‘सर्वहारा’ #60-61 (1-31 अक्टूबर 2024)
विषय : जाति उन्मूलन का कार्यभार और मजदूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन
[कन्वेंशन में पेश प्रपत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें]
दिल्ली, 6 अक्टूबर 2024 : रविवार को दिल्ली के अंबेडकर भवन में सर्वहारा जनमोर्चा (प्रोलेतारियन पीपल्स फ्रंट) द्वारा “जाति उन्मूलन का कार्यभार और मजदूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन” विषय पर एक कन्वेंशन आयोजित किया गया। कन्वेंशन में दस राज्यों – दिल्ली, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, झारखंड, प. बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड – से करीब 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, छात्र, शोधकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, मजदूर व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता शामिल थे।
कार्यक्रम की शुरुआत 1:45 बजे अपराह्न से ‘अरुणोदय’ सांस्कृतिक टीम द्वारा प्रस्तुत एक क्रांतिकारी गीत “चले चलो दिलों के घाव लेकर” के साथ हुई। इसके बाद प्यारेलाल ‘शकुन’ ने सभागार में उपस्थित सभी व्यक्तियों का स्वागत करते हुए आरंभिक वक्तव्य रखा, और अध्यक्ष मंडल को सम्मेलन की अध्यक्षता और संचालन हेतु मंच पर आमंत्रित किया। अध्यक्ष मंडल में मुकेश असीम, विदुषी प्रजापति, प्यारेलाल शकुन, रामदयाल पासवान, और रामनरेश उपस्थित थे। विमर्श की शुरुआत करते हुए सर्वहारा जनमोर्चा की ओर से तैयार किए गए आधार पत्र को मोर्चा के संयोजक मुकेश असीम ने प्रस्तुत किया, तथा भिन्न सांगठनिक प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों को इसपर अपने विचार प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया।





सर्वहारा जन मोर्चा की ओर से ‘जाति उन्मूलन कार्यक्रम की दिशा में’ शीर्षक से पेश आधारपत्र में जाति उन्मूलन की दिशा में अब तक के विचारों व प्रयासों की संक्षिप्त ऐतिहासिक समीक्षा रखते हुए इनकी सीमाओं का विश्लेषण रखा गया। भारत में सामंतवाद व औपनिवेशिक शासन के खिलाफ मजदूरों-किसानों के नेतृत्व में नीचे से क्रांतिकारी भूमि सुधारों को अंजाम तक पहुंचाते हुए जनवादी क्रांति संपन्न होती तो वह जाति और जाति आधारित उत्पीड़न को बहुत हद तक कमजोर कर देती। परंतु एक जुझारू जनवादी क्रांति के बजाय भारतीय पूंजीपति वर्ग साम्राज्यवाद व जमींदारों के साथ समझौते द्वारा सत्ता में आया और भू मालिकाना बड़े हद तक सवर्ण जमींदारों के पास ही रह जाने से जाति उत्पीड़न का आधार लगभग अटूट ही रह गया। दलित जातियों को आरक्षण के सीमित अधिकार, जातिगत पेशों के टूटने तथा सार्वजनिक जीवन में छुआछूत की बहुत हद तक समाप्ति के बावजूद पूंजीवाद ने भी जाति को अपने वर्गीय शासन के हित व सुरक्षा में चुनावी राजनीति के अंतर्गत सहयोजित कर लिया है तथा पूंजी व संपदा के बढ़ते संकेंद्रण व आर्थिक संकट की वजह से उभारे जा रहे फासीवाद के दौर में मेहनतकश वंचितों पर जाति उत्पीड़न के बढ़ने की प्रवृत्ति को देखा जा सकता है। अतः अब जाति उन्मूलन का संघर्ष सर्वहारा वर्ग द्वारा पूंजीवाद के उन्मूलन के संघर्ष का अभिन्न अंग बन गया है। मजदूर वर्ग निजी संपत्ति के उन्मूलन व वर्गहीन समाज बनाने के अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के कार्यभार के अंतर्गत ही जाति सहित सभी प्रकार के शोषण व उत्पीड़न के उन्मूलन का कार्यभार भी पूरा करेगा। इस अंतिम लक्ष्य के अंतर्गत मौजूदा दौर में भी जाति विरोधी संघर्ष के कुछ फौरी कार्यभार हैं। आधारपत्र में सर्वहारा वर्गीय दृष्टिकोण से एक जाति उन्मूलन कार्यक्रम की प्रस्तावित रूपरेखा सहित कुछ फौरी कार्यभारों की चर्चा भी की गई।
विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि वक्ताओं द्वारा सर्वहारा जनमोर्चा को इस महत्वपूर्ण सवाल पर चर्चा आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए गंभीर व तीखी बहस की गई जिसमें उपस्थित श्रोताओं के बीच से भी कई हस्तक्षेप किए गए। इसमें कई असहमतियों, आलोचनाओं व सुझावों को रखा गया तथा सर्वहारा वर्गीय दृष्टिकोण से एक जाति उन्मूलन कार्यक्रम तैयार करने हेतु मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी शक्तियों के बीच और भी व्यापक बहस को आगे बढाने की जरूरत पर बल दिया गया।


वक्ताओं में शामिल थे तुहिन देव (भाकपा माले रेड स्टार), जेपी नरेला (जाति उन्मूलन संगठन), नन्हेलाल (जाति उन्मूलन मंच / चार्वाक), शोवन चक्रवर्ती (प्रोफ़ेसर, पटना साइंस कालेज), अलोक (मज़दूर एकता केंद्र), श्याम नारायण सिंह (मंथन पत्रिका), बुद्धेश (विकल्प मंच, सहारनपुर), लखविंदर (संपादक, मुक्ति संग्राम अखबार), विमल त्रिवेदी (भाकपा माले मास लाइन), अर्जुन प्रसाद सिंह (डेमोक्रेटिक पीपल्स फ्रंट), सुभाष (श्रमिक संग्राम कमेटी), अमृत लाल (जयपुर में सामाजिक कार्यकर्ता), प्रवेन्द्र (मज़दूर सहायता समिति), सौरभ (समाजवादी लोकमंच), संतोष (मज़दूर पत्रिका), वीर भगत (भाकपा माले), सुजॉय (कम्युनिस्ट लीग फ़ोर्थ इंटरनेशनलिस्ट), शाम्भवी (कलेक्टिव छात्र संगठन), निरंजन (एआईआरएसओ), महावीर पोद्दार (हज़ारीबाग में सामाजिक कार्यकर्ता), अजय सिन्हा (पीआरसी सीपीआई एमएल)। सभी वक्ताओं ने विषय पर अपने विचारों तथा आधार पत्र पर टिप्पणियों-मतभेदों को मंच से प्रस्तुत किया, जो सर्वहारा जनमोर्चा के फेसबुक पेज पर उपलब्ध हैं।
सभागार में कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ऑफ इंडिया, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इफ्टू (सर्वहारा), विमुक्ता स्त्री मुक्ति संगठन, पीडीवाईएफ, बिहार ग्रामीण मजदूर यूनियन, निर्माण मजदूर संघर्ष यूनियन (पटना), खान मजदूर कर्मचारी यूनियन (प. बंगाल), मायापुरी मजदूर यूनियन (दिल्ली) के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त लाल झंडा मज़दूर यूनियन (समन्वय समिति), इंकलाबी मजदूर केंद्र तथा कर्नाटका जनशक्ति की तरफ से कन्वेंशन की सफलता की शुभकामनाएं तथा उपस्थित न रह पाने पर खेद व्यक्त करते हुए आयोजकों को लिखित संदेश भेजे गए थे। क्रांतिकारी व प्रगतिशील साहित्य उपलब्ध कराने हेतु सभागार में ही गार्गी प्रकाशन, मुक्ति संग्राम, मंथन पत्रिका, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, यथार्थ पत्रिका व सर्वहारा अखबार के साथियों ने बुक स्टाल भी लगाए थे।
अंत में अध्यक्ष मंडल की तरफ से विदुषी ने सभागार में यह प्रस्ताव पेश किया कि जाति उन्मूलन और मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन के गंभीर विषय पर जो विमर्श इस कन्वेंशन में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है उसे पहला कदम मानते हुए, एक क्रांतिकारी जाति उन्मूलन कार्यक्रम बनाने के कार्यभार की दिशा में इसे आगे बढ़ाने के लिए कन्वेंशन में पेश हुए सभी वक्तव्यों और विचारों का समाहार और उनपर एक लिखित पेपर सर्वहारा जनमोर्चा की प्रस्तावक कमेटी द्वारा तैयार किया जाएगा और समस्त क्रांतिकारी व प्रगतिशील आन्दोलन के बीच आगे के विमर्श हेतु प्रसारित किया जाएगा। तालियों की गड़गड़ाहट से यह प्रस्ताव पारित हुआ और ‘इंकलाब जिंदाबाद! पूंजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! जातिवाद-पितृसत्ता-फासीवाद हो बर्बाद!’ के ज़ोरदार नारों के साथ 7:30 बजे शाम में कन्वेंशन का सफलतापूर्वक समापन किया गया।
(सर्वहारा जनमोर्चा की प्रस्तावक कमेटी द्वारा जारी रिपोर्ट।)