इफ्टू (सर्वहारा) का विजय जुलूस [पटना, बिहार / 11 दिसंबर 2020]

// दिवंगत साथी मुंद्रिका प्रसाद, आपके साथ हुए अन्‍याय का पूरा बदला लेंगे!
// शोषण की व्‍यवस्‍था पर अंतिम प्रहार होने तक हर जीत अधूरी है!

हमारे प्रिय मजदूर साथी मुंद्रिका प्रसाद, जो कार्यस्थल पर मौत के मुंह में समा गए, के साथ हुए अन्याय के खिलाफ कठिन लड़ाई से मिली जीत से मजदूर सबक लें “मजदूर चाहें तो एकता से आसमान को झुका सकते हैं!”

मजदूर साथी मुंद्रिका प्रसाद की दुर्घटना से हुई मृत्यु के मामले में मिली जीत के बाद आज (11.12.2020) इफ्टू (सर्वहारा) की पटना इकाई द्वारा एक विजय जूलूस आयोजित किया गया। यह विजय जूलूस, जिसमें कंकड़बाग इलाके के विभिन्न चौकों व मजदूर बस्तियों के दर्जनों निर्माण मदजूर शामिल थे, मलाही पकड़ी चौक से शुरू हो कर योगीपुर और हनुमान नगर होते हुए और छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं करते हुए मुन्ना चौक पर एक सभा के साथ खत्म हुआ। दिवंगत साथी मुंद्रिका प्रसाद के मामले में तमाम कठिनाइयों और केस की सभी कमजोरियों को पार करते हुए मिला मुआवजा इस बात का सबूत है कि मजदूरों द्वारा एकताबद्ध हो कर संघर्ष करने से सब कुछ संभव है।

इस विजय जूलूस की मुख्य मांगें थी कि कार्यस्थल पर सभी निर्माण मजदूरों की सुरक्षा की गारंटी करो, उनका कार्ड नहीं होने के बावजूद भी उन्हें कार्यस्थल पर दुर्घटना या मृत्यु हो जाने के बाद लेबर कल्याण बोर्ड से 5 लाख रुपया मुआवजा देना होगा और लापरवाही के कारण हुई मृत्यु या दुर्घटना की स्थिति में मालिक (पार्टी) की हैसियत देख कर उन्हें भी जिम्मेदार बनाया जाए। इसके साथ ही सभी मदजूरों का लेबर कार्ड बनाने और उन्हें कार्ड पर देय राशि का भुगतान करने की मांगें भी शामिल थी।

विजय जूलूस में मुंद्रिका प्रसाद की पत्नी भी मौजूद थीं। इफ्टू (सर्वहारा) की तरफ से कॉमरेड आकांक्षा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज के दमनकारी फासीवादी दौर में मजदूरों को अपनी ताकत को पहचानना होगा और मजदूरों के हक-अधिकार के लिए अंतिम दम तक लड़ने वाली ताकतों को चिन्हित करके उनके साथ शामिल होना होगा और उन्हें मजबूत करना होगा क्योंकि अब लड़ाई केवल सुविधाएं लेने तक सीमित नहीं रह गयी है, बल्कि मजदूर वर्ग के अस्तित्व का सवाल बन गयी है।

जोशीले नारों और मजदूरों के हक-अधिकार के लिए आर-पार की लड़ाई उठाने के प्रण के साथ सभा और विजय जूलूस समाप्त किया गया।


हमें संतोष है कि अपने प्‍यारे मजदूर साथी मुद्रिका प्रसाद की कार्यस्‍थल पर ठेकेदार और मालिक की लापरवाही के कारण हुई मौत (हत्‍या) को हम यूं ही बेकार नहीं जाने दिये। इनकी मौत का मामला तो दफन हो गया था। लेकिन, आईएफटीयू (सर्वहारा) ने इसे फिर से जिंदा किया। न तो पोस्‍टमार्टेम और न ही एफआईआर कराया गया था। हमलोगों तक जानकारी आने में काफी दिन भी बीत गये थे। कहीं कोई प्रमाण नहीं था। लेकिन बस एक मजदूर वर्गीय जज्‍बे के साथ हमलोग इसमें लग गये। मजदूरों और आम जनता से इनके परिवार के लिए आर्थिक मदद की भी थोड़ी बहुत व्‍यवस्‍था कराई गई। दिक्‍कत यही थी कि ठेकेदार और मालिक का मिलना मुश्किल हो गया था। समझ में नहीं आ रहा था कि संघर्ष आखिर शुरू कैसे और कहां से किया जाए। कई लोग बोल रहे थे कि अब इसमें कुछ नहीं हो सकता है। लेकिन अंतत: हमलोग मालिक को खोज निकाले और कमर में रिवॉल्‍वर रख कर बात करने वाले मालिक के घर पर चढ़कर बात किये और उसे झुकने और हमारी मांग के मुताबिक कम लेकिन उसे मुआवजा देने के लिए बाध्‍य कर दिये। हमलोगों ने सोचा है कि पहले जो भी मुआवजा मिलता है उसे हासिल कर लिया जाए और लड़ाई आगे जारी रखी जाए। किसी तरह का कोई प्रमाण नहीं होना इस लड़ाई की सबसे कमजोरी थी और है। बावजूद इसके लेबर विभाग से भी कुछ मुआवजा दिलाने की लड़ाई चल रही है।

दरअसल मुआवजा कितना मिला और आगे कितना मिलेगा, इससे कहीं ज्‍यादा महत्‍व की बात यह है कि हम मुंद्रिका प्रसाद की मौत के सवाल को अंतत: दफन नहीं होने दिये और हमने उनकी मौत को यूं ही भूलने देने नहीं दिये। हमने सीमित सांगठनिक ताकत के बल पर ही सही, लेकिन मज़दूर वर्ग पर भरोसे पर ये दिखाया कि मजदूर की जान मालिकों और उनके छूटभैयों के लिए सस्‍ती होगी, लेकिन हमारे लिए नहीं। जो लोग यह समझते हैं कि बहुत दिन हो गया अब आवाज उठाना वेवकूफी है, हमने उन्‍हें भी ये बता दिया कि अगर मजदूरों को जगाने के लिए हम ठान लें और पूरी शक्ति लगा दें, तो चाहे केस कितना भी कमजोर क्‍यों न हो, इसका कुछ न कुछ परिणाम तो निकलता ही है।

साथियों, हम आए दिन अपने आस-पास मजदूरों के साथ कार्यस्थल पर होने वाली मौतों के बारे में सुनते हैं। साथी मुंद्रिका जी की मौत भी इसी तरह 17 अक्टूबर 2020 की रात संपतचक ब्लॉक के गौरीचक इलाके में स्थित एक कॉलेज साइट पर हुई जहां मुद्रिका प्रसाद काम करे थे। देर रात 1 बजे वे इमारत की पहली मंजिल से गिर गए और बुरी तरह घायल हो गए। उसी हालत में कई घंटों तक वहीं पड़े रहे, लेकिन ठेकेदार या मालिक ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की। सुबह अन्य मजदूरों की मदद से उन्हें किसी तरह अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन वहां भी उन्‍हें अकेला छोड़ दिया गया और इसलिए उसके कुछ घंटे बाद ही 18 तारीख की सुबह 5 बजे उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उनके परिवार व उनके कुछ साथी, जो कहने को तो कोई मजदूर यूनियन चलाते हैं, ने बिना पोस्‍टमार्टम और एक फआईआर के उनके पार्थिव शरीर को गांव ले जा कर उनका अंतिम संस्कार करा दिया। नजीता यह हुआ कि कोई भी प्रमाण हाथ नहीं आया। न ही मुआवजे की बात आगे बढ़ी और न ही इस मौत के जिम्‍मेवार लोगों पर कोई कार्रवाई ही हुई। याद कीजिए, बुरी तरह पुलिस की मार खाते हुए मुन्‍ना चौक का वह आंदोलन जिसमें आईएफटीयू (सर्वहारा) ने 2 बजे रात तक संघर्ष करके सबको झुकाया गया था।

सबसे बहुत अफसोस और दुख की बात है कि कि दस दिन बाद उनके परिजनों को बहुत जद्दोजहद के बाद इफ्टू (सर्वहारा) यूनियन के साथियों का मोबाइल नंबर मिला, जबकि उनके साथ वालों के पास हमलोगों का नंबर था। उनकी पत्‍नी और अन्‍य मजदूरों ने जो बात बताई वह रोंगटे खड़े करने वाला है। मजदूरों को इससे सबक लेना चाहिए। खैर, उनकी पत्‍नी की आपबीती सुनने के बाद हम लोगों ने उनके कहने पर ये मामला हाथ में लिया। उनकी पत्‍नी और उनके साथ रहने वालों ने जो भी संभव है हमसे करने की मांग की, हालांकि एफआईआर व पोस्टमोर्टेम नहीं होने की वजह से यह केस काफी कमजोर हो गया है। कार्यस्‍थल पर उनके साथ काम कर रहे अन्‍य मजदूरों से जब संपर्क किया गया तो उन्‍होने कहा कि अगर न्‍याय और हक के लिए प्रयास किया जाता है तो हम साथ देने के लिए तैयार हैं। अन्‍य मजदूरों से भी बात की गई। सबने कहा कि ठेकेदार और मालिक या तो मुआवजा दे अन्‍यथा जो भी संभव है कार्रवाई की जाए। इसके बाद इस केस को लड़ने का कुछ आधार हमने तैयार किया और संघर्ष का एक खाका तैयार किया गया। सबसे पहली बात यह तय हुआ कि मालिक और ठेकेदार को ढूंढा जाए, क्‍योंकि साइट पर से ये हमेशा दोनों नदारद थे। वहां काम कुछ दिना बंद रहा और बाद में दूसरे ठेकेदार और मजदूर से काम शुरू करवाया गया। साइट भी हमारी पहुंच से दूर शहर के काफी बाहर था और सीधे वहां लड़ाई लड़ना कठिन था। मालिक का घर खोजने का प्रयास किया गया। जब उसके पटना स्थित घर का पता मिल गया तब यह लड़ाई जाके लड़ने लायक बनी। इसके बाद पूरे मामले की कानूनी नजर से भी छानबीन की गई, लेकिन मुख्‍यत: मजदूरों की ताकत पर ही भरोसा करने का निर्णय हुआ और सीधे मालिक के घर पर चढ़कर बात करने का निर्णय लिया गया जो अंतत: सफल भी रहा। लेकिन मुआवजे की राशि काफी कम हासिल हुई है, महज 70 हजार रूपये, लेकिन हम इस लड़ाई को और आगे, विभाग से मुआवजे के लिये जारी लड़ाई के अतिरिक्त, ले जाने के रास्‍ते पर भी विचार कर रहे हैं। सारे रास्तों पर विचार किया जा रहा है। यह विजय जुलूस भी इस लड़ाई में आगे मज़दूरों को शामिल करने के लिए आयोजित किया गया।

मजदूर भाइयों, हमारा आह्वान है कि ऐसे मामले में जिनकी भी लापरवाही से उनकी मौत हो, ठेकेदार, मालिक या कोई और, उन सबके खिलाफ आप सब मुस्‍तैदी से खड़े होना सीखें। अगर सैंकड़ों-हजारों मजदूर व आम जनता चाह लें तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। हम इसी विश्‍वास के साथ मुद्रिका जी के मामले को हाथ में लिए थे। जीत छोटी है, लेकिन इसका महत्‍व काफी है, क्‍योंकि सबने कहा था कि अब इसमें कुछ नहीं हो सकता है। लेकन हम अपने दिवंगत साथी मुद्रिका जी और उनके परिवार के साथ हुए अन्‍याय का मजदूरों की ताकत पर भरोसा करते हुए प्रतिकार करने के लिए कमर कस चुके थे और उसका ही नतीजा है कि हमने एक छोटी ही सही लेकिन मजदूर वर्ग के हौसले के लिए एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण जीत हासिल की है जिससे सीखते हुए हमें आगे ऐसी किसी भी लड़ाई को तथा इस लड़ाई को भी बड़ी से बड़ी जीत की ओर ले जा सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि मजदूर एकताबद्ध नहीं है तो कुछ भी नहीं है, लेकिन अगर वह एकताबद्ध है, तो वह एक विशाल ताकत है और अगर वह समझदार भी हो जाए तो पूरी दुनिया से शोषण को खत्‍म कर नया समाज और अपना राज भी कायम कर सकता है। मुद्रिका जी की कहानी ना पहली है, और ना आखरी। इसलिए भी लड़ाई लड़ना जरूरी था, ताकि मालिकों तक यह संदेश जाए कि कोई भी मजदूर अकेला नहीं है।

आइए, इस लड़ाई से सबक लें। प्रिय दिवंगत साथी मुंद्रिका जी एक बुलन्द हौसले वाले मजदूर थे और हमारी हर मुमकिन लड़ाई में अगुवा साथी हुआ करते थे। हमलोग उनसे कभी दूर नहीं गये और हम आज भी उनको बहुत याद कर रहे हैं। हम यह प्रण लेते हैं कि उनके साथ हुए अन्‍याय का बदला हम मजदूर वर्ग की लड़ाई को और तेज करके लेंगे।

साथी मुंद्रिका! अंत में, हम आपसे वादा करते हैं कि आप हमेशा हम सबकी यादों में रहेंगे और आपका मजाकिया स्‍वभाव से दमकता और हंसता चेहरा हमेशा हमें गुदगुदाता रहेगा। हमें इस बात का हमेशा दुख रहेगा कि जब आप घायल हुए और अस्‍पताल में भर्ती हुए तो हमलोगों तक खबर नहीं पहुंच पायी। बाद में जानकारी मिली कि आप एक दिन तक अस्‍पताल में जिंदा थे, लेकिन समुचित इलाज और मेडिकल देखभाल के बिना मौत के मुंह में समा गये और कोई भी आपके साथ नहीं था। हमें बहुत अफसोस है साथी मुद्रिका कि हमलोग उस घड़ी में आपके पास नहीं थे और न ही हम तक इसकी सूचना ही आ पायी। हम आपको इस तरह बिना देखभाल के तो कतई मरने नहीं देते। हम आपको वचन देते हैं कि हम आपकी मौत का बदला लेंगे और जरूर लेंगे।

पटना इकाई
आईएफटीयू (सर्वहारा)

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