‘वैश्विक आर्थिक संकट और हमारे कार्यभार’ : दिल्ली में इफ्टू(स) द्वारा आयोजित मजदूर परिचर्चा

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दिल्ली, 4 मई 2025: अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (पहली मई) के अवसर पर 4 मई को दिल्ली के पालम इलाके में ‘मई दिवस का इतिहास और वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में हमारे सांगठनिक कार्यभार’ विषय पर आईएफटीयू (सर्वहारा) की दिल्ली कमिटी द्वारा एक परिचर्चा सुबह 10:30 से 3 बजे तक आयोजित की गयी, जिसमें मायापुरी, द्वारका, पालम व कुछ अन्य इलाकों से महिला व पुरुष मजदूरों ने भाग लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत कॉमरेड सिद्धांत के स्वागत भाषण से हुई जिसके बाद अध्यक्ष मंडल ने अपना स्थान ग्रहण किया जिसमें शामिल थे कॉमरेड रामदयाल (मायापुरी कमेटी के संयोजक और प्रेस कर्मचारी), भरत (पावर प्रेस मजदूर), अनीता (डॉक्यूमेंटेशन सेंटर कर्मचारी), फिरासत (निर्माण मजदूर) और सिद्धांत। चर्चा की शुरुआत से पहले मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन के संघर्ष में शहीद हुए तमाम योद्धाओं की याद में एक मिनट का मौन रखा गया, और इसके बाद अरुणोदय गण-संगीत टीम द्वारा क्रांतिकारी गीत ‘तू जिंदा है तू जिंदगी की जीत में यकीन कर’ पेश किया गया। चर्चा की शुरुआत कॉमरेड मुकेश असीम द्वारा विषय पर एक विस्तृत वक्तव्य से हुई। इसके पश्चात कई वक्ताओं, जिसमें अधिकतर मजदूर थे, ने विषय पर अपने विचार साझा किए, नामतः – रामदयाल, राधेश्याम, तहसीन, फिरासत, मो. इस्राफील, भरत, दीपाली, केशव, रामकुमारी, शंकर और शैली। कॉमरेड राजू (जूता फैक्ट्री के मजदूर) ने अपनी बात के साथ मगही में एक क्रांतिकारी गीत ‘बदलल हो देसवा के खाका’ भी प्रस्तुत किया।

वक्ताओं ने 8 घंटे काम की मांग पर 1886 में उठे शिकागो के ऐतिहासिक मई दिवस आंदोलन के बारे में बात रखते हुए यह बताया कि कैसे यह आंदोलन महज आर्थिक मांगों तक सीमित नहीं होकर एक ऐसा आंदोलन था जिसमें मजदूर वर्ग ने राजनीतिक सत्ता का सवाल पूंजीपति वर्ग के शोषणकारी शासन के सामने ला खड़ा कर दिया था, और जिसके कारण ही पूंजीपति वर्ग ने भयावह बर्बरता के साथ इसका दमन किया और मजदूर नेताओं को आनन फानन में फांसी पर चढ़ा दिया। इसके पहले भी काम के घंटे सीमित करने की मांग पर व शोषण के खिलाफ उठे तमाम मजदूर आंदोलन, तथा पहली बार 1871 में फ्रांस में स्थापित हुआ मजदूरों का राज ‘पेरिस कम्यून’ और उनके महत्व को लेकर साथियों ने मई दिवस के इतिहास को संदर्भित किया। वक्ताओं ने बताया कि आज विश्व पूंजीवादी व्यवस्था एक अंतहीन प्रतीत होने वाले संकट में फंस चुकी है जिससे सामान्य तौर पर उबरने के लक्षण नहीं दिख रहे हैं, और यही वजह है कि संकट का पूरा बोझ पूंजीपति शासक वर्ग मजदूर वर्ग और आम जनता के कंधों पर डाल रहा है, जिसका सीधा परिणाम है नवउदारवादी नीतियों का बेतहाशा लागू होना, श्रम कानून प्रणाली का ध्वस्त होना (और लेबर कोड का आना), बेरोजगारी महंगाई का आसमान छूना, और साथ ही कटे छटे रूप से ही सही लेकिन बेलगाम शोषण के रास्ते में अड़चन बन रहे जनतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था का गला घोंटना, तथा पूंजी की नंगी तानाशाही यानी फासीवाद का आगमन, एवं धार्मिक कट्टरपंथ, अंधराष्ट्रवाद, आतंकवाद व जातिवाद का प्रायोजन और मेहनतकश जनता में फैलाव।

इस संदर्भ में साथियों ने कहा कि आज जब हमें सदियों पीछे ले जाने की मंशा से पूंजीपति वर्ग ने हमारे ऊपर जंग छेड़ दी है, तो मजदूर वर्ग को भी इसका मुंहतोड़ जवाब देने हेतु कमर कस लेना अत्यावश्यक हो गया है। इसकी पूर्वशर्त है कि मजदूर वर्ग बिना जाति-धर्म में बटे अपने असली हथियार, यानी अपनी क्रांतिकारी विचारधारा, से दुबारा लैस हो और इसके बल पर आर्थिक मांगों की लड़ाइयों तक सीमित हुए बिना राजनीतिक सत्ता के लक्ष्य को सामने रखे, और समाज के ड्राइविंग सीट से पूंजीपति वर्ग को हटा कर पूंजी की बेड़ियों व मुनाफे की हवस से इस दुनिया, प्रकृति और मानवजाति को मुक्त करे। हमारा राजनीतिक-सांगठनिक कामकाज इस तरफ लक्षित होना चाहिए।

सभा के दौरान फैक्ट्री मजदूर साथी सूरज द्वारा लिखी गई कविता ‘हम मजदूर हैं’ पढ़ी गई व गण-संगीत टीम द्वारा शहीद गीत ‘लाल झंडा ले कर कॉमरेड’ भी प्रस्तुत किया गया। अंत में कॉमरेड विदुषी द्वारा समापन भाषण व धन्यवाद ज्ञापन रखा गया जिसके बाद ‘इंटरनेशनल’ गीत और नारों के साथ सभा का समापन हुआ।


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