(मारुति सुजुकी के अस्थाई मजदूरों द्वारा संघर्ष के नए आगाज़ पर इफ्टू (सर्वहारा) द्वारा जारी पर्चा। 24.01.2025)
मारुति में स्थायी काम से जुड़े TW-CW-MST-ठेका-अपरेंटिस साथियों को संघर्ष के नए आगाज़ के लिये सलाम!
साथियों!
मारुति के अस्थाई मजदूर साथियों ने एक बार फिर संघर्ष का बिगुल फूंका है। वे मांग कर रहे हैं कि तमाम अस्थायी मजदूरों के लिए खरखोदा सहित मारुति के हर प्लांट में स्थायी रोजगार हो, सारे समान काम के लिए समान वेतन दिए जाएं, और वेतन समझौते हों तथा उन्हें लागू किया जाए। इसके अलावे भी कई अन्य जायज अधिकार हैं जिनके लिए उन्होंने संघर्ष का एलान किया है। इस लड़ाई की अगुआई के लिए उन्होंने मारुति सुजुकी में पहले और अभी कार्यरत हजारों अस्थायी मजदूरों की भागीदारी से अपना एक मजदूर संघ “मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूर संघ” भी बना लिया है। हम इसके लिए भी उनका अभिनंदन करते हैं।
मारुति सुजुकी के तीन प्लांट में स्थायी स्वरूप के काम पर लगभग 30 हज़ार अस्थायी मजदुर काम करते हैं जो कुल मजदूरों का 83% हैं। उत्पादन का काम इन्हीं पर निर्भर है। लेकिन अधिकारविहीन करने के लिए उन्हें अस्थाई मजदूरों की अलग-अलग कैटेगरी जैसे कि टेम्पररी वर्कर, कैज़ुअल वर्कर, स्टूडेंट ट्रेनी और ठेका अप्रेंटिस, आदि में बांट कर रखा गया है। जाहिर है, ऐसा इन्हें “समान काम के लिए समान वेतन” से वंचित करने के लिए किया गया है। जहां स्थायी मजदूरों का वेतन ₹1,00,000 प्रति माह है, अस्थाई मजदूरों को मात्र ₹15,000 से ₹30,000 के बीच प्रति माह मिलता है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। किसी की जॉब स्थाई नहीं है। किसी को 7 महीने के बाद तो किसी को 2-3 साल काम करवाने के बाद हटा दिया जाता है। वो भी धोखे से – उनको प्राप्त हुनर की मान्यता दिए बिना ही, जिससे उनको और कहीं सम्मानजनक काम भी नहीं मिलता। 2013 से अब तक ऐसे हटाये गए युवा मजदूरों की संख्या 10 से 15 लाख के करीब है। उनकी जिंदगी आज बर्बाद और तबाह है। इस सम्बंध में भारत का श्रम कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश जो भी हों, मारुति और तमाम अन्य कंपनियां लंबे समय से उनका बिना किसी भय के उल्लंघन करती रही हैं। अब तो बचे-खुचे मजदूर-पक्षीय कानूनों को भी ठिकाने लगाया जा रहा है।
पूरी दुनिया में यही हो रहा है, जो बताता है कि श्रम पर पूंजी का नग्न वर्चस्व है। जब तक मजदूर वर्ग अपनी पूर्ण एकता के बल पर इस वर्चस्व को नहीं तोड़ेगा तब तक उन्हें ये अन्याय सहते रहना होगा। वे चाहे जिस भी तात्कालिक मांग के लिए लड़ना शुरू कर रहे हों, उन्हें नजर पूंजी के वर्चस्व व ताकत को चकनाचूर करने पर रखनी होगी। ऐसा नहीं होने वाला है कि मजदूर वर्ग की वर्गीय एकता और उसकी राजनीतिक व वैचारिक ताकत घटती जाएगी और पूंजी के अन्याय और शोषण-उत्पीड़न से उन्हें छुटकारा मिल जाएगा। अगर “हमें न्याय और अधिकार चाहिए” और अगर सच में “हमें अब और अन्याय बर्दाश्त नहीं है” तो इसके लिए जरूरी है कि मजदूर राजनीतिक लड़ाई में उतरें, देश की राजनीति में वे एक मजबूत फैक्टर बनें और वर्ग के बतौर पूंजीपति वर्ग के समक्ष उससे पूरी तरह भिन्न एक अलग सामाजिक शक्ति के रूप में सामने आएं जिसका एक खास मिशन हो – मानव द्वारा मानव के शोषण का अंत, पूंजी का नाश और निजी संपत्ति-साधन का खात्मा। ऊपर मारुति के अस्थाई मजदूरों के जिस शोषण और भेदभाव की बात की गई है उसका स्रोत यही निजी संपत्ति और निजी मुनाफे की व्यवस्था है, जिसकी वृद्धि और रक्षा एकमात्र विशाल आबादी को सम्पत्तिविहीन करके और फिर उनके श्रम का अमानवीय शोषण करके ही की जा सकती है। मजदूर जब तक इसे मानने और इसके अनुसार चलने से इनकार करते हुए शॉर्टकट में लगे रहेंगे, तो उनके जीवन का अंधकार मिटने वाला नहीं है। कहीं और कभी कोई छोटा दीया जल जा सकता है लेकिन तब तक अंधेरा और गहरा हो जाएगा।
कहने का मतलब है, संघर्ष जरूरी है जिसकी एक अच्छी शुरुआत मजदूरों ने की है। लेकिन दो अन्य चीजों की सख्त जरूरत है, एक तो बड़े पैमाने की वर्ग-एकता की और दूसरी, इस वर्ग एकता को हासिल करने वाले मुख्य औजार –मजदूर वर्गीय राजनीतिक संघर्ष और क्रांतिकारी प्रचार की। इसके द्वारा ही मजदूर समझ पाएंगे कि उनके जीवन के दुखों का वास्तविक स्रोत क्या है, वे पूंजीपति वर्ग तथा अन्य दरमियानी वर्गों व तबकों के समक्ष कहां खड़े हैं, वे पूंजीवादी पार्टियों के लिए क्या हैं और क्या मायने रखते हैं, और उनकी मुक्ति किस तरह मौजूदा व्यवस्था को तथा इससे जुड़ी तमाम राजनीति व विचारधारा एवं पुराने तमाम तरह के सामाजिक संबंधों के झाड़-झंखाड़ को उखाड़ फेंककर ही सम्भव है।
हम मारुति के अस्थाई मजदूरों द्वारा न्याय और अधिकार के लिए शुरू किए गए संघर्ष का तहे दिल से स्वागत करते हैं और उनकी यह लड़ाई मजदूरों की तात्कालिक जीत को सुनिश्चित करने के साथ-साथ मजदूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई और इसके लिए जरूरी इरादे और संकल्प को मजबूत करेगी, हम इसकी कामना करते हैं। तमाम लड़ाकू मजदूरो से हमारी अपील है कि वे मजदूर वर्ग द्वारा पूंजी के जुए से मुक्ति के लिए लड़ी जाने वाली अंतिम लड़ाई की जरूरत को कभी नहीं भूलें। उसी में हमारी आज की तात्कालिक लड़ाई की जीत की कुंजी निहित है। जब पूंजीपति वर्ग को यह अहसास होता है कि मजदूर अपने ऐतिहासिक मुक्ति की कामना और इरादे से युक्त बड़ी लड़ाई के लिए सीना तानकर निकलने को तैयार हैं, तभी वह डरकर तात्कालिक मांगों को मानने के लिए बाध्य होता है। तभी वह डर कर हमले करने से बाज आता है और सुलह-समझौते के लिए सामने आता है। महज़ आर्थिक मांगों तक सीमित संघर्षो से पूंजीपति वर्ग उसी तरह पेश आता है जैसे आज वह आ रहा है। वर्ग-संघर्ष ही नहीं, हर जीवन-संघर्ष का यही नियम है। उम्मीद है कि बार-बार गिरकर उठने और फिर से लड़ने के लिए मजबूर मजदूर इस बात को अच्छी तरह समझेंगे।
अंत में हम उनकी तमाम तात्कालिक मांगों का समर्थन करते हुए उनके संघर्ष में हर सम्भव मदद व भागीदारी का वचन देते हैं –
1. मारुति सुजुकी कंपनी में स्थायी काम के लिए स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति हो!
– प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके और पहले काम कर चुके सभी अस्थायी कर्मचारियों को उनके कौशल और अनुभव के आधार पर मारुति के विभिन्न प्लांटों में स्थायी रोजगार दिया जाए।
– खरखोदा प्लांट में सभी नियुक्तियों में मारुति में काम कर चुके अस्थायी कर्मचारियों, अपरेंटिस, और प्रशिक्षुओं को प्राथमिकता दी जाए, और सभी की स्थायी नियुक्ति की जाए।
2. प्रशिक्षण के नाम पर अस्थायी कर्मचारियों और अपरेंटिस के साथ हो रहे धोखे का अंत हो।
TW और MST-अपरेंटिस को ऐसा उपयोगी प्रशिक्षण दिया जाए जो पूरे उद्योग में मान्यता प्राप्त हो।
3. वेतन समझौते में अस्थायी कर्मचारियों को 40% वेतन वृद्धि दी जाए।
सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के समान बोनस, दिवाली उपहार, छुट्टी, और स्पेयर पार्ट्स की राशि सुनिश्चित की जाए।
4. समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया जाए।
पहले कार्य कर चुके अस्थायी कर्मचारियों को उनके कार्यकाल में स्थायी और अस्थायी वेतन के अंतर की राशि ‘क्लीयरेंस राशि’ के रूप में दी जाए।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (सर्वहारा)