✒️ उमेश कुमार निराला | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

पिछले दिनों पटना में पड़ी भीषण गर्मी में निर्माण मजदूरों के लिए एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई वाली स्थिति हो गयी थी। एक मजदूर से इस विषय में पूछने पर वे बताते हैं कि “हम आज काम पर चक्कर खा कर गिर जाते। कुछ देर छांव में बैठे तो ठेकेदार चिल्लाने लगा। तब हमने गमछे को भिगो कर सर के ऊपर रख-रख कर किसी तरह काम पूरा किया। दूसरे दिन सर में तेज दर्द हुआ, उसी कारण आज छुट्टी किये। उठने से चक्कर आता है। अब जितना दिन तबियत के कारण बैठेंगे, उसका मजदूरी का क्या होगा? ठेकेदार का तो काम हो गया, लेकिन हमारा क्या?”
दूसरे मजदूर ने बताया कि गर्मी का बहाना बना कर मालिक ने मजदूरों से ज्यादा काम करवाने का नया तरीका निकाल लिया है। वे कहते हैं, “मालिक सुबह 6 बजे से लगभग 11 बजे तक काम करवाता है, फिर शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक बिना रुके काम करवाता है। पहले हमलोग 8 घंटे काम करते थे, जिसमें खाने का ब्रेक भी शामिल था और अब ब्रेक के अलावा 10 घंटे काम करना पड़ता है। लेकिन हम करें भी तो क्या? काम नहीं करेंगे तो घर का चूल्हा कैसे जलेगा, बाकी चीजों का खर्चा कैसे चलेगा? इसी मजबूरी में काम करना पड़ता है, जिसका पूरा फायदा मालिक-ठेकेदार को मिलता है।” एक और मजदूर अपनी स्थिति बताते हुए कहते हैं, “काम करते हुए थोड़ी देर बैठ क्या गए, ठेकेदार हमसे गाली-गलौज करने लगा और कामचोर कहने लगा! कुछ जवाब देने पर काम से निकाल देने की धमकी देने लगा।”
आखिर इसका कारण क्या है? इसके पीछे का एक बड़ा कारण है बेरोजगारी। मालिक जानता है कि मजदूरों को काम की दिक्कत है, काम नहीं मिलेगा तो उनका घर नहीं चलेगा। इसलिए मजदूर किसी भी परिस्थिति में काम करने के लिए तैयार हो जाता है। अगर वो नहीं तैयार होगा तो कोई और बेरोजगार मजदूर उससे कम पैसे में काम करने के लिए तैयार हो जाएगा। इस बेरोजगारी के लिए यह पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। खासकर आज की मोदी सरकार के दौर में बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गयी है। दूसरी तरफ महंगाई, भुखमरी और कंगाली बढ़ा कर मजदूरों को और ज्यादा बेबस बना दिया गया है। कंपनियों, प्राइवेट दुकानों एवं गोदामों से लोगों की छंटनी की जा रही है। मुनाफे के लिए मालिक कम लोगों से ज्यादा काम लेता है। कृषि क्षेत्र में भी स्थिति खराब होने की वजह से कई छोटे किसान और खेत मजदूर खेती का काम छोड़ कर शहरों में मजदूरी करने के लिए विवश हैं। इससे बेरोजगारों की फौज बढ़ती है और मालिक को सस्ते मजदूर मिल जाते हैं। सरकार भी अपनी नीतियों से यही करना चाह रही है। लेकिन जब पानी सर के ऊपर चला जाएगा तो मजदूर हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहेंगे। तब उन्हें संगठित हो कर आर-पार की लड़ाई के लिए मैदान में उतरना पड़ेगा और अपने जीवन-जीविका की लड़ाई लड़नी होगी। यही मेहनतकश आवाम की मुक्ति का द्वार खोलेगा। इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।