दिल्ली में श्रम कानूनों के उल्लंघन और निरंकुश पूंजीवादी शोषण के खिलाफ इफ्टू-सर्वहारा का अभियान (पर्चा व डिमांड चार्टर)

न्यूनतम वेतन और सभी श्रम कानून लागू करो!
नए लेबर कोड और नए क्रिमिनल कानून रद्द करो!
पूंजी के राज और उजरती गुलामी के खात्मे की लड़ाई तेज करो!

मालिक-प्रशासन-सरकार के गठजोड़ और अन्याय के खिलाफ जुझारू मजदूर यूनियन खड़ा करें!

बिन हवा ना पत्ता हिलता है! बिन लड़े ना कुछ भी मिलता है!

साथियों, आज दिल्ली ही नहीं, पूरे देश-दुनिया में मजदूर वर्ग के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। एक तरफ महंगाई-बेरोजगारी आसमान छू रही है तो दूसरी तरफ हमारी वास्तविक मजदूरी गिरती जा रही है। आज बड़ी आबादी के लिए न पक्की नौकरी है, न न्यूनतम वेतन लागू है, और न ही यूनियन बना कर लड़ने का अधिकार है। लागू है तो सातों दिन 12-14 घंटे कमरतोड़ मेहनत वाली नौकरी, जिसके बाद भी 10-15 हजार से ज्यादा नहीं मिलते। मजदूर वर्ग ने संघर्ष और शहादतों के दम पर जो अधिकार जीते थे, वे सब आज छीने जा चुके हैं। यही नहीं, केंद्र की मोदी सरकार ने हमारे सभी 44 श्रम कानूनों को खत्म कर दिया है और उसके बदले 4 नए लेबर कोड कानून ले आई है जो पूरी तरह मजदूरों के खिलाफ और मालिकों के पक्ष में हैं। ऐसे तो हमें आज भी पुराने श्रम कानूनों की सुविधा नहीं मिल रही हैं लेकिन इन नए कानूनों के लागू होने के बाद हमारी हालत बद से बदतर हो जाएगी।

दिल्ली में 8 घंटे काम का न्यूनतम वेतन कितना है?
श्रमिकप्रति माहप्रति दिन
अकुशल₹ 17,494₹ 673
अर्ध कुशल₹ 19,279₹ 742
कुशल₹ 21,215₹ 816

दिल्ली के सभी औद्योगिक इलाकों में भी मजदूरों की यही हालत है। कानून में जितना न्यूनतम वेतन (ग्रेड) लिखा है वो किसी मजदूर को नहीं मिलता, PFESI तो दूर की बात है। वेतन कम है तो हफ्ते में सातों दिन 12-14 घंटे काम करना मजबूरी बन गई है। न ही दोस्त परिवार के लिए समय है, न ही चैन की सांस लेने की फुर्सत है। रहने के लिए भी या तो छोटी गंदी झुग्गियां हैं, नहीं तो माचिस के डब्बे जैसे कमरे जिनका किराया देने में आधी कमाई चली जाती है। थक हार के घर आना, खा कर सो जाना और फिर अगली सुबह काम पर जाना – अपना और परिवार का पेट भरने के लिए हमारा पूरा जीवन, जवानी से बुढ़ापे तक, इसी में खप जाता है। मानो हम जीते जागते इंसान नहीं, बल्कि मुर्दा मशीन हों!

आज बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ रही है। रोजगार की भी कोई गारंटी नहीं रह गई है। बिना किसी प्रक्रिया के अचानक काम से निकाल दिया जाता है क्योंकि और सस्ते दाम पर काम करने के लिए बाहर मज़दूरों की लाइन लगी है। मालिक हमारी इस मजबूरी का फायदा उठाते हैं और इसलिए बेरोज़गारों की सेना बनाए रखना चाहते हैं।जो काम कर रहे हैं, कई बार उनका भी पूरा वेतन मालिक नहीं देता। यहां तक कि मालिक लगभग किसी मजदूर को आई कार्ड, सैलरी स्लिप या कोई भी कागज़ नहीं देते हैं, ताकि मालिक द्वारा वेतन काटने या काम से निकालने पर हम प्रशासन के सामने यह साबित ही नहीं कर पाएं कि हम इस कंपनी के मजदूर रहे हैं। अगर कोई मज़दूर केस कर भी दे तो मुकदमा सालों साल चलता रहता है जिसे अंत तक लड़ने का समय और पैसा हमारे पास नहीं होता। कंपनी हो या थाना-कोर्ट-कचहरी, हर जगह मालिकों की मनमानी चलती है। लेबर विभाग और लेबर कोर्ट दोनों ही मालिक के पक्ष वाले संस्थान बना दिए गए हैं। औद्योगिक इलाकों में श्रम कानूनों का पालन हो रहा है या नहीं इसका सर्वेक्षण लेबर विभाग ने बंद कर दिया है। लेबर इंस्पेक्टरों के भी कई पद खाली पड़े हैं।

साथियों, हम मजदूर ही हैं जो समाज की हर चीज, सुई से हवाई जहाज तक, का निर्माण अपने हाथों से करते हैं। तो आखिर हमारे हालात ऐसे क्यों हैं? इसलिए क्योंकि हम रोज फैक्ट्रियों कंपनियों में कमरतोड़ मेहनत कर के करोड़ों की पूंजी बनाते तो हैं, लेकिन वो सारी पूंजी मालिकों की तिजोरियों में चली जाती है। बदले में हमें मिलता है बस उतना वेतन जितने से हम किसी तरह जिंदा रह सकें और अगले दिन दुबारा मालिक के लिए काम करने जा सकें। तभी दिन रात मेहनत करने पर भी हमारा जीवन गरीबी मजबूरी में बीतता है, और बिना कोई मेहनत किए मालिक मालामाल बनते जाता है। मालिकों का बस चले तो वे हमें बिना वेतन के मुफ्त में काम करवाएं! यह सरासर हमारे मेहनत की लूट है! चोरी है! और इसी लूट पर यह पूरी व्यवस्था टिकी है जिसे पूंजीवादी व्यवस्था कहते हैं, जहां पूंजी और उसके मालिकों यानी पूंजीपतियों का राज है।

सभी चुनावी पार्टियां इन पूंजीपतियों के पैसे से ही चलती हैं। इसलिए सरकार में आने पर ये पूंजीपतियों की ही सेवा करती हैं और उनका मुनाफा बढ़ाने के लिए ऐसी नीतियां बनाती हैं जिससे मजदूरों का शोषण और भी तेज हो जाए। सरकार से लेकर पुलिस, प्रशासन, न्यायालय, मीडिया सभी पूंजीपतियों के इशारे पर काम करते हैं। आज ज़रूरत है देश में मजदूर वर्ग की एक क्रांतिकारी पार्टी की।

साथियों, आज देश और दुनिया भर के पूंजीपतियों का मुनाफा गिर रहा है। पूंजीवादी व्यवस्था संकट में जा फंसी है। इस कारण से मालिकों ने मजदूर वर्ग का शोषण पहले से भी ज्यादा तेज कर दिया है। वे अपने देशों में ऐसी सरकारें चाहते हैं जो ऊपर से मजदूर-विरोधी नीतियों को लागू करें और नीचे से मजदूर वर्ग की एकता और आंदोलन को तोड़ डालें। भारत में 2014 में आई मोदी सरकार भी यही काम कर रही है। ऊपर से श्रम कानूनों को खत्म कर लेबर कोड ला दिया गया है, और नीचे से धर्म, जाति, क्षेत्र के नाम पर मेहनतकश जनता को बांटा जा रहा है। मजदूरों के बीच अंग्रेजों के समय वाली “फूट डालो और राज करो” की नीति का इस्तेमाल हो रहा है ताकि हम आपस में लड़ते रहे और हमारा शोषण करना आसान बन जाए। पहले की सरकारों ने भी यही किया लेकिन यह सरकार इसे सबसे तेज़ व नंगे रूप से कर रही है। मोदी सरकार नए क्रिमिनल कानून भी ला चुकी है जिनसे आंदोलन, हड़ताल, रैली करना लगभग गैर-कानूनी हो गया है और देश में कानून के राज के बदले पुलिस राज की शुरुआत हो गई है। शोषण करने की खुली छूट देने के लिए यह सरकार जनतंत्र संविधान को ही खत्म कर पूंजी की नंगी तानाशाही (यानी फासीवाद) लाना चाहती है। लेकिन इस बात को छुपा कर वह ‘हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करती है ताकि बड़ी आबादी का समर्थन मिल सके। हमें समझना होगा कि उनका यह ‘हिंदू राष्ट्र’ बस छलावा है। यह हिंदूओं के लिए नहीं बल्कि बड़े पूंजीपतियों के लिए होगा जहां मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों को पूंजीपतियों का बंधुआ गुलाम बना दिया जाएगा!

ऐसे में मजदूर वर्ग क्या करे? साथियों, मजदूर वर्ग ठान ले और अपने असली दोस्त व दुश्मन पहचान ले तो इन हालातों को तुरंत पलटा जा सकता है। हमारे शोषण, लूट और दुखों पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ कर समाजवादी व्यवस्था, मजदूरों का राज, स्थापित करना ही इसका परमानेंट इलाज है। ऐसा समाज जहां मेहनत का पूरा फल मेहनत करने वालों को मिलेगा, न कि मुट्ठीभर पूंजीपतियों को, जहां गरीबी बेरोज़गारी नहीं होगी, सबको पक्का रोजगार पक्का घर होगा, मुफ्त शिक्षा-इलाज होगा, कमरतोड़ मेहनत से मुक्ति मिलेगी, जहां कोई इंसान दूसरे का शोषण नहीं कर सकेगा

साथियों, यह परमानेंट इलाज मजदूर वर्ग की अपनी पार्टी के नेतृत्व और एक ताकतवर मजदूर आंदोलन के बिना संभव नहीं है। आज हमारे पास दोनों ही नहीं हैं। इसलिए अपने भविष्य के लिए मजदूरों को जाति-धर्म के झगड़े छोड़ कर, वर्ग संघर्ष तेज़ करना होगा। यानी बेहतर वेतन, जीवन-आजीविका, और तमाम अधिकारों के लिए मालिकों से संघर्ष तेज़ करना होगा, संगठित होना होगा, यूनियन बना कर लड़ना होगा, हड़तालें करनी होंगी।

आज यह ऐलान करना ज़रूरी है कि मजदूर वर्ग आज भले ही अंधकार में हो लेकिन वही पूरी सभ्यता का निर्माता है, जिसके ठान लेने से मालिकों के सारे कारखानों कंपनियों का चक्का जाम हो सकता हो, पूरी दुनिया ठहर जा सकती है। अगर हम पूरी दुनिया को चला सकते हैं, तो एकजुट होकर एक नई सुंदर दुनिया भी बना सकते हैं।

आइए, पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की अंतिम लड़ाई की शुरुआत, अपने जीवन की इन ज़रूरी तात्कालिक मांगों के लिए व्यापक लड़ाई खड़ी कर के करें।


दिल्ली के फैक्ट्री श्रमिकों का डिमांड चार्टर

सभी फैक्ट्रियों और प्रतिष्ठानों में :-

  1. सरकारी न्यूनतम वेतन दर सख्ती से लागू करो। वेतन के साथ पी.एफ., ई.एस.आई. व अन्य सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं भी लागू करो। न्यूनतम वेतन बढ़ा कर ₹26,000 प्रति माह (1000 प्रतिदिन) करो
  2. कार्यरत श्रमिकों को सभी कानूनी व जरूरी दस्तावेज, मुख्यतः i) लेटर ऑफ अपॉइंटमेंट, ii) आईडी कार्ड, iii) सैलरी स्लिप, मुहैया कराओ।
  3. 8 घंटा कार्य दिवस कानून लागू हो। 8 घंटा से अधिक तथा अवकाश के दिन भी काम करने पर दोगुना ओवरटाइम वेतन दर लागू हो।
  4. स्थाई काम पर स्थाई रोजगार के सिद्धांत के अनुसार सभी श्रमिकों की नौकरी पक्की और नियमित करो। ठेकेदारी प्रथा बंद करो।
  5. हफ्ते में एक दिन (सामान्यतः रविवार) को सवेतन अवकाश (paid leave) का नियम लागू हो। इसके अतिरिक्त साल में 12 दिन सवेतन अवकाश तथा 12 दिन सवेतन मेडिकल अवकाश (sick leave) का प्रावधान भी लागू हो।
  6. सभी श्रम कानून (वेतन, सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, यूनियन आदि संबंधित) सख्ती से लागू हों। नए मजदूर-विरोधी लेबर कोड के प्रावधानों को अनौपचारिक रूप से लागू करने की प्रथा पर तुरंत रोक लगे।
  7. समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत के अनुसार महिला और पुरुष श्रमिकों को बराबर वेतन दो। कार्यस्थल और औद्योगिक क्षेत्र में महिला श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करो। महिला श्रमिकों के लिए क्रेच और मातृत्व अवकाश (मेटरनिटी बेनिफिट) की सुविधा भी सुनिश्चित करो।
  8. सभी श्रमिकों का बकाया वेतन फैक्ट्री प्रबंधन अविलंब बहाल करे। श्रमिकों को पहचान पत्र उपलब्ध नहीं कराने वाले फैक्ट्रियों में बकाया वेतन का मामला साबित करने का भार प्रबंधन पर हो, ना कि श्रमिक पर।
  9. श्रमिकों की सुरक्षा के सभी इंतजाम करो। औद्योगिक दुर्घटनाओं में तत्काल प्रशासनिक कार्रवाई व तहकीकात की जाए। दोषी प्रबंधन पर उचित त्वरित कार्रवाई की जाए। दुर्घटना में घायल श्रमिकों के पर्याप्त इलाज और मुआवजा की जिम्मेदारी प्रबंधन की हो। दुर्घटना के कारण मृत तथा अपंग हुए श्रमिकों के परिवार को उचित मुआवजा तथा एक सदस्य को रोजगार प्रबंधन की ओर से मिले।
  10. प्रबंधन व मालिक द्वारा श्रमिकों के साथ मारपीट व अभद्र व्यवहार पर तत्काल रोक लगे तथा ऐसा करने वाले प्रबंधन पर कानूनी कार्रवाई हो। श्रमिकों की न्यायसंगत मांगों पर औद्योगिक क्षेत्र तथा प्रशासन/अधिकारियों के समक्ष प्रदर्शन करने के संवैधानिक अधिकार पर किसी भी प्रकार के हनन को रोका जाए।
  11. उपरोक्त प्रावधानों के सख्त कार्यान्वयन हेतु सरकारी श्रम विभाग को और सक्रिय व ज़िम्मेवार बनाया जाए। सभी औद्योगिक क्षेत्रों में नियमित रूप से आम निरीक्षण किए जाएं। फैक्ट्रियों में बिना नोटिस सुओ-मोटो निरीक्षण नियमित रूप से किया जाए। निरीक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। श्रम कानून का उल्लंघन करने वाले प्रबंधन पर तत्काल सख्त और उदाहरणात्मक कार्रवाई की जाए।
  12. सभी अपंजीकृत व गैर कानूनी फैक्ट्रियों को नियमित करो। इस प्रक्रिया में किसी भी श्रमिक का रोजगार प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित हो।
  13. आंगनवाड़ी कर्मियों, सहायकों, रसोइयों, ASHA कर्मियों को भी “श्रमिक” मानते हुए वेतन, सामाजिक सुरक्षा आदि श्रम कानूनों की सुरक्षा दो।

झुग्गीबस्ती संबंधित मांगें

  1. “जहां झुग्गी वहीं मकान” के तमाम चुनावी वादों और मानवीय नीति के अनुसार झुग्गियों की जगह पर ही सभी निवासियों को पक्का मकान मुहैया कराओ।
  2. तत्काल सभी झुग्गियों को नियमित करो और अतिक्रमण, सफाई, सौंदर्यीकरण आदि के नाम पर झुग्गियों को उजाड़ना बंद करो।
  3. बस्ती में आबादी अनुसार पर्याप्त संख्या में नए स्वच्छ शौचालयों और स्नानघरों का निर्माण करो। उपस्थित शौचालयों की प्रतिदिन सफाई हो तथा उनमें साबुन, सैनिटाइजर, सैनिटरी पैड जैसी सुविधाएं उपलब्ध हों।
  4. झुग्गी बस्ती में जलनिकास (ड्रेनेज) व सीवर प्रणाली को ठीक करो, ताकि गंदे पानी का जमाव व बारिश में जलजमाव और इससे होने वाली बीमारियों को रोका जा सके।
  5. बस्ती में निःशुल्क स्वच्छ पेय जल की सुविधा उपलब्ध कराओ।
  6. बस्ती में सभी सुविधा संपन्न सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण करो।
  7. बस्ती में आंगनवाड़ी केंद्रों को बेहतर करो तथा उनमें सारी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराओ।

इफ्टू (सर्वहारा), दिल्ली

9582265711, 9013732240                    iftu@sarwahara.com

इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (सर्वहारा) की दिल्ली कमेटी की ओर से रामदयाल द्वारा इफ्टू(स) कार्यालय, एफ-ब्लॉक, फेज़-2, मायापुरी, दिल्ली-64 से जारी। (17.08.2024)


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