मुकेश असीम | ‘सर्वहारा’ #60-61 (1-31 अक्टूबर 2024)
भारत की मौजूदा व्यवस्था अर्थात पूंजीवादी जनतंत्र में विभिन्न चुनावी दलों के बीच सत्ता में आने के लिए परस्पर होड़ चलती रहती है और जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए वे एक दूसरे के खिलाफ बहुत कुछ बयानबाजी भी करते हैं। कई बयान आम जनता के हित में भी लगते हैं। पर थोड़ा गहराई में जाकर परखा जाए तो पता चलता है कि इन सब परस्पर विरोधी लगने वाले बयानों में जनता के पक्ष में कुछ नहीं होता। इन गरम, विरोधी व कटु लगने वाली बातों के पीछे भी यह सभी दल मजदूर वर्ग के खिलाफ व पूंजीपतियों के हित में एकजुट रहते हैं। असल में इनकी परस्पर विरोधी बातों का मकसद यही होता है कि जनता गुमराह होकर पूंजीपतियों के हित की नीति को जनहित व मेहनतकश के लाभ की नीति समझ ले।
सितंबर महीने में ही अमीरों द्वारा हेलीकॉप्टर से यात्रा पर जीएसटी घटाकर 5% कर दिया गया, जबकि निम्न मध्य वर्ग व मजदूरों के भी एक हिस्से द्वारा प्रयुक्त मोटरसाइकिल की सीट पर जीएसटी 18% से बढ़ाकर 28% कर दी गई। इससे इस पर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई।
लेकिन यह कोई अकेली घटना नहीं है। यह आज के पूंजीवाद की नवउदारवादी नीतियों का सार बताने वाले उदाहरणों में से है। मजदूरों-मेहनतकशों व निम्न मध्य वर्ग पर शोषण की मार व करों का बोझ बढ़ाना एवं पूंजीपतियों व अमीरों को टैक्स में रियायत व प्रोत्साहन देना, उनके अधिकतम मुनाफे सुनिश्चित करना, यही आज शासक वर्ग की नीति है।
इस काम में बीजेपी सर्वाधिक निर्मम जरूर है, पर अकेली या अपवाद नहीं है। यह निर्णय जीएसटी काउंसिल में केंद्र व राज्य सभी सरकारों ने मिलकर सर्वसम्मति से लिया है। इस मामले में बीजेपी, कांग्रेस, आप, द्रमुक, तृणमूल, वाममोर्चा, वगैरह सब एकराय हैं।
असल में अप्रत्यक्ष टैक्स नीति को संसद के खुले दायरे से निकाल कर जीएसटी काउंसिल के जनता की नजर से परे वाले दायरे में ले जाया ही इस मकसद से गया था कि पूरा शासक वर्ग मिलजुलकर आराम से गुपचुप जनविरोधी फैसले करता रहे। संसद में किसने किस बात का समर्थन या विरोध किया, यह बात जाहिर होने से सभी दलों को दिक्कत होती थी।
विपक्ष के नेता राहुल गांधी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहते हैं जो सही बात है। पर क्या वो इससे कुछ बेहतर लाना चाहते हैं? उनका कहना है कि जीएसटी की कई दरों के बजाय एक ही दर होनी चाहिए। साफ है कि कांग्रेस जीएसटी के विरोध में नहीं है, बल्कि वो इसे और भी अधिक गरीब विरोधी व पूंजीपतियों के लिए बेहतर बनाने की बात कर रहे हैं – एक दर होने के लिए महंगे लग्जरी सामानों पर टैक्स दर कम कर गरीबों के उपभोग के सामानों पर टैक्स दर बढ़ानी होगी।
इसमें मजदूर वर्ग के हित की बात कहां है? मेहनतकश जनता का हित तो सभी अप्रत्यक्ष करों को समाप्त कर आमदनी और संपत्ति के बढ़ते क्रमानुसार टैक्स की व्यवस्था में है। मगर बीजेपी हो या कांग्रेस सभी पूंजीवादी पार्टियां कॉर्पोरेट व अमीरों को टैक्स छूट तथा गरीबों पर और भी ऊंचे टैक्स लगाने की पक्षधर हैं।
मेहनतकश वर्ग की दृष्टि से देखें तो जीएसटी उस पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ और महंगाई बढ़ाने वाली नीति है, हालांकि पूंजीपति वर्ग के लिए इसके अन्य कई लाभ भी हैं। बीजेपी ने जीएसटी को 5 स्लैब वाला बनाना तय किया था हालांकि कांग्रेस तब भी एक या दो स्लैब वाला जीएसटी चाहती थी। मौजूदा व्यवस्था में तात्कालिक राहत के तौर पर आम जनता के उपभोग की कुछ वस्तुओं को शून्य या कम दर वाले स्लैब में रखकर यह बताने की कोशिश की गई थी कि इससे अप्रत्यक्ष कर और महंगाई का बोझ नहीं बढ़ेगा।
अब सभी दलों में यह सहमति बन रही है कि स्लैब कम किए जाएं तथा दर ऐसी हो ताकि कर वसूली में कोई कमी भी न हो। उच्च दरों को घटाने पर यह कैसे मुमकिन है? एक ही तरीका है – साथ ही निम्न दरों को बढ़ाना। आर्थिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि कर वसूली की रकम उतनी ही रहे, पर दर एक हो जाए इसके लिए जीएसटी की दर 16% के आसपास रखनी होगी। पर आमतौर पर 18% वाले स्लैब को एक दर बनाने की बात होती रही है। अर्थात आज जिन वस्तुओं पर दर 5 व 12% है उसे बढ़ाना होगा, जबकि आम तौर पर ऐशो आराम की वस्तुओं पर लगने वाली 28 व 40% की दरें कम हो जाएंगी।
मूल बात यह कि एक दूसरे के विरोध में प्रतीत होने वाले तुर्की-बतुर्की बयानों का कुल जमा मकसद आम जनता को भ्रमित कर एक या दो ही स्लैब वाली जीएसटी के पक्ष में आम राय कायम करना है जिसको हासिल करने के लिए उच्च दरों को कम और निम्न दरों को बढ़ाना होगा अर्थात उच्च व मध्यम वर्ग को राहत देने हेतु आम गरीब लोगों पर बोझ बढ़ाया जाएगा।
पूंजीवादी टैक्स व्यवस्था की जानकारी रखने वाले सब जानते हैं कि सभी के लिए एक समान दर वाले अप्रत्यक्ष टैक्स का अर्थ कम आय वालों पर अधिक टैक्स दर और अधिक आय पर कम टैक्स दर होता है, इसीलिए इन्हें प्रतिगामी टैक्स कहा जाता है। इसके बरक्स अधिक आय पर क्रमशः अधिक दर वाले प्रत्यक्ष करों को प्रगतिशील कर माना जाता रहा है।
जीएसटी दर अधिक हो या कम हो, दर एक हो या पांच हों, जीएसटी गरीब मेहनतकश की थोड़ी सी आय में से भी सरकार द्वारा जेबकतरा टैक्स है। जीएसटी या कोई भी अप्रत्यक्ष कर जिस भी रूप में और जिस भी दर वाला है वो छोटे काम धंधे वालों हेतु हानिकारक तथा अंबानी अडाणी के लाभ वाला टैक्स है। दरें बदलने से वह गरीब मेहनतकश के पक्ष का टैक्स नहीं बन सकता।
जीसटी को अंबानी अडाणी टैक्स के बजाय गरीब मेहनतकश तथा छोटे काम धंधे वालों के पक्षधर करने का एक ही तरीका है – जीएसटी सहित सभी अप्रत्यक्ष करों को खत्म करना और कॉर्पोरेट टैक्स बढ़ाना, बढ़ती आय पर बढ़ती दर से टैक्स लगाना, वैल्थ/इनहेरिटेंस टैक्स लगाना। इन टैक्सों से होने वाली आय से सबके लिए अनिवार्य समान सार्वजनिक निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, यातायात, स्वच्छ आवासीय परिसर, खेलकूद, आदि की व्यवस्था करना। इसके बजाय जो भी बस जीएसटी में मात्र कुछ कॉस्मेटिक हेरफेर की बात करता है वह बातें कुछ भी बोलता हो, काम आखिर अंबानी अडाणी के लिए ही करने वाला है।
मजदूर वर्ग हमेशा ही अप्रत्यक्ष करों के खिलाफ रहा है। सितंबर 1864 में स्थापित मजदूरों के प्रथम इंटरनेशनल संगठन में चर्चा के दौरान मार्क्स ने बताया था कि वास्तव में कराधान के रूपों में कोई परिवर्तन श्रम व पूंजी के संबंधों में कोई अहम परिवर्तन नहीं ला सकता।
फिर भी, चुनना ही हो तो हम अप्रत्यक्ष करों की पूर्ण समाप्ति और उनकी जगह प्रत्यक्ष कर लगाने की मांग की सलाह देंगे। इसकी वजह है कि अप्रत्यक्ष कर जिंसों के दाम में इजाफा करते हैं तथा व्यापारी उनके दामों में सिर्फ अप्रत्यक्ष कर की रकम ही नहीं उनके अग्रिम भुगतान में लगी पूंजी का ब्याज और उस पर मुनाफा भी जोड़ते हैं।
साथ ही अप्रत्यक्ष कर व्यक्ति से यह छिपाते हैं कि वह राज्य को कितनी रकम चुका रहा है, जबकि बिना छिपे और सरल होने के कारण प्रत्यक्ष कर का असर हर कोई समझ सकता है। अतः प्रत्यक्ष कर प्रत्येक नागरिक को सरकार पर नियंत्रण के लिए प्रेरित करते हैं जबकि अप्रत्यक्ष कर स्वयं-शासन की प्रवृत्ति को नष्ट करते हैं।
इसी प्रकार रूस में मजदूर वर्ग क्रांति के नेता लेनिन ने भी बताया था कि ‘सभी समाजवादी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के विरोधी हैं, क्योंकि समाजवादी दृष्टिकोण से एक ही उचित कर है, वह है क्रमशः बढ़ता आयकर और संपत्ति कर।’
स्वाभाविक है कि पूंजीपति वर्ग इसके ठीक विपरीत आयकर और संपत्ति कर में हर तरह की छूट ही नहीं, कर चोरी की भी गुंजाइश देता है और जीएसटी, एक्साइज, कस्टम्स जैसे तमाम अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाता है। ये अप्रत्यक्ष कर मजदूर वर्ग की न्यूनतम से भी कम मजदूरी का भी एक हिस्सा उसकी जेब से कतर लेते हैं। पर हमारे देश में खुद को समाजवादी, साम्यवादी, मार्क्सवादी लेनिनवादी कहने वाली कई पार्टियां भी अप्रत्यक्ष करों की हिमायती हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी ही नहीं, उसके विरोधी दल भी एक ‘बेहतर जीएसटी’ की बात करते हैं जबकि अप्रत्यक्ष कर बुनियादी तौर पर ही मेहनतकश व जनविरोधी हैं, उनमें कुछ बेहतर होना मुमकिन ही नहीं। अतः मजदूर वर्ग के हित की बात जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों में ‘सुधार’ नहीं इन्हें समाप्त करना है।