✒️ प्रस्तावक कमेटी, सर्वहारा जनमोर्चा (प्रोलेतारियन पीपल्स फ्रंट)
संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 आज पारित हो चुका है। वक्फ कानून में संशोधन के पक्ष में बीजेपी वक्फ बोर्ड में होने वाले भ्रष्टाचार, गबन, अनाधिकृत कब्जों को रोकने, मुस्लिम महिलाओं व पसमांदा मुसलमानों के साथ न्याय करने तथा वक्फ बोर्ड में सुशासन व आधुनिकीकरण लाने तथा इसे सेकुलर बनाने जैसे ‘तर्क’ दे रही है। पर जरा भी गौर करने से इस विधेयक के पीछे उसके दो मकसद एकदम साफ हो जाते हैं।
एक, वक्फ की असल व काल्पनिक बुराइयों तथा लैंड जिहाद आदि के इल्जामों के जरिए अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाने की सांप्रदायिक मुहिम को निरंतर जारी रखना।
दो, डिफेंस व रेलवे के बाद तीसरी बडी भूसंपदा पर नियंत्रण रखने वाले वक्फ बोर्ड पर अपना पूरा दखल स्थापित कर इसे पूंजीपतियों, सत्तारूढ़ दल व अफसरशाही के लिए दोहन का क्षेत्र बनाना।
सामंती दौर में शासक तबके के सदस्यों तथा पुरोहित तंत्र द्वारा विभिन्न धार्मिक संस्थाओं की आड़ में बहुत बडी संपत्ति को अपने व अपने वारिसों के लिए सुरक्षित किया जाता था। मठों, मंदिरों, आश्रमों, विहारों, चर्चों, आदि की तरह वक्फ की गई संपत्ति की भी सामंती शासक तबके के लिए ऐसी ही भूमिका रही है। सब जानते हैं कि धार्मिक संस्थाओं की संपत्तियां किसी अलौकिक शक्ति नहीं, पूरी तरह दुनियावी समूहों के उपयोग, उपभोग व ऐशो आराम के लिए ही इस्तेमाल की जाती रही हैं। यहां तक कि तमाम धर्मों के विशुद्धतावादी सुधारक भी समय समय पर धर्म के नाम पर संपत्ति इकट्ठा करने की इस रवायत को अधार्मिक बताते रहे हैं। यह भी तथ्य है कि इन सभी संपत्तियों पर नियंत्रण रखने वालों के द्वारा इनमें भ्रष्टाचार, कदाचार, लूट, आदि की भी कोई सीमा नहीं रही है।
लेकिन क्या वास्तव में बीजेपी सरकार इस भ्रष्टाचार व कदाचार को रोकने की कोई नीयत रखती है? अगर ऐसा होता तो वह वास्तव में ‘सेकुलर’ ढंग से अर्थात धर्म का कोई भेद किए बगैर सभी धर्मों के नाम पर चलाई जा रही ऐसी तमाम संस्थाओं के स्वामित्व, नियंत्रण व कब्जे में मौजूद संपत्ति के राष्ट्रीयकरण व उसके सामाजिक हित में प्रयोग की कोई पारदर्शी नीति प्रस्तावित करती। इसके विपरीत वह अपनी सांप्रदायिक नीति के अंतर्गत आरएसएस-बीजेपी के राजनीतिक प्रोजेक्ट के करीबी बाबाओं, संतों, स्वामियों, धार्मिक कारोबारियों, आदि को और भी संपत्तियां सौंप रही है। स्पष्ट है कि इस विधेयक का मकसद भी वक्फ के नियंत्रण की विशाल संपदा को कॉर्पोरेट पूंजी तथा सत्तारूढ़ दल के दोहन, भ्रष्टाचार व लूट का जरिया बना देना है।
मुस्लिम महिलाओं व पसमांदा मुसलमानों के प्रति बीजेपी की ‘हमदर्दी’ की सच्चाई से भी हम सब अच्छी तरह वाकिफ हैं। मुस्लिम ही क्या बहुसंख्यक हिंदू महिलाओं के लिए भी जीवन बीजेपी के ‘रामराज्य’ में बेहद बदतर ही हुआ है और उसके द्वारा बढावा दी जा रही विचारधारा तथा कुसंस्कृति की मुहिम ने सभी स्त्रियों के साथ बेहद नृशंस अपराधों की बाढ पैदा की है। यहां तक कि तीन तलाक के मामले में भी तलाक को मुश्किल बनाना पितृसत्ता की जकडन से स्त्री मुक्ति व समानता के समस्त विचारों के ठीक विपरीत है। स्त्री मुक्ति आंदोलन की मांग तो स्त्रियों के लिए शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आदि की सार्वजनिक व्यवस्थाओं की सामाजिक गारंटी के साथ तलाक को बेहद आसान बनाने की रही है ताकि सभी स्त्रियों के लिए बेमेल व हिंसक विवाहों की कैद में फंसे रहने की विवशता ही समाप्त हो जाए। यही स्थिति सभी धर्म, जाति, समुदायों के गरीबों मेहनतकशों की ही तरह पसमांदा मुसलमानों की भी है। उनके जीवन में बेहतरी का रास्ता भी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार, आदि की सामाजिक गारंटी है, वक्फ बोर्ड में कुछ स्त्रियों व पसमांदा मुसलमानों की नियुक्ति का झुनझुना नहीं।
अगर भारत में सामंती भूमि व्यवस्था के खिलाफ किसानों-भूदासों के द्वारा एक वास्तविक भूमि क्रांति संपन्न होती तो सुसंगत भूमि सुधारों के जरिए जमींदारों जागीरदारों की जमींनों के साथ ही धार्मिक संस्थाओं की आड में एकत्रित जमींनों का भी उन्हें जोतने वाले किसानों में वितरण हो गया होता। पंजाब से बंगाल व केरल तक पूरे देश में किसानों द्वारा धार्मिक मठों के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ तथा भूमि सुधार हेतु संघर्षों का एक बडा इतिहास रहा भी है। पर भारत में क्रांतिकारी भूमि सुधारों का यह काम पूरा नहीं हो पाया। अब भविष्य में मजदूर वर्ग के नेतृत्व में होने वाली क्रांति ही भूमि सहित उत्पादन के समस्त साधनों पर निजी संपत्ति के उन्मूलन द्वारा पुराने सामंती भूपतियों, जो अब पूंजीपति शासक वर्ग का हिस्सा बन चुके हैं, के कब्जे में मौजूद इस संपदा का समाजीकरण कर इसे पूरे समाज के हित में इस्तेमाल की समुचित व्यवस्था करेगी।
मगर इस वक्त समझने की बात यह है कि जब मोदी सरकार की पूंजीपतिपरस्त नीतियों की वजह से आर्थिक संकट बेहद तीक्ष्ण होने से बढती महंगाई व बेरोजगारी की वजह से मेहनतकश अवाम की जिंदगी बेहद तकलीफदेह बन गई है, यह सरकार जनता में परस्पर नफरत के माहौल को उकसाने की हरचंद कोशिश कर रही है, ताकि इन जनविरोधी नीतियों तथा पूंजीवादी शोषण उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष हेतु जरूरी जनता की एकजुटता में दरार को और भी गहरा किया जाए। वक्फ कानून में संशोधन के जरिए इसी मकसद को पूरा किया जा रहा है।
मजदूरों, मेहनतकशों व तमाम उत्पीडितों से हमारी अपील है कि इन तमाम सांप्रदायिक नफरती साजिशों को समझें तथा शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अपनी एकता को बनाए रखने के लिए इस समस्त दुष्प्रचार के प्रभाव में न आएं, और इसका भांडाफोड़ करें।
4 अप्रैल 2025