✒️ कौशिक बरनवाल | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विगत 24 जून को सरकारी जमीन दखल, भ्रष्टाचार, अतिक्रमण आदि कई मुद्दों पर विभिन्न नगर निगम अध्यक्षों, मंत्रियों, और पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की। अगले दिन से कोलकाता समेत राज्य के विभिन्न शहरों में रेहड़ी-पटरी वालों व फुटपाथ पर छोटे दुकान लगाने वालों को हटाया जाने लगा। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद नगर निगम तथा पुलिस ने कलकत्ता के कई इलाकों में बुलडोजर से ठेलेवालों और झुग्गियों को हटवा दिया। विधाननगर टाउन में भी लगभग 20 दुकानों को तोड़ दिया गया। यही कार्रवाई शिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी, बीरभूम, नदिया, दुर्गापुर, आदि कई जगहों पर हुई।
बिना कोई वैकल्पिक स्थान उपलब्ध कराए तमाम रेहड़ी पटरी वालों, अति छोटे-छोटे व्यवसायियों व फेरीवालों को आजीविका के अधिकार से वंचित करना अमानवीय और असंवैधानिक है। ज्ञात हो कि कलकत्ता के पोर्ट ट्रस्ट की जमीन पर लंबे समय से रह रहे लोगों को बेदखल करने में जनता के संघर्ष के कारण पुलिस को बाधाओं का सामना करना पड़ा था। उस वक्त मांग की गई थी कि किसी भी फेरीवाले या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले को पुनर्वास के बिना बेदखल नहीं किया जाए।
सेंट्रल हॉकर एक्ट, 2014 के मुताबिक किसी हॉकर को बेदखल करना गैरकानूनी है। इस अधिनियम के तहत टाउन वेंडिंग कमेटी को फेरीवालों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है। टाउन वेंडिंग कमेटी में कम से कम 40 प्रतिशत हॉकर प्रतिनिधियों का होना अनिवार्य है। लेकिन इस राज्य की सभी नगर पालिकाओं में यह टाउन वेंडिंग कमेटी का गठन नहीं किया गया है। जहां इसका गठन हुआ है, वहां या तो कानून का पालन नहीं किया गया है, या फिर गुटबाजी देखी गयी है। उपरोक्त कानून को नजरअंदाज कर प्रशासन बेदखली अभियान में जुट गयी है। इस घटना को केंद्र में रखकर सांप्रदायिक राजनीति का रंग भी चढ़ाया जा रहा है। ममता बनर्जी बाहरी लोगों द्वारा गैरकानूनी अतिक्रमण और शहरी सौंदर्य नष्ट करने की बात बोल कर प्रांतीय व भाषाई विभेद फैला कर बंगाली अस्मिता को हवा दे रही हैं, तो बीजेपी इसमें धार्मिक व सांप्रदायिक रंग लगाने में लगी है। कोई अन्य चुनावी पार्टी भी खुलकर इस जनविरोधी कार्रवाई के खिलाफ नहीं बोल रही है क्योंकि इस मामले में सभी पूंजीवादी दल एक ही राह के राही हैं। हमने हॉकरों को उजाड़ने की ऐसी ही कार्रवाई वामफ्रंट के शासन काल में भी देखी है।
‘विकास’ की आंधी में कलकत्ता के कई प्राकृतिक जलाशयों व पेड़ों को नष्ट करके वहां बड़े-बड़े अपार्टमेंट, रेस्तरां और होटल बना दिए गए हैं जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा है। फुटपाथों पर कब्जा कर जगह-जगह तृणमूल पार्टी कार्यालय निर्मित कर दिए गए हैं। जाहिर है इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि ये सब सत्ताधारी दल, नगर निगम और पुलिस के सीधे समर्थन से किया गया है। सरकार द्वारा केवल गरीबों की झुग्गी-झोपड़ियों और छोटे हॉकरों व ठेलेवालों को ‘अवैध उगाही’ का निशाना बनाया जाता है।
इस दमनात्मक कार्रवाई के पीछे असल में विकास के नाम पर बड़े पूंजीपतियों के स्वार्थ को पूरा करने की मंशा है। इसी तरह स्मार्ट सिटी व विकास के नाम पर पूरे देश में मोदी सरकार द्वारा मेहनतकशों, दलितों, आदिवासियों तथा आम गरीब जनता को एक तरफ उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है और दूसरी तरफ उनके जीविका के साधनों को नष्ट किया जा रहा है।
पिछले कई दशकों से पूरा देश बेरोजगारी और मंहगाई से त्रस्त है। पश्चिम बंगाल में बेरोजगार युवाओं तथा मेहनतकशों की एक बड़ी आबादी फुटपाथ पर कुछ स्थायी तो कुछ अस्थायी छोटे-छोटे दुकानों के सहारे जीवन निर्वाह कर रही है। नोटबंदी और लॉकडाउन के बाद दूसरे राज्यों में कार्यरत मजदूर नौकरी खो कर स्थानीय बाजारों या चौक चौराहों पर रेहड़ी-पटरी लगाकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। इन्हें आज पुलिसिया दमन, सरकारी हमले तथा आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें उजाड़ने की प्रक्रिया आज बड़े शहरों से शुरू हुई है परन्तु आगे चल कर यह छोटे शहरों और कस्बों में भी शुरू होगी। ममता बनर्जी के फरमान में जमीन और सड़क अतिक्रमण तथा यातायात में रुकावट खत्म करने के आदेश से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में टोटो चालक (ई रिक्शा) और ऑटो रिक्शा चालकों पर भी इसकी गाज गिरेगी।
मसला साफ है कि चाहे केंद्र की फासिस्ट मोदी सरकार हो या बंगाल की जनवाद-विरोधी दमनकारी ममता सरकार, सभी पूंजीवादी पार्टियों में एक चीज समान है कि वे सब बड़े एकाधिकारी पूंजीपतियों के मैनेजेरियल एजेंट हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इलेक्टोरल बांड में पूंजीपतियों से, बीजेपी के बाद, दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा चंदा टीएमसी को ही मिला था। अतः अपने जीवन-जीविका को बचाने की लड़ाई का रास्ता इन राजनीतिक पार्टियों के साथ नहीं, बल्कि इनके खिलाफ जनता के संघर्ष के बदौलत ही संभव है। आज मजदूरों, मेहनतकशों व तमाम उत्पीड़ित तबकों को एकजुट हो कर पूंजी की तानाशाही के खिलाफ अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। हर तरह के सरकारी दमन के खिलाफ अपनी एकजुटता कायम करते हुए अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरना ही अब एक मात्र रास्ता है।