पटना, बिहार : साथी मुंद्रिका प्रसाद की मौत 17 अक्टूबर 2020 की रात पटना के संपतचक ब्लॉक के गौरीचक इलाके में स्थित एक निर्माणाधीन कॉलेज साइट पर हुई जहां वे काम करे थे। देर रात 1 बजे वे इमारत की पहली मंजिल से गिर गए और बुरी तरह घायल हो गए। वे उसी हालत में कई घंटों तक वहीं पड़े रहे, लेकिन ठेकेदार ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की। सुबह अन्य मजदूरों की मदद से उन्हें किसी तरह अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन वहां उन्हें अकेला छोड़ दिया गया और उसके कुछ घंटे बाद ही उनकी हालत बिगड़ने लगी और 18 तारीख को सुबह 5 बजे उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उनके परिवार व उनके कुछ साथी, जो कहने को कोई मजदूर यूनियन चलाते हैं, ने बिना पोस्टमार्टम और एफआईआर के उनके पार्थिव शरीर को गांव ले जा कर उनका अंतिम संस्कार करा दिया। नजीता यह हुआ कि न तो मुआवजे की बात आगे बढ़ी, और न ही इस मौत के जिम्मेदार लोगों पर कोई कार्रवाई ही हुई। आगे का भविष्य अंधकारमय प्रतीत होने और कोई मदद नहीं मिल पाने की स्थिति में उनके परिजनों ने इफ्टू (सर्वहारा) के साथियों का नंबर मांगा। बेहद अफसोस और दुख की बात है कि उनकी मृत्यु के बाद आठ दिन तक जद्दोजहद करने पर उनके परिजनों को बहुत मुश्किल से इफ्टू (सर्वहारा) यूनियन के साथियों का मोबाइल नंबर मिला, जबकि उनके साथ काम करने वालों के पास हमलोगों का नंबर था।उनकी पत्नी की आपबीती सुनने के बाद हम लोगों ने उनके कहने पर ये मामला हाथ में लिया। उनकी पत्नी और उनके साथ रहने वालों ने जो भी संभव है करने की मांग की, हालांकि एफआईआर व पोस्टमार्टम नहीं होने की वजह से यह केस काफी कमजोर हो गया है। इसके बाद हमने पूरे मामले की कानूनी नजर से छानबीन की और हमारे सामने बचे विकल्पों को तलाशने की कोशिश की गई। हमें जो पता चला है, उसकी नजर में अगर मजदूर साथ दें और एकजुट हो आवाज उठायें, तो आज भी थाने पर दवाब डालकर एफआईआर करवाया जा सकता है और इसके बाद विभाग से भी पूरा तो नहीं लेकिन कुछ मुआवजा लेने का रास्ता खुल जाता है। इस बीच हमलोग दर्जन भर मजदूरों को लेकर साइट पर भी गये और ठेकेदार को जल्द से जल्द मिल कर मुआवजा देते हुए सुलह करने की मांग की गई। ठेकेदार ने अभी ‘हां’ में जवाब दिया है और वह मालिक से मिलकर बात करने और मिलने को बोला है। हालांकि मालिक वर्ग के चरित्र से हम सब वाकिफ हैं और अगर वे मुआवजा देने से पीछे हटते हैं तो हम कानूनी प्रक्रिया में जायेंगे।इसके बाद हमलोग कुछ मजदूरों के साथ मुंद्रिका जी की आर्थिक स्थिति देखने उनके गांव भी गये और श्राद्ध में भी शामिल हुए। वहां जाकर पता चला कि उनके घर में खाने के भी लाले हैं। खेती भी नहीं है और घर भी झोपड़ीनुमा और बस किसी तरह गुजारा करने लायक है। इसलिए लड़ाई के दौरान होने वाले खर्च का मामला तो दूर की बात है, सबसे पहले तो हमनें उनके परिवार वालों के पेट के लिए तत्काल कुछ राहत का इंतजाम करना जरूरी समझा। इसी के तहत इफ्टू (सर्वहारा) द्वारा पटना के मजदूर बस्तियों में आर्थिक सहयोग करने व मुआवजा, जो हर मजदूर व उनके परिवार का अधिकार है, की लड़ाई में मजदूरों को एकजुट करने हेतु प्रचार व जनसंपर्क अभियान शुरू किया गया है।इस मामले में आगे का रास्ता तो कठिन है क्योंकि इतने दिन बीत जाने और एफआईआर व पोस्टमार्टम नहीं होने की वजह से केस काफी कमजोर हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद इफ्टू (सर्वहारा) ने यह निश्चय किया है कि वो साथी मुंद्रिका प्रसाद और उनके परिवार को न्याय दिलाने का हर संभव प्रयास करेगा।
कार्यस्थल पर मौत के मुंह में समा गये मजदूर साथी मुंद्रिका प्रसाद के साथ हुए अन्याय के खिलाफ एकजुट हों [पटना, बिहार]

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