अम्मा तुम कब लौटोगी? [कविता]

✒️ मयन राणा | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

फिलिस्तीन में हो रहे इसराइल द्वारा नरसंहार ने मानवता को रौंद दिया है। हजारों की संख्या में निर्दोषों को मारा जा रहा है, बच्चों को मारा जा रहा है। इन साम्राज्यवादी जनसंहारक युद्धों से कभी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। आज हमें जरूरत है उन तमाम बे-कसूर लोगों के साथ खड़े होने की जिन्हे युद्ध ने प्रभावित किया है।

इस युद्ध के ऐलानों के बीच,
शमशान बने शहरों के बीच,
चारों ओर मची हाहाकारों के बीच,
एक बच्चे ने खुद से हार कर
कहना चाहा अपनी अम्मा से कई बातें।

अम्मा,
तुमने कहा था हिम्मत से रहने
मैं लौट आऊंगी जल्दी,
फिर तुम्हारे अस्पताल से
ये धुएं का गुबार क्यों निकल रहा है,
और वो बड़े धमाके की आवाज भी
वहीं से आई थी न?

अम्मा,
पिछले दिनों भैया और अब्बू
रोटियां लाने गए थे
मुझे छोड़ अकेला,
वे अब तक नहीं लौटे हैं
वे तुमसे मिलने गए है न?

अम्मा,
हमारे पड़ोस का वो
छोटा बाबू जो दिन भर रोता रहता था,
अब वो रोता नही हैं
वो बहुत समझदार हो गया है न?

अम्मा,
मै अकेला हूं यहां,
कमरे में बत्तियां भी खत्म हो चुकी है,
और अंधेरे में मुझे डर लगता है,
तुम जल्दी लौट आओ न।

अम्मा,
हम सब तो घर में रहते थे न,
अब्बू तो तस्वीर बनाते थे,
और मैं तो सबसे प्यार करता हूं,
फिर वे हमारे घरों को
क्यों जला रहे हैं?
हमे क्यों मार रहे हैं?

अम्मा तुम कब लौटोगी?
मैं सहम जाता हूं
उन धमाकों को सुनकर,
तुम उनसे पहले
मेरे पास लौट आओगी न अम्मा?


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