मारूति सुजुकी अस्‍थाई मजदूरों के प्रदर्शन पर दमन के खिलाफ कड़ा प्रतिवाद दर्ज करें! (पर्चा)

भारत के मजदूर-मेहनतकश वर्ग से अपील

मारूति सुजुकी अस्‍थाई मजदूरों के शांतिपूर्ण व कोर्ट से आदेश प्राप्‍त प्रदर्शन पर पुलिस दमन, तथा त्रिपक्षीय वार्ता के लिए जुटे मजदूरों की गिरफ्तारी के खिलाफ कड़ा प्रतिवाद दर्ज करें!

आज के शासन के घोर मजदूर-विरोधी चरित्र को पहचानकर व इसके खिलाफ अभियान चलाकर ही मजदूर वर्ग अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेगा !

23 फरवरी को ‘मासा’ की पुकार पर प्रतिवाद सभा में शामिल हों!
स्थान – जंतर मंतर, दिल्ली | समय – 10 बजे सुबह

साथियो!

सं‍क्षेप में घटनाक्रम ये है : विगत 30 जनवरी को मारुति सुजुकी कंपनी में काम कर चुके और कर रहे हज़ारों अस्थाई मजदूर देश के विभिन्न हिस्सों से हरियाणा के आईएमटी मानेसर औद्योगिक इलाके में स्थाई रोज़गार, समान वेतन, वेतन वृद्धि की जायज़ मागों को लेकर एक रैली और सभा करने पहुंचने वाले थे। इसका आह्वान बीते 10 जनवरी को गुड़गांव में इन अस्थाई मजदूरों की हुई बड़ी सभा में गठित ‘मारुति सुजुकी अस्थाई मजदूर संघ’ द्वारा किया गया था। परंतु 30 जनवरी के एक दिन पहले से ही मानेसर तहसील पर “मानेसर चलो” कार्यक्रम के लिए यहां-वहां इकट्ठा हो रहे मजदूरों को पुलिस ने जबरन उठाना शुरू कर दिया और उनके टेंट, बैनर, भोजन-बर्तन और अन्य सभी सामानों को तोड़ दिया और फैंक दिया। यह तब हुआ जब मजदूरों को उसी दिन गुड़गांव सिविल कोर्ट से आदेश मिल चुका था कि वे कल मारुति फैक्ट्री से 500 मीटर की दूरी पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सभा कर सकते हैं। यानी, पुलिस ने कंपनी प्रबंधन के इशारे पर तथा उससे मिलीभगत कर कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और मानेसर तहसील के पूरे इलाके में धारा 144 (163 BNSS) लागू कर दी। इसके बावजूद बिना पीछे हटे जब अगले दिन भिन्न-भिन्‍न राज्यों से आए मजदूर मानेसर आईएमटी चौक पर शांतिपूर्ण सभा करने के लिए इकट्ठा होने लगे, तो पुलिस ने मारपीट और धक्कामुक्की करते हुए सैकड़ों मजदूरों को बसों में भर दिया। 76 मजदूरों व मजदूर कार्यकर्ताओं को मानेसर पुलिस लाइन ले जाकर वहीं रोके रखा, और बाकियों को पुलिस ने 40-50 किलोमीटर दूर अलग-अलग जगहों पर ले जाकर छोड़ दिया ताकि प्रदर्शन व सभा न हो सके। कई मजदूरों को जानवरों की तरह लाठियों से पीटते हुए खदेड़ा गया। मानेसर पुलिस लाइन में बंद 76 लोगों को पुलिस ने काफी दबाव के बाद रात 10 बजे छोड़ा, जिसके बाद उन्हें गुड़गांव श्रम विभाग कार्यालय के सामने ठंड में खुले मैदान में सोना पड़ा, जहां अगले दिन यानी 31 जनवरी को श्रम विभाग, मजदूर संघ, व कंपनी प्रबंधन की त्रिपक्षीय वार्ता की तारीख तय थी। लेकिन फि‍र से पुलिसिया दमन शुरू हो गया।  31 जनवरी की सुबह जब मजदूर अपने मांगपत्रक पर श्रम विभाग द्वारा बुलाई गई त्रिपक्षीय वार्ता के लिए आने लगे, तो पुलिस ने फिर से शांतिपूर्ण तरीके से खड़े मजदूरों को उठाना, उन्‍हें बसों में भरना और खदेड़ना शुरू कर दिया गया। वहां से हट कर जब वे गुड़गांव के कमला नेहरू पार्क में एकत्र हुए तो वहां भी पुलिस ने यही कार्रवाई की। बसों में भर कर सैकड़ों मजदूरों को मानेसर पुलिस लाइन और राजेंद्र पार्क थाना ले जाकर रखा गया। त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होने वाले नामित सभी अगुआ मजदूरों (एक को छोड़ कर) को भी हिरासत में ले लिया गया। इतना ही नहीं, मजदूरों के संघर्ष को कवर करने आए मीडिया, जैसे कि द वायर, के पत्रकारों पर भी पुलिस ने हमला किया। उनके कैमरे व मोबाइल छीन लिए और दो पत्रकारों को पुलिस वैन में करीब घंटे भर के लिए डि‍टेन कर लिया गया।

मजदूरों की मांगें ये हैं : गुड़गांव-मानेसर में मारुति सुजुकी के तीन प्लांट में स्थायी स्वरूप के काम पर लगभग 30 हज़ार अस्थायी मजदूर काम करते हैं जो कुल मजदूरों के 83% हैं। उत्पादन का काम मुख्‍यत: इन्हीं पर निर्भर है। लेकिन उन्‍हें “समान काम के लिए समान वेतन” तथा अन्‍य अधिकारों से वंचित करने के लिए तथा आसानी से जब चाहें निकाल बाहर करने के लिए उन्हें अस्थाई मजदूरों की अलग-अलग कैटेगरी, जैसे कि टेम्पररी वर्कर (TW), कैज़ुअल वर्कर (CW), स्टूडेंट ट्रेनी (MST) और ठेका, अप्रेंटिस, आदि, में बांट कर रखा गया है। स्थायी मजदूरों का औसत वेतन 1 लाख रूपये प्रति माह है, वहीं अस्थाई मजदूरों को मात्र 15,000 से 30,000 रूपये मिलते हैं। किसी की जॉब स्थाई नहीं है। किसी को 7 महीने के बाद तो किसी को 2-3 साल काम करवाने के बाद हटा दिया जाता है। वे जो हुनर प्राप्‍त करते हैं उसे मान्यता भी नहीं दिया जाता है। इससे उनको और कहीं सम्मानजनक काम भी नहीं मिलता है। 2013 से अब तक ऐसे हटाये गए युवा मजदूरों की संख्या 10 से 15 लाख के करीब है जिनकी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है। इस सम्बंध में मारुति और तमाम अन्य कंपनियां न तो किसी तरह के श्रम कानून को और न ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही मानती हैं। जब मजदूर इन्‍हीं श्रम कानूनों और कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कंपनियों पर इन्‍हें मानने के लिए सभा, प्रदर्शन और श्रम विभाग के माध्‍यम से प्रबंधन पर वार्ता के लिए दबाव बनाना चाहते हैं, तो पुलिस के बल पर उन्‍हें ऐसा करने से रोका जाता है जैसा ऊपर वर्णित है। मजदूरों की मांग वही है जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है – तमाम अस्थायी मजदूरों के लिए खरखोदा सहित मारुति के हर प्लांट में स्थायी रोजगार हो, समान काम के लिए समान वेतन दिए जाएं, तय समय-सीमा के अंदर वेतन समझौते हों तथा उन्हें लागू किया जाए, आदि।

शासन का रवैया क्‍या बताता है? शासन का रवैया बताता है कि वह कंपनियों और मालिकों की गैर-कानूनी मनमानी के साथ है और इसके लिए वह मजदूरों को बेआवाज बना देने की सीमा तक दमन करने के लिए जा सकता है तथा मजदूरों के बीच पुलिस बल का आतंक फैला सकता है। हम यह भी देख सकते हैं कि यह रवैया बढ़ता ही जा रहा है। धीरे-धीरे मजदूरों के समक्ष यह एक बड़ा राजनीतिक प्रश्‍न बनता जा रहा है कि क्‍या इस तरह की तानाशाही को उखाड़ फैके बिना मजदूर वर्ग की तात्‍कालिक मांगों के लिए जनवादी संघर्ष का मैदान बचा रह सकता है? ये प्रदर्शन-सभा मारूति सुजुकी में हड़ताल कर नहीं हो रहा था जिससे कि पूंजी को चोट पहुंचती। ये मजदूर वे हैं जिन्‍हें मारूति-सुजुकी पहले ही निकाल चुका है और जो सरकार, प्रबंधन और समाज को यह बताना चाह रहे थे कि कंपनियों के रवैये से लाखों मजदूरों का जीवन किस तरह बर्बाद हो रहा है। जबकि उनके श्रम की लूट से ही कंपनी की पूंजी का पहाड़़ खड़ा हुआ है। तो साफ है कि एक तरफ मजदूर वर्ग पर चोट की जा रही है और दूसरी तरफ उन्‍हें अपना दुख-दर्द बताने और अपनी बात कहने से भी रोका जा रहा है। वह भी कानूनों का उल्‍लंघन करके, कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाकर। मजदूरों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दमन वही शासन कर रहा है जो हिंदू-राष्‍ट्र के नारे से मजदूरों को धार्मिक नफरत करना सिखा रही है और मजदूरों को अपने जीवन के दुखों से दिग्‍भ्रमित करने में लगी है।

ऐसे में मजदूरों का आज का कार्यभार क्‍या है? यह कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है कि मजदूर समझ ही नहीं सकते हैं। मजदूर यह समझते हैं कि जब मजदूरों की तात्‍कालिक-आर्थिक मांगो के रास्‍ते में अगर एक खास तरह की सांप्रदायिक-फासीवादी राजनीति के आधार पर खड़ा आतंकी शासन मजदूरों को बेआवाज बनाने की कोशिश कर रहा हो, तो सबसे पहले इस राजनीति को पराजित करना और उखाड़ फैंकना जरूरी है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मजदूर वर्ग अपनी तात्‍कालिक-आर्थिक मांगों के लिए लड़ना छोड़ दें। नहीं। इसका अर्थ यह है कि मजदूर अपनी तात्‍कालिक-आर्थिक मांगों के लिए और भी जोरदार और चौतरफा लड़ाई में उतरें। यहां “और भी जोरदार लड़ाई” का एक ही अर्थ है – मजदूर वर्ग पर आतंकी शासन थोपने वाले शासक वर्ग से अपनी मांगों के लिए लड़ने के साथ-साथ उसकी राजनीति एवं राजनीतिक ताकत के खिलाफ भी लड़ना, और उसे पराजित करने के उद्देश्‍य को अपनी लड़ाई में शामिल करना।

अंत में, हम आपसे यह कहना चाहते हैं कि मारूति-सुजुकी के अस्‍थाई मजदूरों के प्रदर्शन का जिस तरह से दमन किया गया, उसे जिस तरह गैर-कानूनी तरीके से रोका गया, और जिस तरह से उन्‍हें तय वार्ता भी नहीं करने दिया गया, वह कोई मामूली घटना नहीं है। इसमें भविष्‍य के लिए खतरनाक संकेत छुपे हैं। संकेत यही है कि मजदूरों को अपनी मांगों के लिए संघर्ष करने की इजाजत भी नहीं दी जाएगी। अगर यह आजादी भी छिन जाएगी तो फिर मजदूर तो बेआवाज ही बना दिए जाएंगे न! फिर तो मजदूर वर्ग को बर्बर यु्ग का गुलाम ही बनना होगा न! लेकिन शासक वर्ग इसमें अंतत: सफल नहीं हो पाएगा। और इसका कारण स्‍वयं मजदूर वर्ग है जिसके लाल झंडे पर अन्यायी सत्‍ताओं को चुनौती देने का इतिहास अंकित है। हम जानते हैं कि मजदूर वर्ग इससे डरेगा नहीं, इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कमर कसेगा। अगर मजदूर वर्ग जिंदा है, जो कि है, तो जल्‍द ही इसका उस संघर्ष से जवाब देगा जिसके लिए वह जाना जाता है – यानी शोषण-शासन की व्‍यवस्‍था की जगह शोषणविहीन राज्‍य कायम करने के संघर्ष से। आइए, मारूति-सुजुकी के अस्‍थाई मजदूरों के प्रदर्शन व सभा तथा वार्ता को रोकने की कार्रवाई का कड़ा प्रतिवाद करके अपने इरादे को स्‍पष्‍ट करें, और यह बताने का काम करें कि इतिहास में पूंजीवाद का अंत लिखा है, और निश्‍चित ही आज न कल उसे इसके रंगमंच से हटा दिया जाएगा। मानव जाति पूंजी के शोषण के कलंक से मुक्‍त होगी। आइए, धर्म और जाति की दिवार तोड़ एकजुट हो!

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
IFTU (सर्वहारा)  |  सर्वहारा जनमोर्चा


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