अपनी असुरक्षा से (पाश की कविता)
अवतार सिंह ‘पाश’ | ‘सर्वहारा’ #58 (1 सितंबर 2024) यदि देश की सुरक्षा यही होती हैकि बिना ज़मीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाएआंख की पुतली में ‘हां’ के सिवाय कोई भी शब्दअश्लील होऔर मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहेतो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है हम तो देश को समझे … More अपनी असुरक्षा से (पाश की कविता)



![मजदूर यूनियन [कविता]](https://i0.wp.com/sarwahara.com/wp-content/uploads/2024/07/1_n0wncarmogm9s7cu7spjig.jpeg?resize=365%2C365&ssl=1)
![अम्मा तुम कब लौटोगी? [कविता]](https://i0.wp.com/sarwahara.com/wp-content/uploads/2024/07/1920x1080_cmsv2_f5a5925e-2775-5883-9e1b-0addf5050ab4-8014958.webp?resize=365%2C365&ssl=1)
