नयी मानवता – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-2)

रामवृक्ष बेनीपुरी | ‘सर्वहारा’ #68-69 (16 जनवरी / 1 फरवरी 2025) (3) आयोजित अर्थनीति व्यक्तिगत सुरक्षा का इत्मीनान सबको दिलाती है। कहीं बीमार हो गया तो मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा? बुढ़ापे में किसका सहारा मैं लूँगा? इन सब बातों की चिन्ता पूँजीवादी समाज में मानवता को व्याकुल किये रहती है। इस चिन्ता … More नयी मानवता – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-2)

उन्मुक्त स्त्रीत्व – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-1)

रामवृक्ष बेनीपुरी | ‘सर्वहारा’ #67 (1 जनवरी 2025) सोवियत संघ में स्त्रीत्व ने एक नये संसार में प्रवेश किया है। सोवियत नारियां पुरुषों के साथ एक नयी समता का उपभोग करती हैं- चाहे वे जिस क्षेत्र में भी हों- शिक्षा में, राजनीति में, उद्योग में, पद-मर्यादा में, संस्कृति में। जारशाही से बढ़कर स्त्रियों को गुलाम … More उन्मुक्त स्त्रीत्व – रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘लाल रूस’ से (भाग-1)

विकलांग श्रद्धा का दौर (उद्धरण)

✒️ हरिशंकर परसाई | ‘सर्वहारा’ #57 (16 अगस्त 2024) (महान प्रगतिशील लेखक और व्यंगकार की याद में उनकी लघुकथा ‘विकलांग श्रद्धा का दौर‘ से उद्धरण) श्रद्धेय बन जाने की इस हलकी-सी इच्छा के साथ ही मेरा डर बरकरार है। श्रद्धेय बनने का मतलब है ‘नॉन परसन’ – ‘अव्यक्ति’ हो जाना। श्रद्धेय वह होता है जो … More विकलांग श्रद्धा का दौर (उद्धरण)

मैक्सिम गोर्की की रचना ‘मां’ के नायक पावेल का अदालत में बयान

अलेक्सेई मक्सिमोविच पेश्कोव, जिन्हें हम मैक्सिम गोर्की के नाम से जानते हैं, एक सोवियत क्रांतिकारी लेखक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता थे। वह अपने अजर-अमर क्रांतिकारी उपन्यास ‘मां’ (1906) के लिए सुप्रसिद्ध तो हैं ही, उन्होंने ‘समाजवादी यथार्थवाद’ साहित्यिक पद्धति की स्थापना भी की थी और रूसी क्रांति के पहले व उसके दौरान भी वे लेनिन की … More मैक्सिम गोर्की की रचना ‘मां’ के नायक पावेल का अदालत में बयान