‘सर्वहारा’ #70 (16 फरवरी 2025)
दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में 8 फरवरी को ‘दिल्ली फॉर वर्कर्स’ मंच और ‘वर्कर्स यूनिटी’ मीडिया प्लेटफार्म द्वारा ‘समकालीन साहित्य और ‘पत्रकारिता में मजदूर’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन दो सत्रों में हुआ जिसके पहले सत्र में अंजलि देशपांडे और मारुति सुजुकी मानेसर के ऐतिहासिक 2011-12 के आंदोलन में संघर्षरत और बर्खास्त मजदूर साथी कटार सिंह ने मारुति मजदूर आंदोलन तथा उसके बर्खास्त अस्थाई मजदूरों द्वारा आज जारी संघर्ष के नए चरण व 29-31 जनवरी को आंदोलन पर हुए निंदनीय राजकीय दमन पर रौशनी डाली, तथा मारुति आंदोलन पर अंजलि देशपांडे व नंदिता हक्सर द्वारा लिखित पुस्तक ‘फैक्ट्री जापानी प्रतिरोध हिन्दुस्तानी’ पर भी चर्चा की।
अगले सत्र में ‘मीडिया और मजदूर’ विषय पर परिचर्चा हुई जिसकी शुरुआत प्रगतिशील पत्रकार व बुद्धिजीवी अनिल चामड़िया ने अपने वक्तव्य से की। इसके बाद दिल्ली में कार्यरत मजदूर अखबारों व पत्रिकाओं, नामतः सर्वहारा अखबार, मेहनतकश पत्रिका, और मजदूर पत्रिका, ने अपने अनुभव और विचार सभा में पेश किए।


‘सर्वहारा’ अखबार के संपादक मंडल सदस्य सिद्धांत ने कहा कि आज बड़े मीडिया घरानों का पूंजीपक्षीय और जनविरोधी, खास कर मजदूर-विरोधी, चरित्र नंगा हो चुका है। 10 पूंजीपति घराने आज देश के सारे बड़े अखबारों व टीवी चैनेलों के मालिक हैं। इसके अलावा हमें वैकल्पिक मीडिया के नाम से यूट्यूब और वेबसाइटों के जरिए जो कुछ मीडिया पोर्टल अधिक दिखते हैं, वे भी आम जनता के पक्ष में और सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध में पत्रकारिता करने के बावजूद बड़ी पूंजी के ‘उदारवादी’ घरानों तथा बड़े ट्रस्ट व एनजीओ द्वारा ही वित्तपोषित रहते हैं, और इसलिए मजदूर वर्ग के शोषण पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था की चौहद्दी के भीतर ही कुछ सुधारों की वकालत करते हैं, उसे तोड़ने की कदापि नहीं। आज जब मुट्ठीभर बड़े पूंजीपति मुनाफे के संकट को दूर करने की चाहत में केवल मजदूरों का जीवन ही नहीं बर्बाद कर रहे, बल्कि आम जनता के बड़े हिस्से (मध्य वर्ग, बड़े व माध्यम किसान, नौकरीशुदा लोग) का भी संपत्तिहरण कर रहे हैं, अकूत मुनाफे के लिए पूरे पर्यावरण को बर्बाद कर पृथ्वी को रहने लायक नहीं छोड़ रहे हैं, और लूट के बड़े हिस्से पर नियंत्रण के लिए पूरे विश्व को युद्ध में झोंकने की नीति बना रहे हैं, ऐसे में वैकल्पिक मीडिया वही हो सकती है जो बड़ी पूंजी और उसके हितों से पूरी तरह कटी हुई हो, और जो पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने वाली अकेली मुख्य ताकत, यानी मजदूर वर्ग, के ऐतिहासिक हितों के साथ खुद को जोड़े।
इस दृष्टिकोण से एक देशव्यापी अखबार और मीडिया मंच का खड़ा होना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी बन गया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि मजदूर अखबारों का मुख्य काम मजदूरों तक मुक्तिकामी राजनीति, यानी पूंजीवाद से उनकी और पूरी मानवजाति की मुक्ति के मार्ग, को ले जाना है। यह सच है कि पूंजीपतियों के मुनाफे की हवस ने मजदूरों के जीवन के हालात इतने दूभर बना दिए हैं कि 12-14 घंटे कमरतोड़ काम करने व घरेलू कामकाज के बाद उनके पास घूमने फिरने, दोस्त-परिवार से बात करने आदि तक का समय भी नहीं बच पाता, और उनके इसी मेहनत से समाज में पैदा हुए अधिशेष के कारण ही मध्य वर्ग के लोगों को अपने काम के बाद कुछ समय पुस्तक मेला जैसे कार्यक्रम में दोस्त-परिवार के साथ शामिल होने की मौका मिल पाता है। मजदूरों को थक कर सोने वक्त फोन चलाने का जो मौका मिलता है उसमें यूट्यूब और व्हाट्सएप से उन्हें पूंजीपक्षीय, महिला-विरोधी और नफरत से भरा फासीवादी प्रोपगेंडा ही प्रचूर मात्रा में सुनने को मिलता है। इसके काट के लिए यह मजदूर अखबारों, मीडिया और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वह ना केवल मजदूर वर्गीय क्रांतिकारी राजनीति को भिन्न तरीकों से मजदूरों के बीच ले जाएं, बल्कि उनमें पढ़ने-जानने समझने और तर्क-वितर्क करने की भूख पैदा करें। ताकि बहसें और राजनीति, खास कर क्रांतिकारी राजनीति, केवल पढ़े लिखे मध्य वर्ग तक सीमित ना होकर समाज और इसकी सभ्यता व संस्कृति के वास्तविक निर्माता मजदूर वर्ग के जीवन का हिस्सा बने, और मानवजाति को पूंजी की बेड़ियों से मुक्त करने के अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के लिए जरूरी वैचारिक हथियार से लैस होने में उन्हें मदद मिले। ठीक यही कारण है कि मध्य वर्ग से आए व्यक्तियों, खास कर छात्र-युवाओं, को खुद को मजदूर वर्ग की मुक्तिकामी राजनीति से जोड़ने की फौरी जरूरत है।