एम. असीम //
भारत में बलात्कार के खिलाफ कई ‘कड़े’ कानून हैं, लेकिन एक बलात्कार पीड़िता के लिए न्याय मांगना कैसा होता है?
7 जुलाई 2020 को उत्तर बिहार के ग्रामीण जिले, अररिया, में रहने वाली एक 22 वर्षीय महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज की कि चार आदमियों ने उस पर हमला किया और उसका बलात्कार किया। तीन हफ्ते बीतने के बाद भी उन चारों में से किसी भी आदमी की ना गिरफ्तारी हुई ना उनके बारे में कुछ पता चल पाया। लेकिन जब बलात्कार पीड़िता और उनके साथ दो समर्थक कार्यकर्ता, जो कि उत्तर बिहार के ग्रामीण मजदूरों की हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने वाला एक मजदूर संगठन, जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) के साथ काम करते थे, निचली अदालत में पीड़िता का बयान दर्ज कराने गए तो उन तीनों को सरकारी सेवक पर हमला या आपराधिक बल इस्तेमाल करना जो कि एक गैर-जमानती अपराध है, न्यायालय की अवमानना करना और आपराधिक साजिश में शामिल होना, जैसे कई संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी की वजह थी उस अदालत के मजिस्ट्रेट से बहस होना जब पीड़िता ने बयान पर दस्तखत करने से पहले उसके बारे में और जानकारी मांगी क्योंकि वो खुद पढ़ी लिखी नहीं थी। बलात्कार पीड़िता ने अपने घर से 240 कि.मी. दूर समस्तीपुर जेल में आठ दिन बिताए, जब तक 17 जुलाई को दूसरी निचली अदालत ने उसकी बेल मंजूर नहीं कर दी। ज्ञात हो कि उन्ही धाराओं के तहत जेजेएसएस के कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्हें बेल नहीं दी गई। कोर्ट ने पीड़िता के समर्थक कार्यकर्ताओं, कल्याणी और तन्मय, को बेल देने से मना कर दिया क्योंकि कोर्ट के एक अधिकारी ने अपने बयान में कहा कि उन्होंने “दर्ज बयान को छीनने और फाड़ने” की कोशिश की और “कोर्ट पर असामान्य दबाव” बनाया, इन दोनों ही इल्जामों को पीड़िता ने, जो खुद भी वहां मौजूद थी, आर्टिकल 14 को दिए गये इंटरव्यू में गलत बताया है। निचली अदालतों में सुनवाई होने के बाद भी बेल को नामंजूर कर दिया गया और कोरोना महामारी की वजह से पटना उच्च न्यायलय में 6 अगस्त तक सुनवाई नहीं हो सकती थी। आखिरकार, जब पूरे देश में इस मामले पर चारों तरफ से अन्याय के खिलाफ आवाजें उठने लगी तब जाकर 4 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई हुई और कल्याणी और तन्मय को इतने दिन जेल में बिताने के बाद पीआर बौंड पर रिहा किया गया।
इस पूरे मामले ने बुर्जुआ जनतंत्र में न्याय व्यवस्था का असली चेहरा एक बार फिर सामने ला दिया और यह साफ कर दिया कि कानूनी व्यवस्था और कानून के आगे सब बराबर होने के दावे खोखले हैं। और इसीलिए अपने लिए न्याय मांगती एक गरीब घरेलू कामगार को, न्याय नहीं खरीद पाने की वजह से जेल में डाल दिया जाता है और उसके बलात्कारी खुलेआम सुरक्षित घूमते हैं।
यह लेख मूलतः यथार्थ : मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी स्वरों एवं विचारों का मंच (अंक 4/ अगस्त 2020) में छपा था
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