कोविड संकट, सर्वनाशी सरकारी प्रबंध और सर्वहारा नजरिया

एम. असीम // 18 दिन में बुराई पर अच्छाई की जीत की मिथकीय महाभारत युद्ध की कहानी की तर्ज पर 21 दिन में कोरोना को परास्त करने के लिए नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे देश को तालाबंद किए चार महीने से अधिक गुजर चुके। विकसित यूरोपीय देशों में उस वक्त जारी कोरोना के कहर को देखते... Continue Reading →

अभूतपूर्व बेरोज़गारी : देश के इतिहास में ऐसी हालत कभी नहीं रही

एस. वी. सिंह // कोरोना वायरस ने दुनियाभर में लड़खड़ाती-चरमराती पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं, को एकदम धराशायी कर दिया है, भारतीय अर्थव्यवस्था को शायद सबसे ज्यादा। ये महामारी इन्सानों और अर्थव्यवस्थाओं दोनों के लिए एक जैसी घातक सिद्ध हो रही है। झूठे प्रचार की नींव पर खड़ी हमारी तथाकथित ‘उभरती 5 ट्रिलियन’ वाली अर्थव्यवस्था का गुब्बारा फूट... Continue Reading →

कोविड नहीं, पूंजीवाद ही सबसे बड़ी महामारी

केंद्र व राज्य सरकारों ने कोविड टेस्ट की उपलब्धता बहुत सीमित कर रखी है। यहाँ तक कि खुद डॉक्टर, नर्स या चिकित्सकीय कर्मियों तक के भी कोविड संक्रमण के लक्षण साफ दिखाई देने के बावजूद अपने ही अस्पताल में भी जाँच करा पाने में नाकाम होने की कई खबरें आती रही हैं। यह इसलिए ताकि... Continue Reading →

‘आपदा से अवसर’ – नवउदारवादी हमला और तेज

एम. असीम // 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में लीमान ब्रदर्स के दिवालिया होने के वक्त बहुत से भलेमानुसों का सोचना था कि अपने इस संकट की वजह से अब नवउदारवाद कदम पीछे हटाने को विवश होगा। मगर तभी ओबामा के चीफ ऑफ स्टाफ और वित्तीय क्षेत्र के पूर्व बड़े प्रबंधक राम इमैनुएल... Continue Reading →

प्रवासी मजदूरों की असंगठित सेना

एस. वी. सिंह // बुर्जुआजी ने देश में शहरों का शासन स्थापित कर डाला है। इसने शहरी आबादी को ग्रामीण आबादी की तुलना में बहुत अधिक बढ़ा दिया और ऐसा करके उसने ग्रामीण आबादी के काफी बड़े भाग को देहाती जीवन की मूर्खता से बचा लिया।- मार्क्स एंगेल्स, कम्युनिस्ट घोषणा पत्र 24 मार्च का दिन... Continue Reading →

कोविड-19 की क्रान्तिकारी भूमिका के बारे में

शेखर // कोविड-19 कोरोना वायरस परिवार का एक नया घातक वायरस है। जानवरों से इंसानों में हुए इसके संक्रमण के बाद इसने पूरी पृथ्वी पर तब धावा बोला जब विश्व पूंजीवाद पहले से ही मरणासन्न अवस्था में एक गहरे ढांचागत संकट को झेल रहा था। असल में, अपनी अंतिम सांसे गिनते पूंजीवाद की इसने गर्दन... Continue Reading →

फासीवाद का खतरा गहराता जा रहा है : झूठ से इंकार और फिर निगरानी तक, सब कोरोना के नाम पर

ए. तिवारी // द्वितीय विश्व युद्ध उपरांत के दमनकरी कानूनों की वैधता को अस्वीकार करते हुए लार्ड एटकिन[1] ने कहा था - “हथियारों की टकराहट के बीच भी कानून चुप नहीं रह सकते।” उनका यह बयान व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सशक्त सुरक्षा कवच की अनिवार्यता और विदेशियों के भी प्रति न्याय में उनके विश्वास को दर्शाता... Continue Reading →

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