धनंजय कुमार | ‘सर्वहारा’ #64-65 (1 दिसंबर 2024)
मैं पिछले दिनों अपनी बेटी के इलाज के लिए पटना के पीएमसीएच (पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) गया था। पूरे बिहार से और बिहार के बाहर से भी लोग यहां इलाज कराने आते हैं। आज कल इसका पूरी तरह से कायाकल्प किया जा रहा है और इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल बनाने की तैयारी चल रही है। लेकिन इसके साथ ही यह भी बातें सुनने को मिल रही हैं कि काम पूरा हो जाने के बाद इसे टुकड़ों में पहले अर्ध-सरकारी और फिर बाद में पूरी तरह प्राइवेट भी कर दिया जाएगा। इसके प्राइवेट हो जाने के बाद जो कुछ थोड़ा-बहुत इलाज आम मजदूर-मेहनतकशों को मिल पाता है, वो भी उनके हाथ से चला जाएगा। पीएमसीएच की आज स्थिति बहुत दयनीय है। इसी को कारण बता कर, इसे ठीक करने के बजाय, इसे प्राइवेट हाथों में दे दिया जाएगा, जैसे अन्य कई अस्पतालों को दिया जा चुका है।
पीएमसीएच की आज की स्थिति की बात करें तो सबसे पहले जो चीज वहां दिखाई दी वो थी लोगों की भीड़। किसी भी विभाग को ले लीजिये, सभी में इलाज के लिए लोगों की भीड़ लगी हुई है। लगभग सारे विभागों में मरीज या उनके परिजन पर्ची कटने का काउंटर खुलने के कई घंटों पहले सुबह से ही लाइन में लगे रहते हैं। रोज की यही स्थिति रहती है। इसके बावजूद काउंटरों के पास मरीजों या उनके परिजनों के बैठने के लिए कोई जगह नहीं बनाई गयी है। पीएमसीएच के हर विभाग में डॉक्टरों की भारी कमी है। हर दिन हजार से ऊपर मरीज यहां ओपीडी में दिखाने आते हैं। इतने मरीजों के लिए डॉक्टर काफी कम है इसलिए हर डॉक्टर को कई-कई घंटे ओवरटाइम करना पड़ता है। ऐसे में मरीजों के इलाज की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। अगर डॉक्टरों की बहाली सही समय पर होती, सभी खाली पदों को भरा जाता और पदों की संख्या मरीजों की संख्या के अनुपात में बढ़ती तो ना डॉक्टरों पर अत्यधिक दबाव पड़ता और ना ही मरीजों को इलाज के अभाव में रहना पड़ता।
पीएमसीएच में मरीजों का इलाज तो मुफ्त होता है लेकिन इसके अलावा अधिकतर दवाई और जांच का खर्च मरीजों को अपनी जेब से देना पड़ता है क्योंकि पीएमसीएच के अन्दर जो मुफ्त दवाइयां और जांच की सेवा उपलब्ध है वो अत्यंत सीमित है। दवाइयों की लाइन भी लंबी होती है और लाइन में काफी देर लगने के बाद अपना नंबर आने पर पता चलता है कि डॉक्टर की लिखी दवाइयों में अधिकतर दवाइयां अस्पताल में उपलब्ध नहीं है और उन्हें बाहर से खरीदना होगा। इसी तरह डॉक्टरों द्वारा लिखी जांच भी अधिकतर समय मरीजों को प्राइवेट जांचघरों से ही करवानी पड़ती है क्योंकि या तो अस्पताल में जांच कराने और रिपोर्ट मिलने में कई दिन का समय लगता है या फिर जांच की मशीन ही खराब रहने के कारण अस्पताल में जांच होना संभव ही नहीं रहता है।
ध्यान देने वाली बात है कि पीएमसीएच बिहार का सबसे बड़ा पूर्ण सरकारी अस्पताल है। जब यहां की स्थिति ऐसी है तो पटना के अन्य अस्पतालों व बिहार के अन्य जिलों व ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति कितनी भयावह होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। खराब व्यवस्था, तुरंत इलाज ना मिल पाना, जर्जर संरचना, आदि कारणों की वजह से ही गरीब मजदूर और मेहनत करके किसी तरह से जीवन यापन करने वाली जनता भी सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने से कतराती है। वे अपनी खून पसीने की कमाई को प्राइवेट अस्पतालों में लुटा देते हैं जहां लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी ठीक से इलाज नहीं मिल पाता है।
फाइव स्टार होटल जैसे दिखने वाले प्राइवेट अस्पताल असल में जनता को लूट कर ही मालामाल होते हैं। पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाने के लिए काम करने वाली ये सारी सरकारें, एक सोची समझी नीति के तहत सरकारी अस्पतालों, सरकारी स्कूलों व आम जनता के लिए बने सभी सरकारी संस्थानों को खोखला कर रही हैं ताकि जनता प्राइवेट अस्पतालों व प्राइवेट स्कूलों में जाने को मजबूर हो जाएं। आज आम जनता को सरकार से कुछ भी सहायता नहीं मिल पाती है। पानी, बिजली, घर, खाना, आवागमन, शिक्षा, इलाज, आदि सभी चीजें जनता को अपनी जेब से ही जुटानी पड़ती है। ऊपर से महंगाई है की बढ़ती ही जा रही है। इतनी महंगाई में आमदनी का एक बड़ा हिस्सा रोजमर्रा के खर्चों में और किसी तरह जीवन निर्वाह में ही चला जाता है। कोई बचत नहीं हो पाती है। ऐसे में अगर कोई बड़ी बीमारी हो जाये तो मजदूर परिवारों को इलाज कराने में अपनी जमीन-जगह तक बेच देनी पड़ती है। फिर भी इन प्राइवेट अस्पतालों में इलाज नहीं मिल पाता है। अगर मजदूरों को एक अच्छा जीवन जीना है तो उन्हें इन सारे विषयों पर सोचना होगा और इनकी जड़ तक जाना होगा। इसकी जड़ में और कुछ नहीं बल्कि मजदूरों का खून चूस कर और उनसे लूट कर मुनाफा बनाने वाली ये पूंजीवादी व्यवस्था है। जब तक इसका खात्मा नहीं होगा, मजदूरों का ना आज का जीवन अच्छा हो पायेगा, ना ही उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा।
(धनंजय कुमार पटना में कई सालों से राज मिस्त्री का काम करते हैं।)