संपादकीय | ‘सर्वहारा’ #58 (1 सितंबर 2024)
विकास दर में वृद्धि से रोजगार और आम जनता के विकास का बचा-खुचा रिश्ता भी अब खत्म हो गया है।
एशिया के सबसे तेज विकास दर वाले देश – खासकर चीन, बांग्लादेश और भारत – उच्च युवा बेरोजगारी दर से पीड़ित हैं। इन दिनों भारत सबसे उच्च दर से विकास करने वाला देश माना जाता है, लेकिन यहां 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग में युवा बेरोजगारी दर 16 प्रतिशत से भी अधिक है। जैसा कि ग्राफ में देखा जा सकता है कि तीनों देशों – चीन, बांग्लादेश और भारत – में युवा बेरोजगारी दर एकसमान बनी हुई है।
इसका क्या मतलब है? अगर भारत तेज गति से विकास कर रहा है, जैसा कि दावा किया जाता है और सरकार के आंकड़े भी यही बताते हैं, तो फिर इतनी अधिक युवा बेरोजगारी क्यों हैं? इसका क्या मतलब है? साथ में यह बात भयभीत करने वाला एक प्रश्न भी पैदा करती है। वह यह कि जिस दिन विकास दर नीचे जाएगा, उस दिन क्या होगा? यानी, तब युवा बेरोजगारी का क्या आलम होगा और इसका राजनीतिक परिणाम क्या होगा? इसकी परिणति एक राजनीतिक भूचाल, जैसा कि हाल ही में बांग्लादेश में आया, में भी हो सकती है। बांग्लादेश में हाल में उच्च बेरोजगारी दर के दंश से पीड़ित छात्रों व युवाओं ने शेख हसीना की पंद्रह सालों की जमी हुई तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंका, जबकि बांग्लादेश एक दशक से भी ज्यादा समय तक उच्च व आकर्षक विकास दर से (8 प्रतिशत से भी अधिक की दर से) विकास करने वाला देश बना रहा।
भारत की बात करें, तो इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 कहता है कि देश में हर तीन में से एक युवा बेरोजगार है। खास बात यह है कि पढ़े-लिखे और ग्रेजुएट डिग्रीधारियों में बेरोजगारी की दर 29.1 पहुंच चुकी है। चीन की बात करें, तो इसने हाल के वर्षों से युवा बेरोजगारी दर के आंकड़े प्रकाशित करना ही बंद कर दिया है। इंडोनेशिया में युवा बेरोजगारी दर लगभग 14 प्रतिशत और मलेशिया में 12 प्रतिशत है, जबकि ये दोनों देश कल तक एशिया के टाइगर इकोनॉमी कहे जाते थे। आज उनके यहां बेरोजगारी का ये हाल है। इतना तो साफ है कि विकास दर में वृद्धि के साथ जनता के विकास और रोजगार व जॉब्स में वृद्धि का जो रिश्ता था वह खत्म हो गया है। सबसे मजे की बात यह है कि ये हाल तब है जब माना जाता है कि ये देश आज के विश्व के ग्रोथ इंजिन हैं।
इसमें चीन ही एक ऐसा देश है जहां मैन्युफैक्चरिंग उद्योग का विशाल ढांचागत आधार है। उसका निर्यात आकार भी अन्य देशों की तुलना में काफी बड़ा और विशाल है। इसलिए जब चीन में युवा बेरोजगारी इतनी अधिक है और इसके परिणामस्वरूप विकास दर भी गिरता जा रहा है, तो भारत और भारत जैसे देशों में आगामी दिनों में क्या होने वाला है, इसका सहज अनुमान हम आसानी से लगा सकते हैं।
दूसरी तरफ, विकसित देशों में अर्थव्यवस्था के लिए हालात आज भी काफी कठिन बने हुए हैं। आर्थिक मंदी के घने काले बादल बराबर छाये हैं। लेकिन जहां तक युवा बेरोजगारी दर की बात है, तो धनी देश (खासकर जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, आदि) मंदी के हालात का सामना करते हुए भी इस मोर्चे पर हमसे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि इसका मुख्य कारण यह है कि उन देशों में युवाओं की संख्या भारत जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। फिर भी इटली और स्पेन में एक चौथाई युवा (प्रत्येक चार में से एक युवा) बेरोजगार हैं। कुल मिलाकर, इसका अर्थ यह है कि न तो भारत जैसे उच्च विकास दर वाली अर्थव्यवस्थाओं में और न ही मंदी के हालात का सामना कर रहे धनी देशों में ही युवाओं के लिए स्थाई जॉब्स हैं। लेकिन यह भी सही है कि कॉर्पोरेट कंपनियों और बड़ी पूंजियों को बेशुमार मुनाफा हो रहा है। इस मुनाफे की आमद एक तो वित्तीय क्षेत्र में निवेश से हो रही है। वहीं दूसरी तरफ दुनिया में जहां भी गैर-वित्तीय क्षेत्र में पूंजी निवेश हो रहा है और उससे अर्थव्यवस्था में जितना भी ग्रोथ हो रहा है, दरअसल वह सब का सब ऑटोमेशन के कारण लगभग जॉबलेस ग्रोथ की श्रेणी में आता है। भारत में ही नहीं, दुनिया में हर जगह सेवा क्षेत्र से लेकर हर क्षेत्र में संकुचन जारी है, जिसे हाल में तेजी से विकसित हुए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने और बढ़ा दिया है।
इसका कारण क्या है? इस विकट परिस्थिति का मुख्य कारण और इस समस्या का जनक पूंजीवादी उत्पादन संबंध है जिसके तहत होने वाले पूंजी संचय और बड़े पूंजीपतियों को हो रहे बेशुमार मुनाफे के बावजूद न तो लोगों को जॉब मिल रहा है और न ही गरीबी और कंगाली का प्रसार ही रूक रहा है। इससे मुक्ति का मात्र एक ही रास्ता है – पूंजीवाद का अंत और उत्पादन के साधनों का पूर्ण सामाजीकरण, इस तरह उत्पादक शक्तियों को सामाजिक स्वामित्व में लाकर लोगों की भौतिक व सांस्कृत्कि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उन्हें पूरी तरह पूंजी के चरित्र से उन्मुक्त कर देना। और यह कार्यभार एकमात्र मजदूर वर्ग के हाथों ही पूरी तरह से संपन्न हो सकता है।