निशुल्क स्वास्थ्य सेवा, रोजगार, भोजन व आवास की गारंटी के लिए मुख्य दुश्मन पूंजीवाद को पलटने की लड़ाई तेज करें
आज के समय में जब कोरोना महामारी या कोविद-19 समस्त मानव जाति के भविष्य को खतरे में डाल चुका है, पूंजीवाद इसके बावजूद मानव समाज के ही विरुद्ध कदम बढ़ा रहा है और युद्धरत है। इससे यह साबित हो चुका है कि पूंजीवाद के विरुद्ध मजदूर वर्ग के नेतृत्व में एक राजनीतिक जनांदोलन एक फौरी जरूरत है, जो भुखमरी और बीमारियों से बचने से संबंधित तात्कालिक मांगों को उठाने के अतिरिक्त पूंजीवादी व्यवस्था पर एक सीधा प्रहार करे। कोरोना महामारी में हम जो झेल रहे हैं वह एक ऐसे समाज का परिणाम है जो मुनाफे के आधार पर गठित है जिसमें चंद मुट्ठीभर, ठीक-ठीक कहें तो महज आठ लोगों के हाथों में पूरी दुनिया की आधी आबादी जितनी धन-संपदा सिमट चुकी है। इस महामारी ने समाज के बुनियादी तौर पर पुनर्गठन की अपरिहार्य आवश्यकता को सामने ला दिया है। मानव जाति के इतिहास में एक बार और यह साबित हुआ है कि मानवजाति की प्रगति और सुरक्षा का सवाल अवश्यंभावी तौर पर गैरबराबरी के विरुद्ध उसके संघर्ष से जुड़ा हुआ है।
साथियों! कोरोना महामारी अभूतपूर्व स्तर पर एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक संकट में तब्दील हो चुकी है जिसने मौजूदा विश्व पूंजीवादी सामाजिक व्यवस्था का चक्का जाम कर दिया है। कोविड-19 से हुई मौतों के बढ़ते आंकड़े व्यापक तौर पर बेचैनी का कारण बन रहे हैं जो इशारा करते हैं कि विश्व भर में शायद करोड़ों लोग इसके शिकार हो जाएंगे। ईरान व ब्राजील जैसे कई देशों ने तो सामूहिक कब्रिस्तान (‘मास ग्रेव्स’) बनाना भी शुरू कर दिया है। अमेरिका भी इसी ओर तेजी से अग्रसर है।
इतना तो स्पष्ट है कि कोरोना महामारी ने ऐसे संकट और इस कारण मानव जाति पर मंडरा रहे खतरे को संभालने में पूंजीवादी व्यवस्था की असमर्थता को उघाड़ कर रख दिया है। विश्व भर की पूंजीवादी सरकारों ने इस महामारी से लड़ने के दौरान गंभीर स्तरों पर अक्षमता और अराजकता का उदाहरण पेश किया है। संसाधनों की भारी कमी, जो सीधे तौर पर नवउदारवाद के कारण पैदा हुईं, की वजह से त्रस्त सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इस संकट से निपटने में बुरी तरह विफल साबित हो रही हैं। अमेरिका जैसे विकसित देशों की पूर्ण विफलता संपूर्ण पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है। आज इनके बारे में यह नारा काफी प्रचलित है: अगर हमारे अरबों के मुनाफे के लिए करोड़ों की जान जाती है, तो चली जाए।
अतः यही कारण है कि जब मानव जाति कोरोना जैसी भयानक महामारी से जंग लड़ रही है, तब भी पूंजीवादी सरकारों की सारी नीतियां समाज की हिफाजत के आधार पर नहीं, मुट्ठीभर धन्नासेठों की निजी संपत्ति और मुनाफे की हिफाजत पर आधारित हैं। एक तरफ सरकारें बड़े पूंजीपतियों के मुनाफे की हिफाजत में लगी हैं, तो वहीं दूसरी तरफ करोड़ों की तादाद में आम गरीब व मेहनतकश जनता, बिना किसी राहत के, जीवन और मौत से जंग लड़ने की स्थिति की तरफ धकेली जा चुकी है। स्वास्थ्य संबंधित आपदाओं से निपटने की दिशा दिखाने व दावा करने वाली संस्था मानी जाने वाले संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यू.एच.ओ.) भी आज बेबस खड़ा है, जिसके दिशा निर्देशों को विश्व भर की पूंजीवादी सरकारों ने नजरंदाज कर दिया है।
इन परिस्थितियों में हमें निम्नलिखित मांगों को उठाना चाहिए:
- महामारी से लड़ने हेतु सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वैसी नीतियां सूत्रबद्ध की जाएं, जो मुनाफे पर केंद्रित होने के बजाये पूरी तरह आम मेहनतकश जनता की जरूरतों पर आधारित हों।
- कोविड-19 व अन्य बीमारियों से लड़ने वाले लक्ष्यों के साथ संसाधनों को जुटाने की व्यापक व सुनियोजित मुहिम चलाई जाए, जिसमें सभी के लिए निःशुल्क जांच व चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराने के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधनों का आवंटन शामिल हो।
- निजी स्वास्थ्य व्यवस्था को समाप्त कर सार्वजनिक निःशुल्क देशव्यापी व विश्वव्यापी स्वास्थ्य सेवा की नीति लागू की जाए। इसके लिए सभी बेकार पड़े निजी अस्पतालों, जांच केंद्रों, नर्सिंग होम व अन्य संसाधनों व उनमें लगी पूंजी का सरकार टेक ओवर करे।
- पर्याप्त मात्रा में मेडिकल उपकरण के उत्पादन के लिए सभी मुख्य उद्योगों को सार्वजनिक स्वामित्व में लाते हुए एक विशाल सार्वजनिक औद्योगिक उत्पादन प्रोग्राम को शुरू किया जाए।
- घरों व कार्यस्थलों पर मजदूरों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम अविलंब उठाये जाएं। भीड़-भाड़ वाले कार्यस्थलों को बंद किया जाए या नियमित रूप से सैनिटाइज किया जाए। लॉकडाउन की स्थिति में सभी मजदूरों को पूरा वेतन व अन्य सुविधायें दी जाएं। 12 घंटे के कार्यदिवस सहित सभी मजदूर-विरोधी कानूनों व कानून में हुए मजदूर विरोधी सुधारों को रद्द किया जाए। महंगाई भत्ता, बोनस, वेतन बढ़ोतरी को रोकने वाले सभी सरकारी फरमानों व ऑर्डरों को निरस्त किया जाए।
- उद्योगों में काम शुरू ना होने तक सभी मजदूरों के बैंक अकाउंट में ₹12,000 प्रति माह डाले जाएं।
- लॉकडाउन में और उसके बाद परिस्थितियों में सुधार होने तक किराया/रेंट भुगतान के साथ बेदखली पर रोक लगाई जाए।
- बड़े बैंकों व संस्थानों के साथ-साथ धार्मिक संस्थानों के पास पड़ी धन-संपदा को सार्वजनिक स्वामित्व व जनतांत्रिक नियंत्रण में लाया जाए, अर्थात उनका राष्ट्रीयकरण कर उनके संचालन को जनता के नियंत्रण में लाया जाए।
- बड़े पूंजीपतियों की धन-संपदा व निजी संपत्ति को जब्त कर उन्हें निःशुल्क व वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था और आवास मुहैया कराने के साथ अन्य सामाजिक जरूरतों को पूरा करने में लगाया जाए।
- पूरी अर्थव्यवस्था को केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थतंत्र के आधार पर निजी संपत्ति व निजी उद्देश्यों के वर्चस्व व उससे पैदा हुई अड़चनों को हटाते हुए पुनर्गठित किया जाए।
- समाजवाद का नारा बुलंद करो!
मजदूर वर्ग व आम गरीब जनता के अन्य तात्कालिक मांगों व राहत सम्बंधित कार्यक्रमों, जिसके लिए ट्रेड यूनियन व अन्य मजदूर वर्गीय संगठनों के साथ क्रांतिकारी छात्र व युवा संगठन पहले से ही कार्यरत हैं, के अतिरिक्त उपरोक्त मांगों को आज तेजी से और पूरी ताकत से उठाया जाना जरूरी है।
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