22 सितंबर 2020
साथियो,
देश भर में कोरोना महामारी बगैर किसी रोकटोक के छलांग मारकर बढ़ रही है। जनता कष्ट सह रही है और गरीब, खासकर मजदूर और गरीब किसान सबसे अधिक पीड़ा भुगत रहे हैं। प्रतिदिन कोरोना के करीब एक लाख नए मामले आने लगे हैं और इसके साथ हमारा देश अक्टूबर माह की शुरुआत तक दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश बनने की ओर बढ़ रहा है। कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि प्रत्येक चार में एक भारतीय संक्रमित है।
सरकार ने अर्थव्यवस्था को भी चौपट कर डाला है। अप्रैल से जून की तिमाही में भारत की जीडीपी में लगभग 24% की गिरावट आई है, जो दुनिया के किसी भी देश की अपेक्षा सबसे बड़ी गिरावट है। जीडीपी में इस गिरावट की मार भी गरीबों पर ही पड़ रही है। जहां अप्रैल के बाद अम्बानी की संपत्ति में 35% की वृद्धि हुई है, वहीं अप्रैल से अगस्त के अंत तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1.89 करोड़ नौकरियां खत्म हो चुकी हैं जबकि लॉकडाउन से पहले ही बेरोजगारी पिछले 45 वर्षों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी और अर्थव्यवस्था गिर रही थी।
ऐसे समय में, सरकार द्वारा मजदूरों पर और अधिक हमला करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार द्वारा लॉकडाउन से पूर्व ही श्रम कानूनों में मजदूर-विरोधी बदलाव लाकर मजदूरों पर हमला करने की कोशिश की गई थी। कोरोना काल में कई राज्यों द्वारा, मुख्य रूप से भाजपा शासित राज्यों द्वारा मजदूर-विरोधी कदम उठाये गए, जैसे कि मज़दूरों से बगैर ओवरटाइम दिए 12 घंटे प्रतिदिन काम करवाना और मजदूरों के अधिकारों को निलंबित करना। अब संसद सत्र आहूत किया गया है और संभवतः इस सत्र में औद्योगिक संबंध संहिता व सामाजिक सुरक्षा संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा संहिता, स्वास्थ्य और कार्यस्थल परिस्थितियों को बिना किसी बहस के पारित किया जाएगा। इन संहिताओं के जरिए ठेका प्रथा को मजबूत किया जाएगा। मालिकों को फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट (नियत अवधि अनुबंध) के नाम पर मजदूरों को काम पर रखने और निकालने (हायर एंड फायर) की सुविधा होगी। यूनियन बनाने के अधिकार में भारी कटौती होगी तथा मजदूरों के अन्य कई अधिकार हमले की जद में आ जाएंगे।
इसके साथ ही, सरकार कई प्रतिष्ठानों का निजीकरण भी करने जा रही है। बीपीसीएल, एचपीसीएल और आईओसी जैसी तेल कंपनियां निजीकरण की कतार में हैं। आयुध कारखानों का निजीकरण किया जाना है। भारतीय रेलवे और एयर इंडिया का निजीकरण किया जाएगा और कई सारे बैंकों और बीमा कंपनियों के निजीकरण की संभावना है। इससे न केवल इनमें कार्यरत मजदूरों के अधिकार प्रभावित होंगे, बल्कि इससे देश की सुरक्षा, आर्थिक और सामरिक स्थिति भी खतरे में पड़ जाएगी। सरकार ने किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को भी पारित कर दिया है। इन किसान विरोधी व राष्ट्रविरोधी अध्यादेशों के खिलाफ चल रहे जबरदस्त किसान आंदोलन को हम सलाम करते हैं।
इसके साथ ही सरकार अपने हिन्दुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार को चौड़ा कर रही है और दलितों और आदिवासियों के शोषण के लिये जहरीला वातावरण बना रही है। हाल ही में लाई गई नई शिक्षा नीति इसे अभिव्यक्त कर रही है और इसी प्रकार अगस्त माह के आरम्भ में प्रधानमंत्री द्वारा अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास भी यह दिखाता है व जम्मू और कश्मीर के लोगों पर वर्तमान हमले का द्योतक है।
इस परिस्थिति में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने 23 सितंबर को विरोध दिवस मनाने का आह्वान किया है। हालांकि केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा लॉकडाउन के समय से ही सरकार के खिलाफ विरोध किया जा रहा है लेकिन यह स्पष्ट है कि मजदूरों के इन विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार बहरी बनी हुई है, और सरकार को सुनाने के लिए रस्मअदायगी से आगे बढ़ कर, मजदूर आंदोलन को मजदूर वर्ग के निरंतर, जुझारू, और निर्णायक संघर्ष में तब्दील करने की तरफ बढ़ते हुए, कहीं ज्यादा जोरदार कार्रवाई करने की जरूरत है। इस समय में श्रमिकों के स्वास्थ्य के बारे में उचित मांग करना भी अनिवार्य है। अतः हम निम्न मांगों के साथ देश के मजदूर वर्ग से ज़ोरदार विरोध आयोजित करने का आह्वान करते हैं :
- मजदूर-विरोधी नई श्रम संहिताएं लाना बन्द करो।
- देशभर में मजदूरों के लिए उचित न्यूनतम वेतन घोषित करो।
- जो लोग महामारी के दौरान काम से निकाल दिए गए, उनके खातों में 10-10 हज़ार रुपये डाले जाएँ।
- सभी मजदूरों को लॉकडाउन की अवधि का पूरा वेतन बिना किसी कटौती के भुगतान करो।
- स्थाई प्रकृति के सभी कामों में ठेका प्रथा खत्म करो।
- निजीकरण और नई शिक्षा नीति जैसी जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों को रद्द करो।
- जीडीपी का 5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य के लिए संरक्षित करो।
- इस महामारी के दौरान काम कर रहे हर श्रमिक का 50 लाख का बीमा किया जाये ।
- सभी मजदूरों को भविष्य निधि का पूरा भुगतान करो।
- सभी मजदूरों और पेंशनभोगियों को महंगाई भत्ते का पूरा भुगतान करो।
- कोरोना महामारी के बोझ को मजदूरों और मेहनतकशों की पीठ पर लादना बन्द करो।
23 सितंबर 2020 को भाजपा सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ होने वाले अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन को सफल बनाकर भाजपा सरकार को मज़दूर वर्ग की जोरदार आवाज सुनाएं!
मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)
मासा के घटक संगठन: ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल (AIWC) / ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार / इंडियन काउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (ICTU) / इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (IFTU) / IFTU सर्वहारा / इंकलाबी मज़दूर केंद्र / इंकलाबी मज़दूर केंद्र, पंजाब / जन संघर्ष मंच हरियाणा / कर्नाटक श्रमिक शक्ति / मज़दूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव-बावल / मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड / मज़दूर समन्वय केंद्र / सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर (SWC), तमिल नाडु / स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोऑर्डिनेशन कमिटी (SWCC), पश्चिम बंगाल / ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ़ इंडिया (TUCI)
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