✒️ प्रस्तावक कमेटी, सर्वहारा जनमोर्चा (प्रोलेतारियन पीपल्स फ्रंट)
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- पहलगाम आतंकवादी हमले की सघन प्रशासनिक व न्यायिक जांच के जरिये इसके पीछे की साजिश का पर्दाफाश किया जाए और जिम्मेवार अपराधियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित करते हुए उन्हें न्यायोचित सख्त सजा दी जाए।
- कश्मीर में आतंकवाद के पूर्ण खात्मे को लेकर किए गए बड़े दावों के विपरीत सुरक्षा में ऐसी भारी चूक क्यों और कैसे हुई, इसके लिए गृह मंत्री से लेकर पूरे गृह मंत्रालय और इंटेलीजेंस एजेंसियों के टॉप ब्रास (उच्चतम अधिकारियों) की जिम्मेदारी तय हो और उन पर भी समुचित कार्रवाई हो। उच्चतम स्तर के सुरक्षा सलाहकार और ‘जेम्स बांड’ कहलाने वाले अजीत डोभाल की भी जिम्मेवारी तय हो।
- हम यह अपील करते हैं कि इस कायराना आतंकी घटना के बहाने शासक वर्गों तथा इसकी हिमायती मीडिया द्वारा विभाजनकारी अजेंडा के तहत फैलाए जा रहे सांप्रदायिक व नृवंशीय घृणा के दुष्प्रचार में नहीं पड़ें और बंटने के बजाए आपसी भाईचारा व सौहार्द्र बना कर रखे।

कश्मीर के पहलगाम में घूमने आए पर्यटकों पर 22 अप्रैल 2025 को हुआ आतंकी हमला, जिसमें कम से कम 26 लोगों की जानें गई और कई घायल हुए हैं, एक बेहद दिल दहला देने वाली घटना है। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से सम्बद्ध ‘रेजिस्टेंस ग्रुप’ ने ली है। ज्ञातव्य हो कि अभी चंद दिन पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने एक उत्तेजक भाषण दिया था। तब से ऐसी आशंका थी, इसके बावजूद भारत सरकार ने यह सब होने दिया जिससे किसी साजिश की बू आती है। यह अपुष्ट खबर भी आ रही है कि आतंकियों द्वारा धर्म के आधार कर पर्यटकों को निशाना बनाया गया। ऐसी नृशंस कार्रवाई का एकजुट होकर कड़ा विरोध और भंडाफोड़ किया जाना जरूरी है। साथ ही मृतक पर्यटकों के परिवारों को जल्द न्याय मिलने हेतु पूरी घटना की सघन और निष्पक्ष प्रशासनिक व न्यायिक जांच की मांग तेज करना आवश्यक है ताकि इसके पीछे की साजिश का पर्दाफाश किया जा सके और जिम्मेवार अपराधियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित करते हुए उन्हें न्यायोचित सख्त सजा दी जाए। भारत सरकार की यही प्राथमिकता होनी चाहिये थी।
परंतु केंद्र में बैठी भाजपा सरकार और समाज व सोशल मीडिया में फैला आरएसएस इस घटनाक्रम के तुरंत बाद से ही बिजली की गति से इस त्रासदी का इस्तेमाल अपने जहरीले विभाजनकारी अजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कर रहा है जिसके जरिये कश्मीरी मुसलमानों सहित पूरे मुसलमान समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने तथा देश में अमन-चैन की स्थिति, जो फासीवादी मिजाज वाली निजाम के कारण पहले से ही बेहद नाजुक स्थिति में है, को और बिगाड़ते हुए समाज को सांप्रदायिक भ्रातृघातक दंगों की आग में झोंकने और इससे राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ “धर्म पूछा, जाति नहीं” जैसे नारों से समाज में मौजूद सभी तरह के शोषणकारी विभाजनों (खास कर के वर्गीय विभाजन) पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। जाहिर है, पूरी संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था व इसका घोर प्रतिक्रियावादी निजाम (सरकार और उसका पूरा अमला) शासक वर्गों के अंतहीन शोषण व लूट के खिलाफ उठ रही जनता की आवाज और उनकी बढ़ रही चेतना तथा निकट भविष्य में देशव्यापी आंदोलन और वर्ग संघर्ष के फूट पड़ने की संभावना से बेहद डरा हुआ है और इसलिए इसे कुंद करने की हर संभव कोशिश कर रही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद साम्प्रदायिक घृणा के भारी प्रचार व प्रसार में आयी इस नई बाढ़ से मौजूदा निजाम की यह मंशा पूरी तरह से साफ हो जाती है।
इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य काबिलेगौर हैं, जैसे कि पहलगाम के आतंकी हमले में जान गंवाने वाले मासूम नागरिकों में एक नाम सैयद आदिल हुसैन शाह का भी है जिन्होंने पर्यटकों की जान बचाने की कोशिश करते हुए अपनी जान गंवा दी। यह भी एक बेहद जरूरी तथ्य है कि घटना के चंद घंटों बाद ही पहलगाम की स्थानीय जनता ने धार्मिक पहचान को परे कर और इससे ऊपर उठ कर बड़ी संख्या में आतंकी कार्रवाई का विरोध करते हुए व “मजलूमों का कत्लेआम बंद करो”, “पर्यटक हमारी जान हैं” जैसे नारों के साथ एकजुट होकर कैंडल मार्च निकाला। अगले दिन कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों तथा संगठनों के आह्वान पर आतंकी हमले के विरूद्ध पूरा कश्मीर बंद रहा।
परंतु मुख्यधारा की मीडिया से ये खबरें गायब है, क्योंकि ये उपरोक्त जहरीले प्रोपेगैंडा की काट हैं। यह भी गौरतलब है कि कश्मीर में 1988 से अब तक हुए आतंकी हमलों में जान गंवाने वाले मृतकों की कुल संख्या का एक बड़ा बहुमत मुस्लिम समुदाय से ही रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 को जबरन हटाने, जम्मू कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन लेने, सम्पूर्ण इलाके को डेढ़ सालों तक लॉकडाउन में व बिना इंटरनेट के रखने, और दशकों से लाखों की संख्या में सैन्य बलों को तैनात करने के बाद कश्मीर में “सामान्य स्थिति” बहाल होने, नोटबंदी के बाद “आतंकवाद की कमर तोड़ देने”, और आतंकवाद से रक्षा के लिए एक “मजबूत सरकार” को चुनने, जैसे आडम्बरपूर्ण दावों की कलई अब पूरी तरह खुल चुकी है। यह दिखाता है कि कश्मीर में असल शांति व अमन बहाली के लिए एक वास्तविक जनपक्षीय पहल की जरूरत है। लेकिन अगर सरकार और व्यवस्था को शांति व अमन ही पसंद न हो तो फिर रास्ता क्या बचता है! इसका हल तब शोषणकारी व्यवस्था को हटाकर ही सम्भव है। देश की जनता को अंततः इसी विकल्प की तरफ कदम बढ़ाना होगा।
जाहिर है, भाजपा-आरएसएस ‘आपदा में अवसर’ के अपने पुराने नारे का ही कार्यान्वयन करती दिख रही है एवं भारत व दुनिया के पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासक व नेता इस त्रासदी को भुनाने में लगे हैं। अंततः देशी-विदेशी बड़ी पूंजी के हित में विश्व पूंजीवाद के अंतहीन संकट के बोझ (महंगाई, बेरोजगारी आदि) के नीचे दबी आम अवाम के भाईचारे, एकता और जायज संघर्षों को कुचलने में इसका पूरी धूर्तता से इस्तेमाल किया जाएगा और किया जा रहा है। इस आतंकी हमले की टाइमिंग भी बहुत कुछ कहती है – पाकिस्तानी आर्मी चीफ के कश्मीर पर दिए गए भड़काऊ भाषण के कुछ ही दिनों बाद और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वैन्स के भारत दौरे के दौरान यह हमला घटित हुआ। हम जानते हैं कि पाकिस्तानी शासक वर्ग भी लगातार तीखे जनविरोधों को झेल रहा है। साम्राज्यवादी देशों में भी पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लूट-खसोट के खिलाफ लगातार जनविरोध फूट रहे हैं। इसलिये आज वैश्विक स्तर पर तमाम तरह की भ्रातृघातक घृणा फैलाई जा रही है और युद्धोन्माद भी भड़काया जा रहा है।
इस पूरे एजेंडा को हम रोज परवान चढ़ते देख सकते हैं जो बताता है कि ऐसी त्रासदी स्वयं पूरे विश्व के शासक वर्गों की जरूरत है जिसके जरिये वे साम्प्रदायिक घृणा और युद्धोन्माद को और तेज कर सकें। खासकर दक्षिण एशिया में मौजूद सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता और इसके कारण पैदा हो रही व होने वाली क्रांतिकारी जनउभार व जनता की विस्फोटक सरगर्मी की संभावना पर किसी भी हाल में लगाम लगाया जा सके। अपनी शोषणकारी शासन व्यवस्था को बनाए रखने हेतु शासक वर्गों द्वारा यह विभाजनकारी कवायद जारी है। असली मुद्दों से ध्यान भटकाकर अवाम को भ्रातृघातक ज्वाला की भट्टी में झोंक देने हेतु धार्मिक-नृवंशीय घृणा व कट्टरपन को बढ़ावा देने वाली कार्रवाइयां आज संकटग्रस्त विश्व पूंजीवाद, जो जनता पर दुखों का पहाड़ लाद रहा है, द्वारा रची जा रही घोर जनविरोधी साजिशों का हिस्सा बन चुकी हैं। जनता को इन बातों को गहराई से समझना चाहिये।
इस वीभत्स त्रासदी पर हम देश भर और पूरे दक्षिण एशिया की जनता को सामुदायिक भाईचारा एवं सद्भाव बरकरार रखने तथा शासक वर्ग द्वारा प्रायोजित जहरीले विभाजनकारी प्रोपेगैंडा में फंस कर अपनी वर्गीय एकता को कमजोर किए बिना इस आतंकी हमले का विरोध करने और न्याय की मांग उठाने की अपील करते हैं। अंत में, हम इस कायराना आतंकी हमले में दो दर्जन से भी अधिक मासूम लोगों की मौत पर गहरा विक्षोभ प्रकट करते हैं और उनके परिवार व प्रियजनों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हुए उनके साथ इस शोकाकुल समय में दिल से एकजुटता व्यक्त करते हैं। आइये, हम ऐसी बदरंग और अन्यायपूर्ण दुनिया, जिसमें ऐसी घृणित त्रासदी ढायी जाती है, को बदलने का प्रण लें क्योंकि इसे बदलकर ही हम ऐसी त्रासदियों से हमेशा के लिए मुक्ति पा सकते हैं।
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