✒️ आकांक्षा | ‘सर्वहारा’ #54 (1 जुलाई 2024)

पिछले 10 दिनों में बिहार में 6 पुल ध्वस्त हो चुके हैं। इसके पीछे संयोग नहीं, बल्कि एक निक्कमी और भ्रष्ट सरकार है। 18 जून से 30 जून के बीच बिहार के अररिया, सिवान, पूर्वी चंपारण (मोतिहारी), मधुबनी और किशनगंज जिलों में पुल गिर चुके हैं। इनमें से नए बने और निर्माणाधीन पुल तो पहली बारिश में ही गिर गए। कल्पना की जा सकती है कि इनके निर्माण में इस्तेमाल किये गए मटेरियल की गुणवत्ता कितनी खराब रही होगी! अररिया में गिरा पुल अभी-अभी बन कर तैयार हुआ था जिसमें 12 करोड़ रुपये लगे थे। मोतिहारी में गिरा पुल 1.5 करोड़ व मधुपुर का निर्माणाधीन पुल 3 करोड़ की लागत से तैयार हो रहा था। किशनगंज के ठाकुरगंज में 16 साल पहले बना पुल पानी के तेज बहाव में 1 फूट धंस गया और इस में दरार आ गयी जिसके बाद इसे जनता के लिए बंद कर दिया गया है। यह पुल कई पंचायतों को आपस में जोड़ता है और अगर यह पूरी तरह गिर जाता है तो इससे 60 हजार लोग प्रभावित होंगे!
इन सभी पुल को बनाने में जो करोड़ों रुपये लगे थे वो जनता के खून पसीने की कमाई थी। टैक्स के पैसे से सरकार ने ये पुल बनाया था। ये टैक्स की राशि प्रत्यक्ष से ज्यादा अप्रत्यक्ष करों से आती है, यानी अमीरों की कमाई से नहीं बल्कि आम लोग जो उपभोग की चीजें खरीदते हैं उससे। सरकार “विकास” के नाम पर कोष से कई क्षेत्रों में राशि आवंटित करती है। इसमें से एक बड़ी राशि सड़क और पुल निर्माण में खर्च होती है। जैसे 2022-23 में इस क्षेत्र में कुल 11,186 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे। ये हजारों करोड़ रुपये जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे हैं जो भ्रष्टाचार के कारण जनता के फायदे में नहीं, बल्कि सीधे ठेकेदारों और सप्लायर के जेब में जाते हैं। नेताओं और अफसरों द्वारा किये गए घोटाले के तहत सरकार से पुल बनाने का ठेका लिया जाता है। करार में बेहतर गुणवत्ता वाली सामग्री की बात होती है और उसी के हिसाब से दाम तय होता है, लेकिन असलियत में ठेकेदारों, सप्लायर और अफसरों की मिलीभगत से थर्ड-ग्रेड का सीमेंट, ईंट, छड़, आदि इस्तेमाल करके तय राशि से काफी कम खर्च में ही पुल बन कर तैयार हो जाता है। और बची हुई राशि सीधा उनके जेब में जाती है। पुल गिरने की दूसरी वजह है चुनाव में जनता को बरगलाने के लिए किसी तरह हड़बड़ी में पुल का निर्माण करना जिसमें कई जरूरी नियमों का उल्लंघन कर दिया जाता है और पुल कमजोर और खतरनाक हो जाता है।
ये है बिहार की डबल इंजन की सरकार की असलियत जो जनता के लिए नहीं बल्कि बड़े बिल्डरों और सप्लायर को फायदा पहुंचाने के लिए “विकास” का नाटक करती है। हमें इनका असली चरित्र पहचानना होगा और इनसे अपनी भलाई की उम्मीद छोड़ कर, अपनी मांगों के लिए खुद जमीन पर उतरना होगा और इनके खिलाफ संघर्ष करना होगा।