‘आरोग्य सेतु’- महामारी में तकनीक बनाम निजता

क्या आपने ‘आरोग्य सेतु’ ऐप के बारे में सुना है? यह एक मोबाइल ऐप्लिकेशन या ऐप है जिसे भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, यह कहते हुए कि यह कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एक ज़रूरी ऐप है क्योंकि यह यूज़र को ट्रैक करता है और कोरोना संक्रमित लोगों से मिलने पर उन्हें अलर्ट भेजता है। पिछले कुछ दिनों से विभिन्न माध्यमों से सरकार द्वारा इसका प्रचार किया जा रहा है और इसे डाउनलोड करने के लिए आग्रह किया जा रहा है। 2 अप्रैल 2020 को लॉन्च किये गए इस ऐप को केवल 4 दिनों में 1 करोड़ बार डाउनलोड किया गया और उसके अगले 4 दिनों में यह संख्या 2 करोड़ हो गई। 24 अप्रैल को कुल डाउनलोड 7.5 करोड़ हुए हैं। मानव संसाधन विकास (यानी एचआरडी या शिक्षा) मंत्रालय एवं रेल मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी करते हुए छात्रों, शिक्षकों, व कर्मचारियों व उनके परिवारों को यह ऐप डाउनलोड करने की सलाह दी है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) तमाम स्कूलों व शिक्षण संस्थाओं में इसका प्रचार कर रही है। बैंकों ने अपने ग्राहकों को इसे डाउनलोड करने के लिए सन्देश भेजना शुरू कर दिया है। टीवी चैनलों और अन्य मीडिया पर भी इसकी सूचना दी जा रही है। प्रधानमंत्री व अन्य मंत्रियों ने भी इसे डाउनलोड करने की सलाह देते हुए ट्वीट किये हैं। हालांकि यह ऐप कैसे काम करता है, इसके क्या फायदे हैं, डाउनलोड होने के बाद यह आपकी क्या-क्या जानकारी लेता है, उनका कैसे इस्तेमाल होता है, इसमें क्या लूपहोल हैं – इससे संबंधित जानकारी ज़्यादातर आम जनता को नहीं है।

कैसे काम करता है ‘आरोग्य सेतु’?

यह ऐप ‘कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग’ नामक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है। यह शुरुआत में आपका नाम, मोबाइल नंबर, जेंडर, पेशा, ट्रैवेल हिस्ट्री और आप धूम्रपान करते हैं या नहीं, इसकी जानकारी लेता है। साथ ही इस ऐप को अपने फ़ोन में लोकेशन/गीपीएस और ब्लूटूथ का इस्तेमाल करने की अनुमति देनी होगी और जीपीएस व ब्लूटूथ हमेशा चालु रखना होगा। जीपीएस के ज़रिये यह ऐप हर 15 मिनट पर आपके फ़ोन के ज़रिये आपके लोकेशन को ट्रैक कर पायेगा, यानी आप हर वक़्त कहाँ है और कहाँ जाते हैं वह इस ऐप को पता होगा। केवल यही नहीं, अगर आप किसी से मिलते हैं तो आपके फ़ोन के ब्लूटूथ के ज़रिये यह ऐप सामने वाले व्यक्ति के फ़ोन का सिगनल 6 फीट तक पकड़ सकेगा और यह पता चल जाएगा कि आप इस वक़्त किससे मिल रहे हैं। यह सारा डाटा, कि हर यूज़र कहाँ-कहाँ गया, किनसे मिला, इस ऐप में जमा होता रहेगा। अगर किसी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हो जाए तो वो खुद ही इसकी जानकारी ऐप में डाल सकता है या फिर सरकार के संक्रमित व्यक्तियों के डेटाबेस/रिकॉर्ड  से ऐप में खुद ही उसकी जानकारी आ जायेगी क्योंकि आरोग्य सेतु ऐप के पास सरकारी डेटाबेस का एक्सेस (देखने की इजाज़त) है। अब उदाहरण के तौर पर मान लीजिये कि आप किसी व्यक्ति से मिलते हैं, आपके और उनके फ़ोन में यह ऐप भी है, जीपीएस व ब्लूटूथ के ज़रिये ऐप को पता चल जाएगा कि आप इस व्यक्ति से इस दिन इस जगह पर मिले हैं। अब मान लीजिये कि उस व्यक्ति को कोरोना वायरस की बीमारी हो जाए और उसके ऐप में इसकी जानकारी आ जाए, तो सर्वर में इकठ्ठा जानकारी के आधार पर वह पिछले कुछ दिनों में जिस भी व्यक्ति से मिला है, यानी आप भी, उनके फ़ोन में यह अलर्ट आ जाएगा कि आप इस संक्रमित व्यक्ति से कुछ दिन पहले मिले थे इसलिए आपको भी संक्रमण का ख़तरा है, कृपया जांच कराएं या खुद को कहीं दूसरों से अलग क्वारंटाइन करें। ऐसे यह ऐप संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।

ब्लूटूथ का यह काम है लेकिन ट्रैकिंग व अन्य निजी जानकारी की इस ऐप को क्या ज़रूरत है? हम किससे मिले यह जानकारी ज़रूरी हो सकती है लेकिन कहाँ जाते हैं और इस वक़्त कहाँ हैं क्या यह जानकारी भी आवश्यक है? सिंगापुर इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए ‘ट्रेस टूगेदर’ नाम से एक ऐप बना कर उसका इस्तेमाल कर रहा है। गौरतलब है कि उस ऐप में ना ही जीपीएस लोकेशन ट्रैकिंग है और ना ही फ़ोन नंबर को छोड़ कर और कोई निजी जानकारी देनी होती है। केवल ब्लूटूथ के आधार पर ही डाटा इकठ्ठा हो जाता है और अगर कोई संक्रमित हुआ तो उससे मिलने वाले सभी लोगों के फ़ोन में सूचना चली जाती है। सोचने वाली बात यह है कि ऐसा है तो फिर आरोग्य सेतु ऐप में इतनी जानकारी और कदम-कदम की जीपीएस ट्रैकिंग क्यों रखी गई है?

महामारी और निजता का सवाल

जैसा हर टेक्नोलॉजी के साथ संभव है, इसका इस्तेमाल गलत उद्देश्य के लिए भी किया जा सकता है और उसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। अगर ऐप के कानूनी व नीतिगत पक्ष को देखा जाए तो उसमें कई लूपहोल यानी खाली जगह दिखती हैं जिसके ज़रिये इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सर्विलांस यानी जनता पर कड़ी निगरानी रखने के लिए किया जा सकता है और जिससे मजदूर-मेहनतकश व आम जनता के मौलिक अधिकारों पर हमले भी आसानी से किये जा सकते हैं।

यह ऐप सरकार द्वारा (एक निजी संस्था के साथ मिल कर) बनाया गया है, इसलिए इसके ज़रिये क्लाउड पर जमा की जा रही जानकारी, जैसे आप कहाँ हैं, कहाँ जाते हैं, किससे मिलते हैं, कितनी देर मिलते हैं आदि, का नियंत्रण सरकार के पास होगा। ऐप को बनाने में जिस निजी संस्था की भागीदारी रही है उसका नाम सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया है। इलेक्ट्रॉनिक और आईटी मंत्रालय ने ऐप पर अपने बयान में कहा है कि ऐप द्वारा इकठ्ठा किया गया निजी डाटा एन्क्रिप्ट किया जाएगा यानी गोपनीय रखा जाएगा और केवल चिकित्सा (मेडिकल) सम्बंधित कारणों से इसे इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि ऐप की ही निजता नीति (प्राइवेसी पॉलिसी) यह कहती है कि ऐप द्वारा इकठ्ठा किया गया यूज़र का निजी डाटा मेडिकल के साथ प्रशासनिक (ऐडमिनिस्ट्रेटिव) कारणों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। डिजिटल अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत प्रसिद्ध संस्था ‘इन्टरनेट फ्रीडम फाउंडेशन’ के सिद्धार्थ देब का कहना है कि ऐप किस उद्देश्य के लिए बनाया गया है यह अस्पष्ट है और इसी कारण से सरकार द्वारा इस ऐप का इस्तेमाल महामारी से लड़ने से हटकर किसी अन्य उद्देश्य के लिए भी किया जा सकता है। जानकारों को यह भी चिंता है कि यह ऐप महामारी के बाद भी अन्य उद्देश्यों के लिए एक स्थाई व्यवस्था का रूप ले सकता है।

आरोग्य सेतु की ‘प्राइवेसी पॉलिसी’ व ‘टर्म्स ऑफ़ यूज़’ के अतिरिक्त उसे नियंत्रित करने के लिए कोई कानूनी रूपरेखा नहीं है। गंभीर बात यह है कि भारत में अभी तक कोई डाटा सुरक्षा कानून नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने संसद में ‘निजी डाटा सुरक्षा बिल 2019’ पेश किया था, लेकिन कई साइबर जानकारों, यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण जिनके नेतृत्व वाली कमिटी ने डाटा सुरक्षा बिल का पहला ड्राफ्ट बनाया था, का मानना है कि यह बिल निजता व डाटा की रक्षा करने के बजाय उसका उल्टा ही करेगा क्योंकि इसके तहत संप्रभुता (सोवरेनटी) या जनता के बीच शान्ति (पब्लिक ऑर्डर) बरकरार रखने के आधार पर सरकार किसी भी समय जनता की निजी डाटा प्राप्त कर सकती है। कोई डाटा सुरक्षा कानून ना होने की स्थिति में आरोग्य सेतु जैसे ऐप अगर जनता के निजी डाटा व जानकारी का गलत उपयोग करते भी हैं या उनके निजता के अधिकार, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के के एस पुट्टस्वामी फैसले में मौलिक अधिकार की मान्यता दी है, की अवहेलना करते हैं तो भी जनता इसके खिलाफ किसी अधिनियम या कानून का सहारा नहीं ले सकती।

साइबर जानकारों ने इस ऐप को बिना किसी कानून के दायरे में लाए जाने पर सवाल उठाये हैं और डेटा सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की है। इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन के आलोक गुप्ता बताते हैं, “सरकार जो डेटा ले रही है वो बिना किसी क़ानूनी दायरे के ले रही है ऐसे में इसका इस्तेमाल वो कैसे करती है और कब तक करती है किसी को नहीं पता। हमारे सामने आधार कार्ड का उदाहरण है जिसमें डेटा लीक का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। जिस तरह आधार नंबर एक सर्विलांस सिस्टम बन गया है और उसे हर चीज़ से जोड़ा जा रहा है वैसे ही कोरोना वायरस से जुड़े एप्लिकेशन में लोगों का डेटा लिया जा रहा है, उनका हेल्थ डेटा और निजी जानकारियां भी शामिल हैं वो सरकार किस तरह और कब तक इस्तेमाल करती है इसकी कोई गारंटी नहीं है।” साइबर क़ानून एक्सपर्ट अमित श्रीवास्तव ने ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा है, “कम्युनिटी ट्रांसमिशन के खतरे को रोकने के लिए सरकार फिलहाल इसे एक जरूरी कदम बता सकती है लेकिन क्या सरकार ऐसी कोई गारंटी भी दे सकती है कि हालात सुधरने के बाद इस डेटा को नष्ट कर दिया जाएगा, इसका ग़लत इस्तेमाल नहीं होगा। पूरी दुनिया में इस महामारी के आधार पर सरकारें लोगों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहीं हैं और लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि ये महामारी सिर्फ़ इंसानों को ख़त्म नहीं करेगी, बल्कि उनकी निजता को भी खत्म कर देगी। जब हालात सामान्य होंगे तो लोगों को पता चलेगा कि उनकी जानकारियों का दुरुपयोग हो रहा है।”

अन्य फीचर भी इस ऐप से जोड़े जा रहे हैं जैसे कुछ ही दिनों में ऐप में ई-पास सुविधा आने वाली है जिसके तहत लोगों के लिए घर से बाहर निकलते वक़्त यह ऐप एक पास की तरह काम करेगा और आपके स्वास्थ्य डाटा के अनुसार आपके स्वस्थ या संक्रमित होने के आधार पर कि हरे, नारंगी, या लाल रंगों में बाटेगा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने 6 अप्रैल 2020 को भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपने भाषण में भी कह दिया कि सभी कार्यकर्ता कम से कम 40 लोगों के फ़ोन में आरोग्य सेतु ऐप ज़रूर डलवायें। हालांकि इस ऐप को डाउनलोड करना या नहीं करना अपनी इच्छा के अनुसार है, लेकिन प्रधान मंत्री का यह आदेश सुनकर यह कार्यकर्ता दूसरों के फ़ोन में ऐप डलवाने के लिए क्या रास्ते अपनाएंगे यह वक़्त ही बतायेगा। सीआइएसएफ ने सरकार को प्रस्ताव दिया है कि दिल्ली मेट्रो में सफ़र करने के लिए इस ऐप को अनिवार्य बना दिया जाए, जो आने वाले दिनों में सभी के लिए इस ऐप को डाउनलोड करना अनिवार्य बनाए जाने की संभावना की ओर इशारा करता है। हालांकि जिनके पास स्मार्टफ़ोन नहीं है वह मेट्रो में सफ़र कैसे करेंगे इसपर कोई बयान नहीं आया है।

बिना जांच के केवल कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग से फायदा नहीं

दरअसल कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग टेक्नोलॉजी, चाहे सभी मानकों का पालन कर भी ले, अपने आप में इस महामारी में ज्यादा मदद नहीं कर सकती है। व्यापक रूप से पूरे देश में संक्रमित लोगों की जांच करने से ही इस टेक्नोलॉजी से कोई फायदा मिलने वाला है, क्योंकि जांच होने पर ही संक्रमण की जानकारी मिल सकती है और जिसको संक्रमण है उससे बीते दिनों में जितने लोग मिले हैं सबको आगाह किया जा सकता है। 29 अप्रैल 2020 तक भारत ने हर 10 लाख लोगों पर महज़ 559 टेस्ट किये हैं। इन आकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में (1,000 से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव केस वाले देशों में) प्रति 10 लाख लोगों पर हुई जांच की संख्या में सबसे पीछे रहने वाले 7 देशों में से भारत एक है और पाकिस्तान, नेपाल, इराक व कई अफ़्रीकी देशों से भी पीछे है। बिना जांच की संख्या बढ़ाए यह ऐप बचाव में कम और सर्विलांस, यानी जनता पर निगरानी रखने में ही अधिक काम आएगा।

इस टेक्नोलॉजी की एक और विशेषता है कि यह किसी क्षेत्र में तभी काम करती है जब वहां के ज़्यादातर लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हों, यह बात खुद ऐप बनाने वालों व जानकारों ने कही है। लेकिन भारत जैसे देश में, जहाँ कुल 135 करोड़ से ज्यादा लोगों में से करीब 45 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्टफ़ोन/एंड्राइड फ़ोन है, वहां पर ऐसी टेक्नोलॉजी, सभी मानकों का पालन करते हुए भी, एक बहुत ही सीमित दायरे में ही काम करती हुई दिखती है।

संकट में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

पिछले कुछ ही सदियों में विज्ञान, तकनीक व चिकित्सा के अभूतपूर्व विकास ने इंसान के जीवन को और बेहतर, आसान व समृद्ध बनाया है और ऐसी बीमारियों से बचाव के भी उपाय किये हैं व इन्हें विनष्ट भी किया है। हालांकि उसी विज्ञान और तकनीक के विकास का इस्तेमाल कई बार शासक वर्गों ने गरीब मेहनतकश व आम जनता के खिलाफ भी किया है। अल्बर्ट आइंस्टीन के जिस प्रसिध्द फार्मूला e=mc2 ने एक तरफ विज्ञान को नई दिशा दिखाई उसी फार्मूला का इस्तेमाल भयंकर तबाही मचाने वाला ऐटम बम बनाने में किया गया। जिस तरह ‘आधार’ को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए एक स्वेच्छापूर्ण योजना के रूप में शुरू किया गया और फिर सारी चीज़ों को उससे जोड़ते हुए उसे सर्विलांस का एक माध्यम बना दिया गया, यह भी एक प्रासंगिक उदाहरण बन जाता है और ऐसा ही फिर से होने की संभावना ख़त्म नहीं हुई है। आरोग्य सेतु द्वारा कांटेक्ट ट्रेसिंग में साइबर जानकारों ने निजता का उल्लंघन किये बगैर इस तकनीक को अपनाने के कई तरीके बताएं हैं जैसे ब्लॉकचेन, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, ओपन सोर्स कोड , अल्गोरिथम का स्वतंत्र ऑडिट की सुविधा आदि, जो कुछ देशों में अपनाए भी जा रहे हैं लेकिन भारत में इनका ठीक ढंग से पालन नहीं किया जा रहा है। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग टेक्नोलॉजी भी विज्ञान व तकनीक के विकास की ही एक देन है और व्यापक टेस्टिंग व अन्य ज़रूरी कदम उठाते हुए इसका इस्तेमाल करना वायरस से बचाव और संक्रमण रोकने में काफ़ी फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन जब सरकार इसमें गैर-ज़रूरी जानकारी और जीपीएस ट्रैकिंग जैसी चीज़े जोड़ दे, व्यापक जाँच की नीति ना अपनाए और डाटा सुरक्षा कानून के अभाव में निजता के मौलिक अधिकार व तकनीक के उद्देश्य पर स्पष्ट नीति ना साझा करे, तो यही तकनीक आसानी से व्यापक सर्विलांस का एक साधन का रूप लेते हुए दिखाई पड़ती है जिसका शिकार सबसे आसानी से गरीब मेहनतकश जनता और उनके पक्ष में आवाज़ उठाने वाला समाज का प्रगतिशील जनवादी तबका ही बनेगा।

यह लेख मूलतः सर्वहारा : समसामयिक मुद्दों पर पीआरसी की सैद्धांतिक एवं राजनीतिक पाक्षिक कमेंटरी (अंक 1/ 15-30 अप्रैल ’20) में छपा था

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑