अपनी असुरक्षा से (पाश की कविता)

अवतार सिंह ‘पाश’ | ‘सर्वहारा’ #58 (1 सितंबर 2024) यदि देश की सुरक्षा यही होती हैकि बिना ज़मीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाएआंख की पुतली में ‘हां’ के सिवाय कोई भी शब्दअश्लील होऔर मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहेतो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है हम तो देश को समझे … More अपनी असुरक्षा से (पाश की कविता)

फ़रेब (कविता)

✒️ अली सरदार जाफरी | ‘सर्वहारा’ #57 (16 अगस्त 2024) कौन आजाद हुआ?किस के माथे से सियाही छूटीमेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी कामदर-ए-हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही खंजर आजाद हैं सीनों में उतरने के लिएमौत आजाद है लाशों पे गुजरने के लिएचोर-बाजारों में बद-शक्ल चुड़ैलों की तरहकीमतें काली दुकानों पे खड़ी … More फ़रेब (कविता)

सीढ़ियां (कविता)

✒️ सुकांत भट्टाचार्य (क्रांतिकारी कवि के 98वें जन्मदिन पर प्रस्तुति) हम सीढ़ियां हैं —  तुम हमें पैरों तले रौंदकर  हर रोज बहुत ऊपर उठ जाते हो  फिर मुड़कर भी नहीं देखते पीछे की ओर  तुम्हारी चरणधूलि से धन्य हमारी छातियां  पैर की ठोकरों से क्षत-विक्षत हो जाती हैं — रोज ही।  तुम भी यह जानते … More सीढ़ियां (कविता)

मजदूर यूनियन [कविता]

✒️ यश राज | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024) हम सुबह गहरी नींद में सोएमां ने आवाज लगायीआंखे मलते नींद से जब उठेमां बोली काम पर नहीं जाना है। हां! बोलकर सुबह चौक पर पहुंचादेखो ये भीड़ मजदूरों का मेलाकाम की तलाश में गांव से शहर को आयाखून पसीना ये बेचने को आया। काम की … More मजदूर यूनियन [कविता]

अम्मा तुम कब लौटोगी? [कविता]

✒️ मयन राणा | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024) फिलिस्तीन में हो रहे इसराइल द्वारा नरसंहार ने मानवता को रौंद दिया है। हजारों की संख्या में निर्दोषों को मारा जा रहा है, बच्चों को मारा जा रहा है। इन साम्राज्यवादी जनसंहारक युद्धों से कभी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। आज हमें जरूरत है … More अम्मा तुम कब लौटोगी? [कविता]

मजदूरों पढ़ो (कविता)

यश राज पढ़ोगे तो अपने भीतर के सन्नाटे से दो चार होगे और समझ में आएगा कि दुनिया किसी आईटी सेल का चलाया हुआ ट्विटर ट्रेंड भर नहीं है फेसबुक पर की गयी एक टिप्पणी भर नहीं है, एक विडियो भर नहीं है एक इन्स्टाग्राम की पोस्ट या रील भर नहीं है। पढ़ोगे तो समझ … More मजदूरों पढ़ो (कविता)