रुकेंगे तथा बाथरूम जाने के लिए भी ब्रेक नहीं लेंगे।’

इस गोदाम में दो हजार मजदूर काम करते हैं। दिन की शिफ्ट सुबह 8.30 से शाम 6.30 बजे तक होती है। इसमें आधे घंटे के दो ब्रेक होते हैं। शिफ्ट के दौरान बैठने की कोई जगह नहीं है। ब्रेक के लिए निर्धारित जगह भी बहुत छोटी व गर्म है। मजबूरी में थोड़े से आराम वास्ते ब्रेक के वक्त पुरूष मजदूर लॉकर रूम में व स्त्री मजदूर बाथरूम तक में बैठने को विवश होते हैं। पर मैनेजर तुरंत उन्हें वहां से भी उठाने के लिए पहुंच जाते हैं।

हालांकि काम की जगह पर पंखे व कूलर लगे हैं लेकिन बहुत कम, और इस भयानक गर्मी में उनसे दस कदम हटते ही उनका असर नहीं रहता। आम दिनों में भी यहां 30-35 सेल्सियस तापमान रहता है। खास तौर पर जहां ट्रकों पर लदान व उतारने का काम होता है वहां हालात बेहद खराब होते हैं। धूप में खड़े रहने से ट्रक ट्रेलरों के भीतर भट्टी धधकने जैसी स्थिति होती है। पर मैनेजमेंट का टार्गेट होता है ट्रक को 5 मिनट में खाली कराना। कई बार श्रमिक बेहोश हो गिर जाते हैं। पर उन्हें पैरासिटामोल की एक गोली देकर 10-15 मिनट बाद फिर काम पर लगा दिया जाता है। इतने काम के बाद भी औसतन दस हजार रुपये महीना ही मजदूरी प्राप्त होती है।

असल में यही है वो जनतंत्र, मानवाधिकार और सबका विकास जिसके दावे पूंजीपति वर्ग के नेता, बुद्धिजीवी व मीडिया दिन रात करते हुए मेहनतकशों को धैर्य से कड़ी मेहनत से जिंदगी में सुधार के सपने दिखाते हैं! एक अमेजन ही नहीं, सभी पूंजीवादी कंपनियों में श्रमिकों पर शोषण का शिकंजा ऐसे ही कसा जा रहा है। आजकल राजनीति में जो फासीवाद की चर्चा हम सब कर और सुन रहे हैं, वास्तव में उसकी बुनियाद ही इजारेदार कॉर्पोरेट पूंजी के सुपर मुनाफों की इस असीमित हवस में है। उसके लिए ही हमारे समाज खास तौर पर मेहनतकशों की अभिव्यक्ति, संगठन, आंदोलन, हड़ताल, आदि के हर मौके व आजादी को कुचल देना जरूरी हो गया है। उसके लिए ही मेहनतकशों को परस्पर हिंदू मुस्लिम जैसी नफरत में उलझा देना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हो, अगर मजदूर सचेत, संगठित व एकजुट हो जाएं तो इन दौलत के भूखे सरमायेदारों व उनके मैनेजरों को यह जुल्म करने से रोक उन्हें दिन में ही तारे दिखा दें।

पर नाउम्मीदी की बात नहीं, अमेजन जैसी कंपनियों के मजदूर भी अब सचेत होने लगे हैं, व संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिसंबर में ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’ के नारे पर अमल करते हुए एक साथ ही 36 देशों में विभिन्न जगहों पर अमेजन श्रमिकों ने मिलकर हड़ताल की थी। मजदूर वर्ग अंततः पूंजीवाद को उखाड़ फेंकेगा और सब श्रम करने वालों की आवश्यकता पूरा करने वाला समाजवादी समाज जरूर कायम करेगा।


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