29 दिसंबर 2024, पश्चिम बंगाल
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मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी नेता कामरेड सुनील पाल की 15वीं शहादत वर्षगांठ पर पीआरसी सीपीआई (एमएल) और आईएफटीयू (सर्वहारा) ने संयुक्त रूप से पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले के हरिपुर इलाके में 29 दिसंबर को एक शहीद रैली और जन सभा का आयोजन किया। यह वही जगह है जहां डेढ़ दशक पहले कामरेड पाल की हत्या की गई थी। यह रैली मजदूर वर्ग की मुक्ति के संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी क्रांतिकारी शहीदों की याद में आयोजित की गई थी।
केन्दा पुलिस चौकी मैदान से शुरू हुई इस रैली में विभिन्न राज्यों से सैकड़ों लोग शामिल हुए, जिनमें मजदूर, छात्र, बच्चे, महिलाएं और क्रांतिकारी कार्यकर्ता शामिल थे। रैली का समापन हरिपुर में एक जन सभा के रूप में हुआ, जिसकी शुरुआत सभी क्रांतिकारी शहीदों की याद में एक मिनट का मौन रखकर और गूंजते नारों के बीच शहीदों की वेदी पर पुष्पांजलि अर्पित करके की गई।




















कॉमरेड कन्हाई बरनवाल द्वारा संचालित इस जन सभा को निम्नलिखित वक्ताओं ने संबोधित किया: अजय सिन्हा (महासचिव, पीआरसी सीपीआई एमएल), संजीत अधिकारी (पीआरसी बंगाल), राधे (पीआरसी बिहार), सिद्धांत (पीआरसी दिल्ली), साथ ही बिरादराना संगठनों के प्रतिनिधियों में से कामरेड मुकेश असीम (सर्वहारा जनमोर्चा), श्यामवीर (इंकलाबी मजदूर केंद्र), अवाश मुंशी (मजदूर क्रांति परिषद), अशोक बैठा (सीपीआई एमएल), शंकर (सीपीआई एमएल रेड स्टार), भोलानाथ सीट (सीपीआई एमएल मास लाइन), कीर्तन कटाल (सीपीआई एमएल न्यू डेमोक्रेसी), सोमेंदु गांगुली (लाल झंडा मजदूर यूनियन समन्वय समिति), आरपी सिंह (मंथन पत्रिका), सागर (सीसीएसएस), भारत (मजदूर सहायता समिति), अरुण मुखर्जी (सीपीआई एमएल)। बैठक में पीसीसी सीपीआई एमएल, ईसीएल ठेका श्रमिक अधिकार यूनियन, खान मजदूर कर्मचारी यूनियन और एनटीयूआई के साथी भी मौजूद थे। पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक टीम ‘अरुणोदय’ द्वारा हिंदी और बंगला में क्रांतिकारी गीत – “लाल लाल झंडा है” और “एमोन देशे जनम मोदेर” प्रस्तुत किए गए।
सभी वक्ताओं ने कॉमरेड सुनील पाल को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि दी और पूरे ईसीएल कोयलांचल क्षेत्र में उनके नेतृत्व में किए गए मजदूरों के बहादुराना संघर्षों को याद किया, जिसके कारण अंततः तत्कालीन सीपीएम राज्य सरकार के किराए के गुंडों द्वारा शासक वर्ग के हितों की सेवा करते हुए आईएफटीयू के यूनियन कार्यालय में उनकी हत्या कर दी गई थी। वक्ताओं ने व्यापक जनता पर बढ़ते पूंजीपरस्त हमले और पिछले एक दशक से फासीवादी ताकतों द्वारा राजसत्ता और संस्थानों पर कब्जा व उनका टेकओवर करने के बाद देश और बंगाल में बढ़ते विभाजनकारी और जहरीले फासीवादी आंदोलन, फासीवाद को हराने में बुर्जुआ विपक्षी दलों की अक्षमता और अंततः फासीवाद के साथ-साथ पूंजीवाद को हराने के लिए एक व्यापक जन आंदोलन और एक क्रांतिकारी सर्वहारा-वर्गीय हरावल की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
पीआरसी और आईएफटीयू (सर्वहारा) के साथियों ने मजदूर वर्ग और उसकी ताकतों के लिए फासीवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए खुद को तैयार करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसे अंततः व्यापक जनता द्वारा सड़कों से संसद तक लड़ा जाएगा, और जनतंत्र की निर्णायक लड़ाई जीतकर एक क्रांतिकारी सरकार का गठन करने, जो बड़ी पूंजी के प्रभाव से स्वतंत्र होगी ताकि फासीवाद को निर्णायक रूप से हराया जा सके और मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन यानी समाजवाद-साम्यवाद को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके, पर जोर दिया। सभी वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सुनील पाल जैसे निडर और अडिग मजदूर नेता को याद करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता कि शोषण और वर्गों से मुक्त एक नई दुनिया के निर्माण के हमारे साझा सपने को साकार करने के लिए हम और भी अधिक जोश के साथ काम करना जारी रखें।
कामरेड सुनील पाल (1958-2009) के बारे में
कॉमरेड सुनील पाल की कर्मभूमि बर्धमान-आसनसोल-शिल्पांचल (कोलफील्ड-औद्योगिक क्षेत्र) थी जहां वे 1977 में क्रांतिकारी विचारधारा से जुड़े गए थे। कॉलेज के दिनों से ही जुझारू मजदूर आंदोलन खड़ा करने में जुटे कामरेड पाल जल्द ही बंगाल के एक मशहूर लड़ाकू मजदूर नेता बन कर उभरे। पश्चिम बर्धमान जिले के रानीगंज में कॉलेज में पहुंचते ही वे पेशेवर क्रांतिकारी बनने का फैसला ले चुके थे। वो अपने पांच भाइयों व तीन बहनों में चौथे थे और एक समय में नक्सलवादी आंदोलन का दुर्ग माने जाने वाले केंद्रा क्षेत्र में अपने गांव में उन्होंने अपना बचपन बिताया था। उनका परिवार गरीब-निम्न मध्य किसान की श्रेणी में था। सत्तर के दशक के अंत में और अस्सी के शुरुआत में वह क्रांतिकारी आंदोलन में पूरी तरह कूद पड़े। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
तब बंगाल में वामफ्रंट सरकार का श्वेत संत्रास कायम था जिसके निशाने पर अक्सर क्रांतिकारी होते थे। कॉमरेड सुनील पाल पर भी कोयला व अन्य क्षेत्र के मजदूरों को संगठित करने के क्रम में अनेकों बार जानलेवा हमले हुए। हमारे यूनियन कार्यालयों व साथियों पर गोलियों व बमों तक से हमले होते थे और इस क्रम में हमारे कई फ्रंटलाइन कार्यकर्ता (जैसे बालेश्वर भुइयां, गौरगड़ी और महादेव आंकुड़िया आदि) शहीद हो चुके हैं। कामरेड पाल की शहादत के कुछ वर्ष पूर्व ही उनके बड़े भाई गणेश पाल, जो कि खुद भी एक क्रांतिकारी कार्यकर्ता और नेता थे, भी सीपीएम के गुंडों के हाथों शहीद हो चुके थे।
अंतत: कॉमरेड सुनील पाल को भी मारने का षडयंत्र 29 दिसंबर 2009 के दिन सफल हो गया, जब वह 51 वर्ष के थे। आज से 15 वर्ष पूर्व इसी दिन बंगाल के बाहर से बुलाये गये आधे दर्जन भाड़े के गुंडों ने नवनिर्मित हरिपुर आईएफटीयू केंद्रीय ऑफिस में शाम के धुंधलके में (जब पूरे इलाके में “ऊपर से” बिजली भी कटवा दी गई थी) घुसकर स्वचालित स्टेनगनों से उनके शरीर में कई दर्जनों गोलियां दाग दीं जिससे उनकी तत्काल मौत हो गयी। हमले की साजिश में सीपीएम के शीर्ष तथा स्थानीय कद्दावर नेता तक शामिल थे। उनका इरादा हमारे संगठन को नेस्तनाबूद करने करने का था, लेकिन जैसा कि सभी जानते हैं, ठीक अगले चुनाव में स्वयं वामफ्रंट सरकार को ही जनता ने खत्म कर दिया, जबकि हमारी पाटी आज भी कायम और सक्रिय है। आज बंगाल में टीमएसी मजदूर वर्ग के अधिकारों पर हमलावर है और साथ में हमारे व्यक्तिगत पार्टी लीडरों व काडरों को भी पार्टी छोड़ने के लिए दबाव बनाती है व उनपर षडयंत्रमूलक हमले भी करवाती है। लेकिन हम आज भी अत्यंत विकट परिस्थिति में, जहां बंगाल का पूरा राजनीतिक स्पेस अर्धफासिस्ट टीएमसी और फासिस्ट भाजपा के बीच बंट गया है, क्रांतिकारी संघर्ष की परंपरा को कायम रखने में जुटे हैं।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
प्रोलेतारियन रिऑर्गनाइजिंग कमेटी, सीपीआई (एम एल)
इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (सर्वहारा)
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