अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मजदूरों के बीच परिचर्चाएं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जिंदाबाद! महिला दिवस के अवसर पर ‘विमुक्ता – स्त्री मुक्ति संगठन’ और आईएफटीयू (सर्वहारा) द्वारा विभिन्न राज्यों में आयोजित परिचर्चा पर खास रिपोर्ट।

पश्चिम बर्धमान, पश्चिम बंगाल; 5-7 मार्च 2025:

विमुक्ता – स्त्री मुक्ति संगठन और आईएफटीयू (सर्वहारा) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पश्चिम बर्धमान जिले के विभिन्न कोलिएरी क्वार्टरों एवं ग्रामीण इलाकों में मेहनतकश महिलाओं व पुरुषों के साथ एक परिचर्चा आयोजित की गयी। परिचर्चा में महिला दिवस के इतिहास और आज के राजनीतिक परिदृश्य पर बात रखी गयी। परिचर्चा में खासकर महिलाओं को राजनीति समझने की जरूरत पर जोर दिया गया। परिचर्चा में निर्माण क्षेत्र, कोयला क्षेत्र और ईंट भट्ठे में काम करने वाली महिलाओं ने भाग लिया। उन्होंने कामकाज की बेहद मुश्किल परिस्थितियों और कार्यस्थल पर आये दिन होते दुर्व्यवहार पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कैसे निर्माण क्षेत्र में उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी जाती है। हाड़तोड़ मेहनत के बाद केवल 250-300 की ही दिहाड़ी मिलती है। ईंट भट्ठे पर काम करने वाली महिलाओं के लिए शोषण-उत्पीड़न उनके जीवन की सच्चाई बन गया है। नारकीय परिस्थिति में काम करने के बाद भी पेट भरने लायक भोजन जुटाने तक की मजदूरी बमुश्किल मिल पाती है। ईंट भट्टे पर यौन उत्पीड़न की समस्याएं भी आये दिन सामने आते रहती है। महिलाओं के लिए उनके कार्यस्थल पर शौचालय की व्यवस्था नहीं है। उन्हें या तो खुले में शौच करना पड़ता है या फिर गंदी जगहों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। माहवारी के समय ये दिक्कत और ज्यादा बढ़ जाती है। इसके अलावा उन्होंने अन्य कई तरह की समस्याओं के बारे में बताया जो इन क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाएं रोज झेलती हैं।

सभी महिलाओं के पति भी या तो निर्माण क्षेत्र में या कोयला क्षेत्र में कार्यरत हैं। महिलाओं ने अपने पति और बच्चों के जीवन की समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बंगाल के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की समस्या एक विकराल रूप ले चुकी है। साथ ही बच्चों और युवाओं के लिए अच्छी शिक्षा की जगह भी सिमटती जा रही है। सरकारी स्कूल व कॉलेजों में पढ़ाई ना के बराबर होती है, होती भी है तो इतनी खराब कि उससे छात्रों को ना ज्ञान प्राप्त होता है और ना ही नौकरी मिलने में उस शिक्षा से कुछ मदद मिलती है। अधिकतर युवा कॉलेज पहुंचते-पहुंचते या उसके पहले ही शिक्षा की लचर व्यवस्था से तंग आ कर या आर्थिक बदहाली की वजह से पढ़ाई छोड़ देते हैं। इन युवाओं के लिए जीवन चलाने के रास्ते बहुत सीमित होते हैं – ऑटो चलाना, छोटी दुकाओं पर काम करना, या फिर इर्दगिर्द के इलाकों के कल-कारखानों में काम करना। लेकिन इन कल-कारखानों में भी उन्हें 12-12 घंटे काम करने के बाद भी बहुत कम मजदूरी मिलती है। ये नौकरी भी बड़ी मशक्कत के बाद मिलती है क्योंकि कंपनी वहां के स्थानीय लोगों को काम पर नहीं रखना चाहती है। और अतः इन सब का नतीजा होता है कि परिवार में दो या तीन कमाने वाले होने पर भी किसी तरह बस पेट भरने तक ही पैसे जुट पाते हैं।

इन परिस्थितियों को सामने रखते हुए पूंजीवादी व्यवस्था में महिलाओं के दोहरे शोषण और आज के फासीवादी दौर में बढ़ते महिला उत्पीड़न पर चर्चा की गयी और इससे मुक्ति पाने के लिए संगठित होने और मजदूर-मेहनतकश स्त्री-पुरुषों की एकता कायम करने का आह्वान किया गया।

दिल्ली; 9 मार्च 2025:

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर दिल्ली के मायापुरी औद्योगिक क्षेत्र व द्वारका इलाके में 9 मार्च 2025 को ‘विमुक्ता – स्त्री मुक्ति संगठन’ और आईएफटीयू (सर्वहारा) द्वारा परिचर्चाएं आयोजित की गईं। द्वारका में सफाई कर्मचारी, घरेलू कामगार, निर्माण क्षेत्र में हेल्पर, डॉक्यूमेंटेशन सेंटर, आदि क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं ने बैठक में भाग लिया तथा मायापुरी में महिला व पुरुष फैक्ट्री मजदूर बैठक में शामिल रहे। बैठक में महिलाओं की ओर से सक्रीय भागीदारी रही जिसमें उनके द्वारा स्थानीय दिक्कतों, प्रतिदिन थकावट भरे घरेलू श्रम का उनके जीवन पर प्रभाव, बढ़ती महंगाई, गिरती मजदूरी, बच्चों के लिए महंगी होती शिक्षा, बेरोजगारी के संकट और महिलाओं के संदर्भ खराब व असुरक्षित होते माहौल पर रौशनी डाली गई। परिचर्चा में महिला दिवस का क्रांतिकारी इतिहास, महिला आंदोलनों का वैश्विक इतिहास, सोवियत रूस के गठन में महिलाओं की अद्भुत भूमिका, पूंजीवाद में महिलाओं पर दोहरा शोषण और अत्याचार, भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की स्थिति, फासीवादी दौर में महिलाओं पर बढ़ता उत्पीड़न, महिला मुक्ति का रास्ता जो मजदूर वर्ग द्वारा पूंजी के राज को उखाड़ फेंकने से जुड़ा है, आदि विषयों पर गंभीर चर्चा हुई। बैठक में महिलाओं ने आम सहमति जताई कि ऐसे दमनकारी दौर में मजदूर वर्ग के मुक्तिकामी संघर्ष की दिशा में महिला मजदूरों को भी आंदोलित, संगठित और संघर्षरत होने की अहम जरूरत है।


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