‘सर्वहारा’ #70 (16 फरवरी 2025)
मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूरों के शांतिपूर्ण तथा कोर्ट से आदेश प्राप्त प्रदर्शन व सभा पर पुलिस दमन तथा त्रिपक्षीय वार्ता के लिए जुटे मजदूरों की गिरफ्तारी के खिलाफ कड़ा प्रतिवाद दर्ज करें!
14 फरवरी ‘मासा’ की पुकार पर विभिन्न राज्यों में हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल हों!
आज के दौर के शासन (फासीवाद) के घोर मजदूर-विरोधी चरित्र को पहचानकर और इसके खिलाफ अभियान चलाकर ही मजदूर वर्ग अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेगा!






विगत 1 फरवरी से आईएफटीयू (सर्वहारा) का ‘प्रतिवाद प्रचार’ विभिन्न राज्यों में जारी है। इस प्रतिवाद प्रचार के तहत मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूरों के आंदोलन पर हुए दमन के विरोध व इस दमन-चक्र से उजागर हुए राज्य के फासीवादी चरित्र को हम निर्माण मजदूर, फैक्ट्री मजदूर, ग्रामीण व खेतिहर मजदूर, कोयला खदान श्रमिकों व रेलवे ठेका मजदूरों और अन्य वर्गों की आम जनता के बीच ले जा रहे हैं। लेबर चौकों, मजदूर बस्तियों, फैक्ट्री गेट, ग्रामीण क्षेत्रों, बाजारों, आदि में पर्चा वितरण, नुक्कड़ सभा व बैठकों के माध्यम से मजदूरों के बीच यह संदेश ले जाया जा रहा है कि 30 जनवरी की पुलिसिया कार्रवाई कोई आम दमनात्मक कार्रवाई नहीं है, यह भारत की सत्ता पर काबिज फासीवादी मिजाज वाली शक्तियों की तानाशाहीपूर्ण कार्रवाई है जो अपने चरित्र में अन्य दमनात्मक कार्रवाइयों से भिन्नता लिये हुए है। इसमें हम आने वाले भविष्य में मजदूरों-मेहनतकशों व आम जनता की होने वाली बेहद दयनीय स्थिति की एक झलक देख सकते हैं, जहां उन्हें सरकार के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर अपनी तकलीफों पर रोने तक की इजाजत नहीं रह जाएगी। यह गौरतलब है कि जो हिंदू-राष्ट्र के पैरोकार हैं वे ही ऐसा दमन कर रहे हैं। इससे हिंदू-राष्ट्र कैसा होगा पता चलता है।
ज्ञात हो कि ‘मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूर संघ’ द्वारा 30 जनवरी को ‘चलो मानेसर’ के नारे के साथ मानेसर तहसील में जुटने का आह्वान किया गया। इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को समाप्त करवाने के लिए मारुति सुजुकी प्रबंधन ने कोर्ट में केस कर दिया। लेकिन ‘मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूर संघ’ की तरफ से रखे गए तर्कों के बाद कोर्ट ने उन्हें प्रदर्शन करने की इजाजत दे दी। लेकिन प्रशासन ने कोर्ट के आदेश को न मानते हुए कंपनी के साथ मिलकर पूरे इलाके में धारा-163 लागू कर 30 जनवरी की पिछली रात को पिछले कई महीनों से चल रहे धरना स्थल पर पहुंच कर आन्दोलनरत मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया और उनके टेंट-बर्तन, कपड़े सब जब्त कर लिए। 30 जनवरी की सुबह से ही जहां कुछ मजदूर जुटे पुलिस ने वहां आ कर उन्हें मारपीट करते हुए बसों में भर दिया और काफी देर बाद सैकड़ों मजदूरों को दूर-दराज के इलाकों में जा कर छोड़ दिया। दर्जनों मजदूरों को पुलिस ने थाने में डाल दिया। 76 लोगों को पुलिस ने काफी दबाव के बाद रात 10 बजे छोड़ा जिसके बाद उन मजदूरों को ठंड में रात भर लघु सचिवालय के सामने (जहां अगले दिन त्रिपक्षीय वार्ता तय थी) खुले मैदान में सोना पड़ा। लेकिन यह दमन-चक्र यहीं खत्म नहीं हुआ। अगले दिन 31 जनवरी को श्रम विभाग, मजदूर यूनियन, व कंपनी प्रबंधन की पहले से तय त्रिपक्षीय वार्ता में शामिल होने वाले नामित सभी अगुआ मजदूरों (एक को छोड़ कर) को भी हिरासत में ले लिया गया या लाठियों के बल पर खदेड़ दिया गया। इन गिरफ्तार मजदूरों को भी भारी दबाव के बाद देर रात को छोड़ा गया।
तो स्थिति आज इतनी भयावह हो गयी है! कोर्ट ऑर्डर के बावजूद मजदूरों को अपनी जायज मांगों को ले कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन तक नहीं करने दिया गया। पहले से तय त्रिपक्षीय वार्ता के लिए पहुंचे मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया गया। क्या यह जनवाद है? नहीं! बिलकुल नहीं! यह फासीवादी तानाशाही के लक्षण हैं जो आज पहले से कहीं ज्यादा साफ हैं। प्रतिवाद प्रचार में आईएफटीयू (सर्वहारा) ठीक यही बात मजदूरों के बीच ले जाने की कोशिश कर रहा है कि अगर इस कार्रवाई को समय रहते रोका नहीं गया तो आने वाले दिनों में मजदूरों-मेहनतकशों को बंधुआ बना दिया जाएगा। जनतंत्र की जगह राजतंत्र लाने की कोशिश की जा रही है। अगर फासीवादी इसमें सफल होते हैं और ‘हिंदू-राष्ट्र’ की स्थापना हो जाती है तो सरकार के खिलाफ बोलना जुर्म हो जाएगा, अपनी जीवन की समस्याओं पर प्रदर्शन करना तो दूर, उसे खुल कर प्रकट करना भी राजद्रोह घोषित कर दिया जाएगा। इस कवायद को रोकने का काम मजदूर वर्ग की अगुआई में ही संभव है। इसलिए हम मजदूर-मेहनतकश जनता से आह्वान कर रहे हैं कि आजाद भारत के इतिहास के इस सबसे खूंखार शत्रु को पहचानें व इसकी साजिशों का मुंह तोड़ जवाब दें। धर्म-जाति, मंदिर-मस्जिद, अंधराष्ट्रवाद का नफरती प्रचार करके वे मजदूरों को आपस में लड़ाना चाहते हैं और उनके असली मुद्दों से उनका ध्यान भटकाना चाहते हैं। मजदूर इस प्रचार में न सिर्फ ना आयें, बल्कि इसका पुरजोर विरोध करें और इसका जवाब मजदूर वर्ग की चट्टानी एकता के बल पर दें, संगठित हो कर दें। इस प्रचार अभियान में हम देख पा रहे हैं कि मजदूरों व आम जनता के बीच इस लाइन की ग्राह्यता बढ़ती जा रही है। एक बड़ी आबादी का बद से बदतर होता जीवन उन्हें फासीवादी सरकार के भ्रातृघातक प्रचार में आने से अंततः रोकता है। उनके जीवन में बेरोजगारी, मंहगाई और स्वास्थ्य-शिक्षा के हाथ से चले जाने से आई निस्सारता के भाव की पूर्ति फासीवादियों द्वारा फैलाई जा रही नृवंशीय व धार्मिक-जातीय घृणा से अंततः नहीं की जा सकती है। उन्हें कुछ देर के लिए भरमाया जा सकता है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं। मारुति आंदोलन के दमन के विरोध में हमारे द्वारा चलाये जा रहे प्रतिवाद प्रचार की यही मुख्य दिशा है, जिससे मजदूर-मेहनतकश वर्ग की जनता के साथ-साथ दूसरे वर्गों की जनता भी सहमत नजर आती है। काम छोड़ कर भाषण सुनते मजदूर, सभाओं में शामिल होती जनता की भीड़, अपने वाहनों को रोक कर भाषण सुनते आम लोग – यह सब इसी बात का संकेत है कि प्रतिवाद प्रचार में कही जा रही बातों में उन्हें अपने जीवन की झलक मिलती है। हमारा यह अभियान आगे भी जारी रहेगा। इंकलाब जिंदाबाद!