चुनाव में जनविरोधी सरकार व पार्टियों से हिसाब चुकता करें! मजदूर वर्ग के नेतृत्व में शोषितों, वंचितों व उत्पीड़ितों के समाजवादी राज्य के लिए संगठित हों!: पीआरसी, सीपीआई (एम-एल)

चुनाव में जनविरोधी सरकार व पार्टियों से हिसाब चुकता करें!

मजदूर वर्ग के नेतृत्व में शोषितों, वंचितों व उत्पीड़ितों के समाजवादी राज्य के लिए संगठित हों!

भाइयो और बहनो! बिहार में एक बार फिर चुनाव आया है। सवाल है, किसे वोट दें और क्यों दें? ‘वोट’ हमारा एक महत्वपूर्ण अधिकार ही नहीं, जनविरोधी व दमनकारी सरकारों को सबक सिखाने का हथियार भी है। इसका इस्तेमाल इस चुनाव में जरूर करना चाहिए। लेकिन, हमें इस पर भी विचार करना होगा कि अब तक सरकार बनाने या बदलने से आम जनता का कुछ भला नहीं हुआ, तो क्‍या इस बार होगा? नई सरकार क्‍या पूंजीपतियों की मददगार नहीं होगी? हमें यह सोचना है कि मेहनतकशों के वोट से सरकार बनने के बाद भी पूंजीपति मालामाल और हम कंगाल क्यों होते जा रहे हैं। हमें इसका उत्‍तर चाहिए कि अपनी मेहनत से हम सब कुछ बनाते हैं, और वोट देकर सरकार भी हम ही चुनते हैं, फिर भी हमारी जिंदगी इतनी तबाह और बदरंग क्यों है?

I

हमारी मेहनत की कमाई पूंजीपति हड़प लेते हैं। सरकार भी उन्‍हीं का साथ देती है। पिछले 70 सालों से यही कहानी दुहरायी जा रही है। हमारे खून-पसीने से पैदा पूंजी चंद हाथों में सिमटती जा रही है। सर्वहाराओं (अपनी श्रमशक्ति बेचकर जीविका चलाने वालों) की संख्‍या इसलिए भी तेजी से बढ़ती जा रही है, क्‍योंकि छोटी पूंजी वाले उजड़कर मजदूर बन रहे हैं। पूंजीवादी विकास का यह नियम ही है कि समाज के एक छोटे से छोर पर धन का संग्रह और बाकी विशाल छोर पर कंगाली का साम्राज्‍य होगा। सबों के लिए विकास की बात पूंजीवाद में एक छलावा है। सब के लिए विकास तब तक नहीं होगा, जब तक कि सामाजिक उत्‍पादन पर सामाजि‍क मालि‍काना नहीं कायम होता है। निजी मुनाफा और निजी पूंजी का लक्ष्‍य त्‍यागना होगा।

चुनाव में जनता वोट देते-देते थक चुकी है। एक ‘मदारी’ की पोल खुल जाती है, तो कोई नया ‘मदारी’ आता है। हर बार हम इस उम्‍मीद में बढ़-चढ़ कर उसके खेल में शामिल हो जाते (वोट देते) हैं कि शायद इस बार हमारे जीवन में कुछ बदलाव आयेगा। याद कीजिए, नरेंद्र मोदी ने 2014 और फिर 2019 में कितने लुभावने वायदे किये थे! लगता था कि इस बार गरीबों का सारा दुख सच में दूर हो जाएगा। लेकिन जो हुआ या हो रहा है वह हम सबके सामने है। जहां अंबानी-अदानी जैसे बड़े पूंजीपतियों की संपत्ति दोगुनी-तिगुनी गति से बढ़ी, वहीं जनता की स्थिति पहले से भी खराब हो गई। रोजगार ही नहीं, अधिकार भी छि‍न गये। कल वोट का अधिकार भी छि‍न जाए तो कोई आश्‍चर्य नहीं। बड़े पूंजीपतियों के मुनाफा का पहिया आर्थिक संकट के दलदल में बुरी तरह फंसा हुआ और रूकने वाला है, इसीलिए पूंजीपति वर्ग मजदूर वर्ग पर टूट पड़ा है। आखिर मजदूरों के श्रम की लूट से ही तो पूंजी का भंडार बनता है। यही नहीं, बीच के सभी वर्गों (जैसे निम्‍नपूंजीपति वर्ग, छोटे-मंझोले किसान वर्ग, शहरी मध्‍य और निम्‍न मध्‍य वर्ग और छोटे-मंझोले कारोबारी वर्ग आदि) का अस्तित्‍व भी संकट में है। मोदी सरकार के नये कृषि सुधार बिल से कृषि क्षेत्र पर भी कॉरपोरेट का संपूर्ण वर्चस्‍व कायम हो जाएगा।

II

पिछले 70 सालों के अनुभव के आधार पर हमारा साफ मत है कि पूंजीवादी उत्‍पादन व्यवस्था को जड़मूल से खत्म किये बिना आम जनता और खासकर मजदूर-मेहनतकश वर्ग की मुक्ति असंभव है। उसकी जिंदगी में सुधार का और कोई दूसरा विकल्प या रास्‍ता नहीं है। बिहार चुनाव हो या केंद्र का चुनाव हो, सभी पार्टियों की सरकार को जनता देख और भुगत चुकी है। आज की विपक्षी पार्टियां कल सत्ता में थीं और आज की सत्ताधारी पार्टी विपक्ष में। इन सभी के शासन में कोई विशेष अंतर कभी नहीं रहा है। एक-दूसरे का विरोध करने वाली ये सभी पार्टियां पूंजीपतियों की सेवा करने वाली पार्टियां ही हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो अब तक सिर्फ पूंजीपति वर्ग का विकास क्यों हुआ? दलितों और पिछड़ों के वोट बैंक पर राज करने वाली तमाम पार्टियां भी इसकी अपवाद नहीं हैं। कोई जीते-हारे, ज्‍यादा कुछ का फर्क नहीं पड़ने वाला है।

 बिहार में पिछले पंद्रह सालों से नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में भाजपानीत गठबंधन की ‘डबल इंजन’ वाली सरकार है। यह सरकार ‘डबल’ जनविरोधी भी है। हत्‍या, बलात्‍कार, पुलिस दमन, भ्रष्‍टाचार आम बात है। बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी बढ़ती ही गई है। शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, महिला सुरक्षा, भ्रष्टाचार नियंत्रण तथा कोरोना महामारी से बचाव तथा निपटने में नीतीश सरकार पूरी तरह फिसड्डी साबित हुई है। राशन कार्ड तक सबको नहीं दे सकी। कोरोना महामारी में गंभीर रूप से बीमार लोगों की दुगर्ति की कोई सीमा नहीं है। सरकारी अस्‍पतालों की नारकीय स्थिति और निजी अस्‍पतालों में इलाज के नाम लूटपाट को देखते हुए मध्‍य वर्ग के लोग भी काफी डरे हुए हैं।

              इसके अलावे जिस भी राज्य में भाजपा की एकछत्र सरकार है, वहां की स्थिति और ज्‍यादा खराब है। उत्‍तरप्रदेश में हालत यह हो गई है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल अभ्‍यर्थियों को पांच सालों तक संविदा पर काम करना होगा और हर छ: महीने में हुए मूल्‍यांकन के आधार पर नौकरी पक्‍की होगी या नहीं होगी। वहीं, असंतोष को दबाने हेतु सरकार बिना कोर्ट वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने वाला स्‍पेशल पुलिस बल बना रही है।

III

पूंजीवाद में आर्थिक संकट से बचा नहीं जा सकता है। यह पूंजीवादी उत्‍पादन पद्धति का अवश्‍यंभावी परिणाम है। जब यह संकट गहराता है, तो पूंजीपति वर्ग के मुनाफा और पूंजी संचय पर बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। और अगर संकट ढांचागत और स्‍थाई हो, जैसा कि वर्तमान संकट है, तो पूंजीपति वर्ग की लूट असाधारण रूप से तेज और भयानक हो जाती है। आज केंद्र में मोदी सरकार या विभिन्‍न राज्‍य सरकारों द्वारा जो घोर जनविरोधी तथा मजदूर विरोधी नीतियां लागू की जा रही हैं वे इसी स्‍थाई आर्थिक संकट की उपज हैं। ऐसी स्थिति में पूंजीपति वर्ग में जो सबसे बड़े पूंजीपति हैं, यानी, बड़े पूंजीपति व कॉरपोरेट हावी हो जाते हैं और छोटे पूंजीपतियों को निगलने लगते हैं। कॉरपोरेट ने इसीलिए तो 2014 में मोदी को ‘देश का उद्धारक’ बताकर केंद्र की सत्‍ता में बैठाया था। मोदी सरकार की सहायता से मुट्ठी भर कॉरपोरेट पूंजीपति आकाश से लेकर पाताल तक सभी चीजों पर कब्‍जा कर रहे हैं और मेहनतकश आबादी का कतरा-कतरा चूसने में लगे हैं। देश की समस्‍त संपदा को वे अपने एकाधिकार में लेते जा रहे हैं। खेत, खनि‍ज, पानी, जंगल, पहाड़, खदान, एयरपोर्ट, हवाई सेवा, टेलिफोन सेवा, हथियार उद्योग, रेलवे, बैंक, बीमा, स्‍टील उद्योग, पेट्रौल व डीजल कंपनियां, खाद्यान, शिक्षण व शोध संस्‍थान, स्‍कूल, कॉलेज, विश्‍वविद्यालय, अस्‍पताल व पूरा स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र .. अर्थात देश में आज जो कुछ भी पब्लिक, प्राकृतिक या निजी बहुमूल्‍य संपत्ति है उस पर वे कब्‍जा कर रहे हैं और सरकार विरोध की हर आवाज को कुचलने में लगी है। ‘जनतंत्र’, संविधान और न्‍याय सब कुछ खतरे में है। 

IV

आज कांग्रेस मोदी सरकार की आलोचना कर रही है। लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों की आर्थिक नीतियां कॉरपोरेटपक्षी हैं। यही हाल या इससे भी बुरा हाल मोदी विरोधी क्षेत्रीय दलों का भी है जो सबसे अधिक अवसरवादी और भ्रष्‍ट भी हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस ही 1991 में नई आर्थिक नीति के माध्यम से उदारवाद, निजीकरण और भूमंडलीकरण तथा श्रम कानूनों तथा अन्य जनपक्षी कानूनों को खत्म करने की नीतियां लेकर आई थी। मोदी सरकार के आज के घोर जनविरोधी कारनामें कांग्रेसी शासन के कुकृत्‍यों के ही विस्‍तारि‍त रूप हैं। आज भी आर्थिक नीतियों के प्रश्‍न पर वह मोदी सरकार के साथ खड़ी है। सवाल है, तो फिर कॉरपोरोट पूंजीपति ने वर्ग मोदी को समर्थन क्‍यों दिया? वे भाजपा को शासन में लेकर क्‍यों आये? इसका कारण समझना आसान है। बुरी तरह संकटग्रस्‍त कॉरपोरेट और पूंजीपति वर्ग एक ऐसी निरंकुश सरकार चाहता था जो खुलकर देश की संपदा और मजदूरों के श्रम को लूटने में उसे मदद करे और जनता के विरोध को किसी भी तरह से दबाने या भटकाने में माहिर व सक्षम हो। मोदी ने गुजरात में 2002 में मुस्लिमों के विरूद्ध जनसंहार कराकर और हिंदू-हृदय सम्राट बन कर यह दिखा दिया था कि वे जनता को लगातार हिंदू-मुस्लिम की राजनीति और राष्‍ट्रवाद में उलझा कर आर्थिक संकट की घड़ी में पूंजीपति वर्ग की सफलतापूर्वक मदद कर सकते हैं। कांग्रेस की छवि उसके लंबे जनविरोधी शासन काल और सोनिया गांधी की वजह से इसके विपरीत थी। कांग्रेस में गांधी परिवार से अलग कोई ऐसा कद्दावर नेता भी नहीं था जो जनता के हितों पर हमला करके भी लोकप्रिय बने रहने और पूंजीपतियों की सत्ता को भी अक्षुण्ण बनाये रखने में मोदी जितना सक्षम हो।

V

पिछले छ: सालों में हम पाते हैं कि मोदी ने ‘जादुई’ तरीके से वह सब कुछ कर दिखाया जिसकी कॉरपोरेट पूंजीपतियों को सख्‍त जरूरत थी। ‘जनतंत्र’ और संविधान तथा ‘स्‍वतंत्र’ न्‍यायपालिका का टैग हटाये बिना ही ‘आजादी’ के बाद स्‍थापित पूंजीवादी जनतांत्रिक राज्‍य की तमाम संस्थाओं पर अंदर ही अंदर कब्जा करके बड़ी सफलता से मोदी ने हिंदू-राष्ट्र के नाम पर भारतीय विशेषता वाले फासीवादी शासन को सुदृढ़ कर दिया। जनवादी अधिकारों को कुचलने की मुहिम तेजी से कामयाब हो रही है। इस तरह राज्‍यतंत्र, कॉरपोरेट तथा शातिर फासिस्‍ट गिरोहों के आपसी संलयन के आधार पर धीरे-धीरे जनतंत्र की कब्र खोद दी गई, लेकिन उसके ऊपर पड़ी जनतंत्र की चादर रहने दी गई। संसद तथा ऐसी अन्‍य संस्‍थाओं के होने या न होने के बीच के फर्क को ही मोदी ने मिटा दिया। राज्‍य सभा में कृषि सुधार बिल जिस तरह जबर्दस्‍ती पारित हुए, वह इस बात का सबसे ताजा और पुख्‍ता उदाहरण व सबूत है। न्यायालय का भी उसी खूबी से इस्तेमाल किया गया।

VI

कोरोना महामारी ने पहले से सुस्‍त पड़ी संकटग्रस्‍त अर्थव्यवस्था को ध्‍वस्‍त कर दिया। इसका सारा बोझ गरीब जनता पर डाल दिया गया। मौजूदा आर्थिक संकट स्‍थाई है और जाने वाला नहीं है। इसलिए फासिस्‍ट लूट का दौर जारी रहेगा जिसकी आंच में मजदूर वर्ग से लेकर मध्‍यवर्ग तक में जल्‍द ही एक बड़ी तबाही का मंजर आने वाला है। मजदूर-मेहनतकश वर्ग के बीच बेरोजगारी और भुखमरी के और भी बुरे हालात तेजी से बनेंगे। विरोध को दबाने के लिए तमाम सरकारें जनवादी अधिकारों पर हमला और तेज करेंगी। मजदूर वर्ग द्वारा पलटवार करने पर फासिस्‍ट संसद और संविधान को अपने हाथ में ले सकते हैं जैसा कि कृषि बिल पारित कराने के लिए किया गया।

विरोध को दबाने का दूसरा हथियार हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, चीन-कश्मीर-पाकिस्तान और अंधराष्ट्रवाद की विषैली राजनीति है जिसमें वे देश को पहले ही बुरी तरह उलझा चुके हैं और आज भी मीडिया इस काम में पूरी शिद्दत से लगा हुआ है। इस अर्थ में मोदी सरकार का यह दौर इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से भी ज्यादा खतरनाक दौर है। इसे पलटना आसान नहीं है, क्योंकि इसके पीछे एक घोर प्रतिक्रियावादी व सांप्रदायिक जनांदोलन तथा राष्ट्रवाद का एक ऐसा उफान है जो आम लोगों की तर्क बुद्धि को नष्‍ट कर दे रहा है जिससे जनता अपना हित-अहित भी नहीं देख पा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा का डर जेहन में बैठाकर और मुसलमानों को बार-बार इसके लिए जिम्‍मेवार बताकर जनता की झूठ और सच में फर्क करने की चेतना को भ्रष्‍ट किया जा रहा है। लेकिन यह स्थिति जल्‍द ही बदलेगी। बेरोजगारी और भुखमरी  लोगों को चेतनशील बनने के लिए बाध्‍य कर रही है।

भाइयो एवं बहनो!

चुनाव बिहार में है, यह सच है, लेकिन देश की स्थिति बहुत ही नाजुक हो गई है। देश नहीं बचेगा, तो बिहार कैसे बचेगा? देश की जनता को पूंजीवादी व्‍यवस्‍था के दलदल से बाहर निकलने के विकल्‍प के बारे में सोंचना होगा। और यह मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सभी शोषितों, वंचितों तथा उत्पीड़ितों के समाजवादी राज्य की स्‍थापना के अलावे और कुछ दूसरा नहीं हो सकता है। यही वास्‍तविक विकल्‍प है जो मेहनतकश जनता का दूरगामी लक्ष्‍य भी है। फासीवाद का जनक सड़ता हुआ संकटग्रस्‍त पूंजीवाद है। जबतक इसका समाधान नहीं निकलेगा, तब तक आम जनता का दुख दूर होने वाला नहीं है। सरकार बदलने से तत्‍काल बस इतना फायदा होगा कि इससे जनता के मनोबल को ऊंचा उठाने का माहौल बनेगा। यहां से आगे मुख्‍य बात जनांदोलन का विस्तार और इसकी निरंतरता को कायम करना है जिसकी जमीन गहराते आर्थिक संकट के कारण तेजी से तैयार हो रही है।

इसलिए आइए, हम एकमात्र विकल्‍प – मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाजवादी गणराज्य कायम करने के लक्ष्‍य की घोषणा करें जो पूंजी के दुष्प्रभावों से पूरी तरह मुक्त एकमात्र सच्‍चा जनवादी और जनतांत्रिक राज्य होगा और जो शोषण व उत्‍पीड़न के सभी रूपों को हमेशा के लिए खत्‍म कर बिहार तथा पूरे देश की जनता के जीवन को खुशहाल बनायेगा। 

क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ,

बिहार राज्‍य कमिटी,
प्रोलेतारियन रीऑर्गनाइज़िंग कमेटी, सीपीआई (एम-एल)


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