मजदूर यूनियन [कविता]

✒️ यश राज | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

हम सुबह गहरी नींद में सोए
मां ने आवाज लगायी
आंखे मलते नींद से जब उठे
मां बोली काम पर नहीं जाना है।

हां! बोलकर सुबह चौक पर पहुंचा
देखो ये भीड़ मजदूरों का मेला
काम की तलाश में गांव से शहर को आया
खून पसीना ये बेचने को आया।

काम की हताशा बहुत निराशा
काम न मिलने पर घर को जाता
फिर सुबह ये चौक पर उम्मीद से आता
लेकिन जब चौक पे मालिक आया
मजदूरों की बेरोजगारी ने मालिक को घेर लिया
उस भीड़ से एक को काम पर लाया।

उनसे बहुत ही काम कराया
काम कर रहे जब शाम हो आया
तब पैसे देने का बारी आया
उसने मजदूर को बहुत सताया।

उसने पैसा नहीं दिया जब
मजदूर ने सोचा क्या करे अब
जब वो हताश घर पर आया
मां को समझ आई उसकी निराशा।

वो सुबह फिर चौक पर पहुंचा
सुबह वहां एक भाषण देने आया
भाषण सुन वो मजदूर करीब को आया
उसे भाषण में संघर्ष का बात समझ में आया।

उसने दूसरे मजदूर से पूछा कौन है ये लोग
बोला की ये हैं मजदूरों का यूनियन
ये मजदूरों का यूनियन है ऐसा
जो पैसा बकाए वो दिलाए
घटना होने पर ये उचित मुआवजा दिलाए।

सबको बतलाते हैं नई राह दिखलाते हैं
जिन अंधेरों से हम डरते
क्या कारण हैं मजदूरों की समस्या का
उसे भाषण में कह के सुनाते।

ये यूनियन ऐसा है जो मजदूरों को
हक हकूक के लिए लड़ना सिखाए
ये यूनियन बतलाता है कि
पूंजीवाद का भरा हैं घड़ा
इसको अब फोड़ने का वक्त आया।

दुनिया के मजदूरों को जगायेगें
शोषणहीन समाज मजदूर मिलकर बनायेगें
वो नई सुबह को जरूर लायेगें
वो नई सुबह को जरूर लायेगें!

(यश राज गिग सेक्टर में काम करने वाले युवा मजदूर हैं।)


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